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पाला’ पडऩे से पहले बदलने का मौसम

ठंड के तेवर साल का अंत होने के बाद भी उतने तेज नहीं हैं, जितने की उम्मीद थी। हर काम उम्मीद अनुसार हो, यह संभव भी नहीं। कांग्रेस को सत्ता की उम्मीद थी, मिली नहीं। हार के बाद प्रदेश कांग्रेस में सत्ता परिवर्तन भी ऐसा होगा, इसकी भी उम्मीद नहीं थी। राजनीति की सांप-सीढ़ी के खेल में कब, कौन, कहां पहुंच जाए, इसकी भी उम्मीद नहीं होती। अब जीतू पटवारी और उमंग सिंघार का जमाना है।

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इसके बाद अब कमल नाथ, दिग्विजय सिंह समर्थकों के सामने नया संकट खड़ा हो गया है। नेतागिरी में ऊपर चढऩे के लिए किसी बड़े नाम की सीढ़ी जरूरी होती है। पुराना गुट छोड़कर नए क्षत्रपों के टेंट में कइयों ने आश्रय तलाशना शुरू भी कर दिया है। वहीं कई इस पसोपेश में हैं कि दोनों नाव पर सवारी कैसे हो। कौन किस पाले में जाता है, यह समय बताएगा।

 

अधिकारियों के फेरबदल की चर्चा

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सरकार चलाने में नौकरशाहों की भूमिका हमेशा प्रभावी रही है। प्रदेश की पिछली सरकार में भी नौकरशाहों की प्रभावी भूमिका रही। यही कारण है कि हर सरकार अपनी पसंद के चेहरों को अहम कुर्सी सौंपती है। सरकार बदलने के बाद अधिकारियों के भी फेरबदल आम बात हैं। इस बार सरकार तो भाजपा की ही बनी है, लेकिन अधिकारियों के फेरबदल होने लगे हैं। बदलाव को लेकर ऐसी आतुरता दिखी कि नई सरकार में मंत्रालयों की जिम्मेदारी के बंटवारे से पहले ही अधिकारियों की जिम्मेदारी का बंटवारा शुरू हो गया था। जिन चेहरों को बदला गया, वे पिछली सरकार में ‘ताकतवरÓ अधिकारी की श्रेणी में थे। इसके पीछे उनके काम भी थे, जिन्होंने शोहरत दिलाई। अब प्रदेश की राजनीति में नया नेतृत्व उभरा है, तो तय है कि उनके नजदीकी अधिकारी ताकतवर बनकर उभरेंगे।

तैयार होकर पहुंचे, निराश होकर निकले

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सत्ताधारी दल अपने चौंकाने वाले निर्णय के लिए विख्यात है। न जाने कब कौन अर्श से फर्श तक.. तो कौन फर्श से अर्श तक पहुंच जाए, यह कोई नहीं जानता। प्रदेश मुखिया चुनने में भी पार्टी ने चौंकाया। फिर मंत्रिमंडल विस्तार में भी कुछ ऐसा ही हुआ। शपथ के कुछ घंटे पहले तक किसी को कानोंकान खबर नहीं थी कि आखिर शपथ कौन-कौन लेगा? ऐसे में शायद किस्मत खुल जाए, इस उम्मीद के साथ कि कुछ विधायक तैयार होकर भोपाल पहुंचे थे। मंत्री बनने की आस में जिले के युवा विधायक भी पहुंचे थे। जब उनसे पूछा कि क्या आप मंत्री पद की शपथ लेने जा रहे हैं? तो उनका जवाब भी सत्ताधारी दल के हर नेता की तरह यही था- यह तो पार्टी का निर्णय है, कौन बनेगा, कौन नहीं। ऐसा ही कुछ संभाग के एक नेताजी के साथ हुआ। उन्हें उम्मीद थी कि उनका मंत्री पद बरकरार रहेगा। वे सुबह से फोन लगाकर अपना नाम आने का पता करते रहे। जब कोई फोन नहीं आया तो वे खुद राजभवन पहुंच गए। बाद मन मसोस कर चुपचाप निकल गए।

इस बार कुछ अधिक सख्ती
पार्टी विद डिफरेंस कहे जाने वाले सत्ताधारी दल में आजकल सब कुछ बहुत ही नियंत्रित तरीके से हो रहा है। यहां तक कि कौन नेता क्या बोलेगा यह भी।सुना है कि वर्चुअल मीटिंग के बाद यह तय हो जाता है कि किस मुद्दे पर क्या बोलना है, क्या बयान जारी करना है। किस मुद्दे पर प्रतिक्रिया देनी है किस पर बोलने के बजाए शांति धारण करनी है। नेताओं को बाकायदा वाट्सएप पर मैसेज भेजकर डेली की पार्टी लाइन बताई जा रही है।

@शैलेष व्यास

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