नग्रहा नपिशाचाश्च न याक्षान च राक्षसा:।
विघ्नंकुर्वन्तितस्यापि मयतुष्टेनसंशय:।।
(अर्थात – स्थारेश्वर महादेव के प्रसन्न होने पर ग्रह, पिशाच, यक्ष, राक्षस कोई भी विघ्न उत्पन्न करेगा, यह नि:संदेह है।)
यह मंदिर शहर की अत्यधिक सघन वस्त्र व्यवसाय के लिए प्रसिद्ध नईपेठ-बंबाखाना क्षेत्र में शनि मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। करीब ५० वर्गफीट के गर्भगृह में ढाई फीट चौड़ी पीतल की जलाधारी के मध्य १० इंच ऊंचा नाग की आकृति से आवेष्ठित स्थावरेश्वर लिंग प्रतिष्ठित है। जलाधारी पर सूय्र व चन्द्र की आकृतियां उत्कीर्ण हैं।
इसी गर्भगृह में शनि, मंगल, बृहस्पति सहित सभी नवग्रह भी लिंग रूप में प्रतिष्ठित है। गर्भगृह का फर्श श्वेत-श्याम टाइल्स से जड़ा है जबकि दीवारों पर गहरे काले रंग टाइल्स लगे हैं। यहां गणेश व पार्वती की मूर्तियां है, कार्तिकेय की नहीं। बाहर २ फीट ऊंचे आसन पर भूरे रंग के नन्दी विराजित है। इस स्थल की पहचान शनि मंदिर के नाम से है।
लिंग के माहात्म्य की कथा-
महादेव ने पार्वती से सूर्य पत्नी संज्ञा द्वारा सृजित छायामयी मूर्ति से शनैश्चर के जन्म की कथा कही। शनैष्चर से भयाक्रान्त इन्द्र ने विधाता से शनैश्चर द्वारा रोहिणी चक्र भेदन करने की बात कही तो विधाता ने सूर्य को शनि को संयमित करने की बात कही।
ब्रह्मा मन ही मन भयभीत होकर श्रीहरि के पास गये, तो वे भी श्ािन का वृतान्त सुनकर भयभीत हो गये। श्रीहरि ने शनि को बुला भेजा। फिर महेश्वर ने जब उससे संसार को कष्ट देने की बात पूछी तो उसने पानीय, आहार तथा स्थान मांगा। महेश्वर ने शनि को उसकी तृप्ति के लिए कुछ राशियां दी तथा सभी गृहों की तुलना में सर्वाधिक पूजित रहने का वरदान दिया।
तुम्हारी गति स्थित होगी, इसलिये तुम स्थावर कहे जाओगे। तुम्हारा वर्ण गज के गण्डस्थल अथवा मेरे कण्ठ जैसा होगा। तुम अधोदृष्टि तथा मन्दगतियुक्त रहोगे। तुम प्रसन्न होकर राज्य तथा दुष्ट स्थिति में होने पर तत्काल मृत्यु कर दोगे। फिर महेश्वर ने शनैश्चर को महाकालवन भेजा तथा वहां एक लिंग विशेष स्थावरेश्वर नाम से प्रसिद्ध होगा। इससे त्रैलोक्य में तुम्हारी कीर्ति होगी।
फलश्रुति –
जो इस लिंग का शनिवार को दर्शन व पूजन करेगा, उसे शनि द्वारा प्रदत्त पीड़ा नहीं होगी। संक्रांति, शनिवार, व्यतीपात तथा अयनकाल में जो भक्तिपूर्वक स्थारेश्वर का दर्शन करेंगे, उनको स्वर्ग में अक्षय स्थान उपलब्ध होगा।