तीन साल के सफर में हिन्दुस्तान सहित 59 देशों की यात्रा कर चुकी है
उज्जैन।किसी ने सच कहा है जज्बा और जुनून हो तो तकदीर के आड़े नहीं आती हाथ की रेखाएं। उक्त पंक्ति मुंबई निवासी परविंदर चावला पर सटीक बैठती है। दोनों हाथ और पैर से दिव्यांग होने के बाद भी दूसरों के लिए प्रेरणा बनी है। हाल ही के उज्जैन बाबा महाकाल के दर्शन करने आई परविंदर ने अक्षरविश्व को बताया कि अभी तक वह 59 देश घूम चुकी है और उनका केवल एक ही सपना है पूरी दुनिया घूमने का।
परविंदर बताती है कि 15 वर्ष की उम्र से ही दोनों हाथ और पैर विकलांग हो गए थे। उनके पिता एक बिजनेस मेन थे, घर में दो बड़े भाई है। माता अब बुजुर्ग हो चुकी है। बड़े भाई शादी के बाद अपने परिवार के साथ अलग रहने लगे है। ग्रेजुएशन के बाद अपना खर्च वहन करने के लिए उसने विकलांगता को मात देकर मुम्बई के एक स्थानीय कॉल सेंटर में रात में जॉब की।
टै्रवलिंग का शौक
परविंदर बताती है कि जॉब के दौरान उन्हें जब भी समय मिलता था, तब वह अपनी व्हील चेयर लेकर अकेले ही घूमने निकल जाती। दुनिया घूमने का सपना देखने वाली परविंदर पिछले तीन सालों से केवल अपनी व्हीलचेयर के सहारे अकेले ही दुनिया घूम रही है। उन्होंने हिन्दुस्तान के अलावा 5८ देशों का भ्रमण किया है। जिसमें बर्मा, भूटान, थाईलैंड, यूएस, ताइवान जैसे कई देश शामिल है।
स्वयं उठाती है खर्च
सफर के दौरान आने वाले समस्त छोटे-बड़े खर्चे परविंदर स्वयं उठाती है। परविंदर कहती है कि मैंने कई देशों का भ्रमण किया है, पर हिंदुस्तान जैसा देश मुझे कहीं ओर देखने को नहीं मिला। भारत के लोग काफी मददगार है और तो और यहां घूमने के लिए ज्यादा बजट की भी जरूरत नहीं होती। इसी की बदौलत उन्होंने स्वयं के खर्च पर ही पूरी दुनिया घूमने की ठानी है।
विकलांगता का नहीं कोई मलाल, पर सरकार से भी उम्मीद
परविंदर चावला ने बताया कि उन्हें दिव्यांग होने का कोई मलाल नहीं है। वह कहती है, यदि इंसान के पास एक अच्छी सोच और जज्बा है तो वह जिंदगी में सब कुछ आराम से कर सकता है। लेकिन वह हमारी सरकारी सिस्टम पर तीखा व्यंग करती है हमारी सरकार हम जैसे लोगों को आगे बढ़ाने के लिए खुद आगे होकर क्यों नहीं आती है।