क्यों किया जाता है कन्या पूजन? जानें

नवरात्रि देवी दुर्गा के नौ रूपों की आराधना का पर्व है। जो साल में चार बार आता हैं। नवरात्रि के अंतिम दो दिन यानी अष्टमी और नवमी तिथि पर कन्या पूजन का विशेष आयोजन होता हैं। कुछ लोग अष्टमी के दिन कन्या पूजन करते है तो वहीं कई लोग नवमी तिथि पर भी कन्या पूजन करते हैं। कन्या पूजन के लिए छोटी कन्याओं को स्वादिष्ट पकवानों का भोग लगाया जाता हैं। इसके साथ ही कन्याओं को उनका मनपसंद तोहफा दिया जाता है

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कन्या पूजन का महत्व

नवरात्रि में माता दुर्गा के नौ रूपों की पूजा होती है। पूजन में 9 कन्याओं को ही बुलाने की परंपरा है जिन्हें माता दुर्गा के नौ रूपों का प्रतीक माना जाता है, इसके साथ ही एक बटुक भी कन्याओं के साथ होना चाहिए जो भैरव का रूप माना जाता है। जो भी भक्त विधि-विधान से माता की पूजा आराधना करते हैं और कुमारी कन्याओं का पूजन करते हैं उन्हें माता का आशीर्वाद प्राप्त होता है। कन्या पूजन करने से माता की कृपा आप पर बनी रहती है और घर-परिवार में सुख-समृद्धि रहती है। ऐसा करना आपके धार्मिक और आध्यात्मिक ज्ञान को भी बढ़ाता है। आइए अब जानते हैं कि कन्या पूजन के दौरान किन बातों का आपको ख्याल रखना चाहिए।

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कन्या पूजन विधि

नवरात्रि में कन्या पूजन के लिए सुबह जल्दी उठकर स्नान करें.

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उसके बाद हलवा, पूरी और चने का प्रसाद तैयार कर लें.

फिर मां दुर्गा का विधि पूर्वक पूजन करें.

फिर 9 छोटी कन्याओं और एक छोटे लड़के को बुलाएं.

सबसे पहले सभी पैर धोकर उन्हें साफ-सुथरे आसन पर बिठाएं.

उसके बाद माथे पर कुमकुम और अक्षत का तिलक करें और हाथ में मौली यानी कलावा बांधे.

फिर घी का दीपक जलाकर सभी की आरती करें.

अब सभी कन्याओं को प्रसाद खिलाएं और सामर्थ्य के अनुसार दक्षिणा या उपहार दें.

अंत में उनके पैर छूकर आशीर्वाद लें.

कन्या पूजन में इस आयु की कन्याओं को किया जाता है शामिल

मान्यता के अनुसार, नवरात्रि के कन्या पूजन में 2 साल से लेकर 10 साल तक की नौ कन्याओं को शामिल किया जाता है. इन्हीं की पूजा की जाती है. नौ कन्याओं को माता दुर्गा के नौ रूपों का प्रतीक समझा जाता है. नौ कन्याओं को मां के नौ रूप शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कन्दमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और माता सिद्धिदात्री को मानकर इनका पूजन किया जाता है. साथ ही क्षमतानुसार दक्षिणा दी जाती है. नवरात्रि में कन्या पूजन करने से मां दुर्गा का आशीर्वाद मिलता है.

अलग-अलग आयु की कन्याओं को क्या कहा जाता है?

यहीं नहीं दो साल की जो कन्या है उसका कुमारी माता है. इसी तरह से तीन साल की कन्या को त्रिमूर्ति कहा जाता है. चार साल की जो कन्या है उसको कल्याणी कहा जाता है. पांच वर्ष की कन्या को रोहिणी कहा जाता है. छह वर्ष की कन्या को कालिका कहा जाता है. सात वर्ष की कन्या को शाम्भवी कहा जाता है. आठ वर्ष की कन्या को सुभद्रा कहा जाता है.

कन्या पूजन से जुड़ी पौराणिक कथा

पौराणिक शास्त्रों के अनुसार, इंद्र देव ने ब्रह्मा जी के कहने पर कन्या पूजन किया था। दरअसल, इंद्रदेव देवी मां को प्रसन्न करना चाहते थे। अपनी इच्छा को लेकर इंद्रदेव ब्रह्मा जी के पास पहुंचे और उन्हें माता दुर्गा को प्रसन्न करने का उपाय पूछा। ब्रह्मा जी ने इंद्रदेव से कहा कि, देवी माता को प्रसन्न करने के लिए आपको कन्याओं का पूजन करना चाहिए और उन्हें भोजन कराना चाहिए। ब्रहाा जी की सलाह के बाद इंद्रदेव ने माता की विधि-विधान से पूजा करने के बाद कुंवारी कन्याओं का पूजन किया और उन्हें भोजन करवाया। इंद्रदेव के सेवा भाव को देखकर माता प्रसन्न हुईं और उन्हें आशीर्वाद दिया। ऐसा माना जाता है कि, तभी से कन्या पूजन की परंपरा शुरू हुई।

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