उज्जैन:क्यों नहीं बन सके उज्जैन के ‘मन’ के ‘महेश’….?

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ढाई साल पहले जीते विधायक की हार के कई कारण
उज्जैन। विधानसभा चुनाव में ढाई पहले उज्जैन जिले की तराना विधानसभा में कांग्रेस की विजय पताका लहराने वाले महेश परमार महापौर चुनाव हार गए। उन्हें उज्जैन की पॉलिटिकिल पिच पर डेब्यू मैच खेल रहे मुकेश टटवाल ने शिकस्त दी। परमार बीते एक साल से महापौर चुनाव की तैयारी कर रहे थे
जबकि टटवाल को महापौर चुनाव मैदान में उतारने का फैसला ही नगरीय निकाय चुनाव की आचार संहिता लागू होने के बाद हुआ। इसके चलते राजनैतिक गलियारों में परमार के सामने टटवाल को कमजोर उम्मीदवार माना जा रहा था। लेकिन महेश परमार उज्जैन के ‘मन’ के ‘महेश’ क्यों नहीं बन पाए।
हम बताते हैं इसके कारण…
स्थानीय नेताओं की दूरी
चुनाव में बड़े नेताओं के साथ ही स्थानीय कांग्रेस नेताओं ने महेश परमार के प्रचार – प्रसार और जनसंपर्क का काम औपचारिकता निभाने के लिए किया। इन नेताओं को परमार के महापौर बनने की स्थिति में पार्टी और शहर में राजनैतिक कद छोटा होने का खतरा था।
वहीं कई नेता चुनाव नहीं लडे पर अपने नाते-रिश्तेदारों को टिकट दिलाया और उन्हें जीतने में लगे रहे। परमार को उम्मीद थी कि अनेक वार्डों में नेताओं ने अपने युवा और नए चेहरों को अवसर दिलाया हैं,इन वार्डों से उन्हें अच्छा समर्थन मिलेगा, लेकिन यहां भी उनका प्रदर्शन काफी अच्छा नहीं हो पाया। कांग्रेस नेता अपने ही क्षेत्र में पार्षद प्रत्याशियों में ही उलझे रहे। पूरी ताकत से महेश के लिए प्रचार नहीं किया। यह अलग बात हैं कि अधिकांश चुनाव हार गए, पर कांग्रेस नेताओं के इस अघोषित भीतरघात के चलते परमार महापौर चुनाव हार गए।

चुनाव में भाजपा की जीत से ज्यादा कांग्रेस की हार चर्चाओं में रही, क्योंकि कांग्रेस के कद्दावर पार्षद का चुनाव हार गए। हारने वालों में कांग्रेस नेता वीनू कुशवाह, सुरेंद्र मरमट,सुनील कछवाय,कमल चौहान की पत्नी,कांग्रेस नेता आजाद यादव के पुत्र हर्ष, पूर्व शहर कांग्रेस अध्यक्ष अनंतनारायण मीणा का पुत्र ललित मीणा मैदान में थे।
जिन्हें वे जीता नहीं पाए। महापौर पद की दावेदारी करने वाले जितेंद्र तिलकर भी हार गए। कांग्रेस नेता बटुकशंकर जोशी,राजहजुरसिंह गौर, योगेश शर्मा, अनंतनारायण मीणा, आजाद यादव जैसे कांग्रेस के कद्दावर माने जाने वाले नेताओं का साथ परमार को नहीं मिला।
केवल कमलनाथ का साथ..
परमार विधायक बनने से पहले उज्जैन जिला पंचायत के तीन बार सदस्य और एक मर्तबा अध्यक्ष रह चुके हैं। ऐसे में माना जा रहा था कि उनके पास चुनाव जीतने की बेहतर रणनीति है।
चुनाव प्रचार के दौरान वे अकेले पड़ गए। सिर्फ पूर्व सीएम कमलनाथ का ही खुलकर साथ मिला। इसके अलावा प्रदेश के बड़े नेताओं को तो छोड़ो जिले के कांग्रेस विधायकों का भी सपोर्ट ठीक से नहीं मिल पाया। टटवाल के लिए खुद मुख्यमंत्री शिवराज ने प्रचार किया और कमान संभाली थी। परमार के नाव मैनेजमेंट के लिए प्रदेश संगठन ने भी किसी योजनाकार या नेता को नहीं भेजा। कुल मिलाकर महेश अकेले पड गए और यह मतगणना के दौरान भी सामने आया।
मैनेजमेंट में फेल …
परमार ने मैदान में जमकर पसीना बहाया पर अनुभवी नेता और रणनीतिकारों की कमी से मैनेजमेंट में फेल रहा। उनके सामने ‘प्यास लगने पर खुद ही कुआं खोदने और खुद ही पानी पीने की स्थिति रही।’ प्रोफेशनल तरीके से चुनाव लडऩे की जगह पारंपरिक तरीका अपनाना। पीपुल कनेक्ट या अपने वोटर के बारे में जानकारी की कमी रही। वह प्रचार अभियान के दौरान जनता के मूड को नहीं समझ पाए। इसके चलते मैनेजमेंट नहीं कर पाए। जो उनकी हार का कारण बना।
उज्जैनवासियों को विकास से जोड़ा
शहर विकास के सहारे भाजपा, उज्जैनवासी के दिल से जुड़ गई। इसके चलते शहर के मतदाताओं ने भाजपा को डेवलपमेंट की राजनीति करने वाली पार्टी मानकर कांग्रेस उम्मीदवार महेश परमार को नकार दिया। बता दें कि स्मार्ट सिटी के तहत सबसे बड़े प्रोजेक्ट में महाकाल मंदिर विस्तार का कार्य किया जा रहा है। इस पर पूरे देश की निगाह है और पूर्णता का इंतजार है।
नए चेहरे को स्वीकारा
भाजपा ने महापौर पद पर नए चेहरे को मैदान में उतारा। जबकि महेश परमार जिले- शहर के लोगों के लिए जाना- पहचाना चेहरा था। उनके कामकाम और तौर तरीकों से जनता वाकिफ थी। इस कारण वोटर ने परमार के बजाय टटवाल को महापौर चुना।









