उज्जैन : अंतिम यात्राएं ही उसके जीवन की यात्रा बन गई…….दस साल के बच्चे की दास्तां…

दान में मिला रुपया बन रहा घर का सहारा…

Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!

उज्जैन। दस साल की उम्र का बच्चा या तो पढ़ता, खेलता या मोबाइल चलाता हुआ मिलेगा। मगर इसके विपरीत इस आयु का बच्चा अपना परिवार चलाने के लिए एक ऐसी जगह पर काम कर रहा है, जहां की कोई सोच भी नहीं सकता।

आइए जानते हैं एक ऐसे ही बच्चे के बारे में…..

अंतिम यात्राओं के दौरान फेंकी गई चिल्लर बीनते-बीनते कब एक बच्चा चक्रतीर्थ श्मशान घाट पहुंच गया उसे पता ही नहीं चला। आज वह यहां पर किए गए कामों से मिले चंद रुपयों से घर चलाने में पिता का सहयोगी बन रहा है। इस बच्चे की उम्र महज दस बरस है और नाम हैं जितेंद्र मालवीय। उसका घर चक्रतीर्थ के समीप ही हैं। पिता ईंट भट्टे पर काम करते हैं और एक बहन और दो भाई हैं। मां घर छोड़कर जा चुकी हैं।

घर में गरीबी का बसेरा है….घर के पास से ही अंतिम यात्राएं निकलती थी इस दौरान लोग चिल्लर फेंकते चलते हैं। चिल्लर बीनते हुए यह बालक भी चक्रतीर्थ के अंदर तक पहुंच गया। यहां पर अंत्येष्ठी के दौरान चबूतरों की साफ-सफाई करने लगा। इससे वहां आने वाले लोग बच्चे की मदद के रूप में चंद रुपये देने लगे। धीरे-धीरे उसने इसे ही काम समझ लिया और अंतिम यात्राएं उसके जीवन चलाने की यात्रा बन गई। यहां मिले चंद रुपये वह पिता को देता है जिससे घर में सहयोग मिलता है।

प्यार से लोग कहते हैं नेपाली….

चक्रतीर्थ पर काम करने वाले जितेंद्र को यहां पर लोग प्यार से नेपाली के नाम से बुलाते हैं। जैसे ही कोई अंतिम यात्रा पहुंचती है तो यह चबूतरों को साफ करने में जुट जाता है। पहले पोंछा लगाता है इसके बाद पानी से साफ करता है। इस काम का उसे कुछ पैसा मिलता है। वह पांचवीं पास कर छठवीं कक्षा में गया है। स्कूल से बचे समय में यहां आकर काम करता है।

भूख है सबसे बड़ा डर….

जब उससे पूछा कि तुम्हे श्मशान जैसी जगह पर डर नहीं लगता तो वह ना में सिर हिला देता है। सच भी है भूख से बड़ा डर क्या होता है यह इस मासूम बच्चे को देखकर समझा जा सकता है, जो दिन में जलती चिताओं को करीब से देखता है और भयभीत भी नहीं होता है।

Related Articles