सातवें दिन मां कालरात्रि की पूजा

By AV NEWS

23 अक्तूबर को शारदीय नवरात्रि का सातवां दिन है। नवरात्रि के सातवें दिन देवी दुर्गा के सातवें स्वरूप मां कालरात्रि की पूजा- आराधना की जाती है। माता के इस स्वरूप की पूजा करने से सभी तरह के पापो से मुक्ति मिलने के साथ व्यक्ति के शत्रुओं का नाश भी हो जाता है। नवरात्रि के सातवें दिन मां का स्मरण करने मात्र से ही नकारात्मक शक्तियों का नाश हो जाता है। नवरात्रि के सप्तमी तिथि के अवसर आइए जानते हैं माता के स्वरूप की कैसे पूजा करने से किस प्रकार के फल की प्राप्ति होती है। माता के इस स्वरूप में घने अंधकार के समान काला रंग होने के कारण इन्हें कालरात्रि कहा गया। मां कालरात्रि काल और दुखों का अंत करने वाली हैं। मां कालरात्रि के तीन नेत्र है और तीनों ही गोल है। इनका रूप अत्यंत भयानक है एवं बाल बिखरे हुए हैं।

ऐसा है मां कालरात्रि का स्वरूप
मां दुर्गा की सातवीं शक्ति कालरात्रि के नाम से जानी जाती है अर्थात जिनके शरीर का रंग घने अंधकार की तरह एकदम काला है। नाम से ही जाहिर है कि इनका रूप भयानक है। सिर के बाल बिखरे हुए हैं और गले में विद्युत की तरह चमकने वाली माला है। अंधकारमय स्थितियों का विनाश करने वाली शक्ति हैं कालरात्रि। काल से भी रक्षा करने वाली यह शक्ति है।

अपने भक्तों को देती हैं निडरता का संदेश
इस देवी के तीन नेत्र हैं। ये तीनों ही नेत्र ब्रह्मांड के समान गोल हैं। इनकी सांसों से अग्नि निकलती रहती है। ये गर्दभ की सवारी करती हैं। ऊपर उठे हुए दाहिने हाथ की वर मुद्रा भक्तों को वर देती है। दाहिनी ही तरफ का नीचे वाला हाथ अभय मुद्रा में है। यानी भक्तों हमेशा निडर, निर्भय रहो।

मां कालरात्रि की पूजा विधि
नवरात्रि के सप्तम दिन मां कालरात्रि की पूजा करने से साधक के समस्त शत्रुओं का नाश होता है। हमे माता की पूजा पूर्णतया: नियमानुसार शुद्ध होकर एकाग्र मन से की जानी चाहिए। माता काली को गुड़हल का पुष्प अर्पित करना चाहिए। कलश पूजन करने के उपरांत माता के समक्ष  दीपक जलाकर रोली, अक्षत से तिलक कर पूजन करना चाहिए और मां काली का ध्यान कर वंदना श्लोक का उच्चारण करना चाहिए| तत्पश्चात मां का स्त्रोत पाठ करना चाहिए। पाठ समापन के पश्चात माता जो गुड़ का भोग लगा लगाना चाहिए। तथा ब्राह्मण को गुड़ दान करना चाहिए।

मां अपने भक्तों का करती हैं भला
बाईं तरफ के ऊपर वाले हाथ में लोहे का कांटा तथा नीचे वाले हाथ में खड्ग है। इनका रूप भले ही भयंकर हो लेकिन ये सदैव शुभ फल देने वाली मां हैं। इसीलिए ये शुभंकरी कहलाईं अर्थात् इनसे भक्तों को किसी भी प्रकार से भयभीत या आतंकित होने की कतई आवश्यकता नहीं। उनके साक्षात्कार से भक्त पुण्य का भागी बनता है।

असुरी शक्तियां नाम सुनते ही हो जाती है भयभीत
कालरात्रि की उपासना करने से ब्रह्मांड की सारी सिद्धियों के दरवाजे खुलने लगते हैं और तमाम असुरी शक्तियां उनके नाम के उच्चारण से ही भयभीत होकर दूर भागने लगती हैं। इसलिए दानव, दैत्य, राक्षस और भूत-प्रेत उनके स्मरण से ही भाग जाते हैं।

इस तरह किया था रक्तबीज का वध
रक्तबीज एक ऐसा दानव था जिसे यह वरदान था की जब जब उसके लहू की बूंद इस धरती पर गिरेगी तब तब हर बूंद से एक नया रक्तबीज जन्म ले लेगा जो बल, शरीर और रूप से मुख्य रक्तबीज के समान ही होगा। ऐसे में मां कालरात्रि ने रक्तबीज की गर्दन काटकर उसे खप्पर में रख लिया ताकि रक्त की बूंद नीचे ना गिरे और उसका सारा खून पी गयी, बिना एक बूंद नीचे गिरे। जो भी दानव रक्त से उनकी जिह्वा पर उत्पन्न होते गए उनको खाती गई। इस तरह मां काली ने रक्तबीज का अंत किया।

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