34/84 महादेव : श्री कन्थडेश्वर महादेव मंदिर

By AV NEWS

तेऽधन्या: पुरुषा लोके तेपांजन्मनिरर्थकम्।
यैर्न दृष्टो महाकालदेवो ऽ सौकन्थडेश्वर।।

लेखक – रमेश दीक्षित

(अर्थात् हे गौरी! जो महाकालवन में कन्थडेश्वर का दर्शन करते ही नहीं है, वे धन्य नहीं हैं, उनका जन्म व्यर्थ है।)

यह मंदिर भैरवगढ़ या भेरूगढ़ में सिद्धवट क्षेत्र के सामने मुख्य मार्ग के बाईं ओर के मार्ग पर पुन: बाईं ओर मुड़कर दिखाई देता है। साढ़े छ: फीट ऊंचे प्लेटफार्म पर रैलिंग लगे चढ़ाव चढ़कर यह पूर्वाभिमुख मंदिर आता है। जिसकी चौखट पुराने पत्थरों की तथा भीतरी द्वार स्टील का है। करीब 65 वर्गफीट के गर्भगृह के मध्य में करीब 3 फीट चौड़ी चौकोर जलाधारी करीब 2 फीट व्यास का श्याम वर्ग पाषाण शिवलिंग स्थित है।

जिसकी ऊंचाई 10 इंच है। लिंग पर नाग आवेष्ठित है जो उस पर छाया किए है। जलाधारी पर स्वस्तिक, कलश, पत्तियों के साथ ही 2 शंख व सूर्य-चंद्र की आकृतियां उकरी हुई हैं। नीचे की आधी दीवारों पर सीमेंट प्लास्टर है तथा ऊपरी आधी दीवारें प्राचीनता लिए हुए काले पत्थरों की दिखाई दे रही हैं। मंदिर के दाईं ओर मणिभद्र वीर जैन मंदिर स्थित है।

लिंग माहात्म्य की कथा-

पूर्वकाल में वितस्ता के तट पर पांडव नामक एक संबंधियों व पत्नी से परित्यक्त ब्राह्मण रहता था। उसने महादेव की तपस्या की जिससे प्रसन्न होकर से अयोनिज पुत्र प्राप्त हुआ। छठे वर्ष में मुनिगणों की उपस्थित में ब्राह्मण ने बालक का मौञ्जीबंधन कराया किंतु मुनिगण ने उसे दीर्घायु का वर नहीं दिया। पिता को दु:खी देखकर पुत्र ने कहा कि मैं शीघ्र ही हम दोनों के लिए तपस्या से यमराज को वश में कर लूंगा।

मुनियों ने चकित होकर उस पुत्र से पूछा कि परम रूद्र को कैसे जानते हो। तब उन्हें बालक ने बताया कि स्वयं सिद्धिप्रदाता सिद्ध यहां आए थे। उन्होंने मुझे महाकालवन जाकर कन्थडेश्वर लिंग की अर्चना कर दीर्घायु होने का आशीर्वाद दिया। लिंग में से वाणी सुनाई दी, हे वत्स! मैं प्रसन्न हूं। तुम्हें क्या प्रदान करू कहो। बालक ने दर्शन करने वाले के लिए दीर्घायु की कामना की। लिंग ने कहा मेरा दर्शन करने वाले जरा-मरण रहित होकर परम वांछित वर प्रापत करेंगे। दूसरे वर में बालक ने उसी के नाम से लिंग की प्रसिद्धि मांगी। हर ने कन्थडेश्वर नाम से लिंग की प्रसिद्धि का वरदान भी दे दिया।

फलश्रुति-

इसके दर्शन मात्र से मनुष्य दीर्घायु व पापमुक्त हो जाता है। यह लिंग पवित्र, यशप्रद, कीर्तनीय व पापनाशक है।

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