तत्कालीन एसपी जी जनार्दन के समय क्राइम ब्रांच के अलावा जिले के विभिन्न थानों में रहे
माधव नगर थाने पहुंचे सेवानिवृत्त सब इंस्पेक्टर, बोले- पुलिस का रवैया बदला, अब सेवाभाव नहीं दिखाई देता
अक्षरविश्व न्यूज. उज्जैन:पुलिस का रवैया बदल गया है अब थानों पर पदस्थ पुलिस अधिकारियों और जवानों में सेवा का भाव दिखाई नहीं देता है। आम लोग अपनी शिकायतों को लेकर भी डरते हुए पुलिस थाने पहुंचते हैं। २० साल पहले गुंडों में पुलिस का ऐसा खौफ था कि पाइंट पर पुलिस की मौजूदगी होने पर गुंडे-बदमाश भीड़भरे क्षेत्र में घुसकर चोरी, जेबकटी और छेड़छाड़ जैसे अपराध करने की हिम्मत नहीं करते थे। कुछ पुलिस जवानों का भी गुंडों में खौफ था, वे दूर से दिख जाए तो गुंडे छुप जाते थे।
ये कहना है 38 साल पुलिस सेवा में रहे सेवानिवृत्त सब इंस्पेक्टर एसडी शुक्ला का। 8 साल पहले वे पुलिस की ड्यूटी से रिटायर्ड हुए हैं। शुक्ला मंगलवार को इंश्योरेंस कंपनी के किसी काम को लेकर माधवनगर थाने आए थे। इसी दौरान अक्षरविश्व प्रतिनिधि से उनके सेवाकाल और वर्तमान पुलिस सेवा के विषय को लेकर चर्चा हुई। शुक्ला ने बताया वे तत्कालीन एसपी जी जनार्दन के समय उज्जैन पुलिस क्राइम ब्रांच में रहे हैें।
इसके अलावा नीलगंगा, नरवर, माकड़ौन, पानबिहार, कालापीपल सहित इंदौर के विभिन्न थानों और रतलाम के पिपलोदा थाना प्रभारी भी रहे। शुक्ला का कहना है कि पुलिस जनता की सेवा के लिए ही है लेकिन वर्तमान दौर में ऐसा नहीं हो रहा है। जब व्यक्ति किसी अपराध का शिकार होता है या फिर बहुत ज्यादा किसी से प्रताडि़त हो जाता है तब वो मदद के लिए पुलिस के पास पहुंचता है।
आम व्यक्ति की परेशानी और पीड़ा को सुनना पुलिस की ड्य़ूटी है। अब तो ये माहौल है कि आम लोग थाने पर जाने में डरते हैं। किसी मामले में जानकारी लेना हो तो पुलिसकर्मी बोल देते हैं कि आरटीआई लगाओ। पुलिस का खौफ गुंडों में कम और आमजन में ज्यादा हो गया है क्योंकि आमजन थाने पर पहुंचकर पुलिस की बेरूखी का शिकार होते हैं।
कुछ कर गुजरने का जज्बा बरकरार
सेवानिवृत्त सब इंस्पेक्टर और वरिष्ठ नागरिक शुक्ला का कुछ कर गुजरने का जज्बा अब भी बरकरार है। उनके सभी बच्चे सेटल हो चुके हैं और मुंबई, पुणे और बेंगलुरु की मल्टीनेशनल कंपनियों में अच्छे पदों पर काम कर रहे हैं। उनकी स्वयं की पेंशन इतनी मिलती है कि जीवन आराम से गुजरेगा, लेकिन कुछ कर गुजरने का जजबा शुक्लाजी को घर में बैठने नहीं देता और 68 साल की उम्र में वे लोगों का जीवन सुरक्षित करने के लिए बीमा पॉलिसी एडवाइजर का काम करते हैं।
अपने खर्च से थाने में करवाए थे बोरिंग
शुक्ला ने बताया कि साल 2006 और 2013 में जब पानी क ा अकाल पड़ा था। उस दौरान लोग पानी के लिए परेशान होते थे। गांवों में हैंडपंप और बोरिंग पर लंबी-लंबी लाइन लग जाती थी। लोगों का पानी को लेकर विवाद होता था। ऐसे हालात में उन्होंने अपने वेतन और जमा पूंजी से रुपए लेकर थाना परिसर में बोरिंग कराया और पुलिस सुरक्षा में लोगों को पानी भरवाते थे।