मास्टर प्लान : सिंहस्थ की जमीन आवासीय नहीं होने की चर्चा मात्र से नींद उड़ी!

उज्जैन। राजधानी के गलियारों से उज्जैन मास्टर प्लान 2035 को लेकर जो ‘खबरें’ आ रही है वह प्रापर्टी सेक्टर में सक्रिय लोगों की नींद उड़ाने के लिए पर्याप्त है। मास्टर प्लान में संशोधन को लेकर जो बड़े-बड़े सपने देखे गए हैं, उन पर संकट/संशय के बादल मंडऱा रहे हंै।

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करीब 17 माह से मास्टर प्लान पर शासन की अंतिम मोहर नहीं लगी है। मार्च 2021 में कई आपत्तियों का निराकरण करने के बाद स्वीकृति के लिए शासन को भेजा गया था। इसके बाद भी आर्थिक और राजनीतिक हितों के चलते प्रभावी तरीके से मास्टर प्लान पर ‘सवाल’ उठाए गए। नतीजतन सरकार ने किसी विवाद को जन्म नहीं देने की मंशा के साथ मास्टर प्लान में संशोधन का प्रस्ताव रखकर दावें-आपत्ति आमंत्रित किए तो प्रापर्टी सेक्टर में सक्रिय लोगों के चेहरों पर रौनक आ गई।

बड़े-बड़े ख्वाब देखकर योजना बनने लगी। पर शहर के कुछ संगठनों की अलग ही मंशा थी। खासकर अभा अखाड़ा परिषद और संत-महात्माओं की, जिन्हें उस क्षेत्र को आवासीय करने पर आपत्ति रही, जो सिंहस्थ क्षेत्र के एकदम करीब है या यूं कहें कि सिंहस्थ 2016 में जिस जमीन का उपयोग अनेक कार्य और गतिविधियों के लिए किया था,वह क्षेत्र चिंतामन बायपास पर सांवराखेड़ी, जीवन खेड़ी, दाऊदखेड़ी में आता है।

अभा अखाड़ा परिषद और संत-महात्माओं ने इस क्षेत्र को आवासीय करने पर ‘आपत्ति’ लेते हुए, जमीन को सिंहस्थ क्षेत्र में शामिल करने की ‘पैरवी’ की थी। वहीं मास्टर प्लान में संशोधन का प्रस्ताव साथ में आने पर प्रापर्टी सेक्टर या सीधे-सीधे कहें कि कॉलोनाइजर्स ने कई हुण्डी-चिट्ठी के कारोबारियों के अलावा अनेक ‘धनवानों’ का धन इस क्षेत्र की ‘कथित प्लानिंग’ में लगवा दिया है। कई निवेशकों को लाभ दिखाकर साथ मिलाया है।

यदि ‘संशोधित मास्टर प्लान’ स्वीकृत नहीं होता है, तो कई के रुपए ‘संकट’ में आ सकते हंै। राजधानी से खबर आ रही है कि मास्टर प्लान में दूसरी बार आमंत्रित दावें-आपत्तियों में से खास/महत्वपूर्ण आपत्तियों को आधार बनाकर संशोधन को खारिज कर दिया जाए। पूर्ववर्ती मास्टर प्लान को जनभावना और शहर के भविष्य को ध्यान में रखकर ही मान्य/स्वीकृत कर दिया जाए।

ऐसा होने पर एक नहीं कई धनाढय़ों के पैरों तले से ‘जमीन’ खिसक सकती है, तो कई हुण्डी-चिट्ठी के जरिए ‘धन’ लगाने वालों से दीपावली के पहले ‘लक्ष्मीजी’ छिटक सकती हैं। इसी को ध्यान में रखते हुए अब ऐसे प्रोजेक्ट को फाइनेंस करने वाले लोगों ने बिल्डरों के घर अपना पैसा सुरक्षित वापस निकालने के लिए चक्कर लगाना शुरू कर दिए हैं।

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