65/84 महादेव : श्री ब्रह्मेश्वर महादेव मंदिर

पञ्चपातक संयुक्तों यो मत्तर्यो दुष्टमानस:।
सो:पि गच्छेच्छिवं स्थानं दृष्ट्वा बह्मेश्वर शिवम्।।

Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!

(अर्थात- जो दुष्ट बुद्धि व्यक्ति पञ्चपातकयुक्त हैं, वह भी ब्रह्मेश्वर लिंग दर्शन द्वारा शिवलोक लाभ करता है।)

यह मंदिर दानी दरवाजा क्षेत्र से दायीं ओर खटीकवाड़ा की दाईं ओर जानेवाली गली में स्थ्ज्ञित है। इसका बाहरी गेट स्टील का है जबकि गर्भगृह का प्रवेश द्वार 5 फीट ऊंचा पूर्वाभिमुख है, भीतर लोहे का द्वारा कालांकित स्तम्भ पर लगा है।

लगभग 90 वर्गफीट के गहरे हरे रंग के टाइल्स से शोभित फर्श पर करीब 3 फीट चौड़ी पीतल की कलात्मक जलाधारी के मध्य प्रतिष्ठित काले पाषण से निर्मित 1 फीट ऊंचे को एक बड़े नाग की आकृति सर्पाकार घेरे हुए है। वहीं श्याम वर्ण के वाहन नंदी शिव सेवा में तत्पर है।

लिंग माहात्म्य की कथा- पूर्वकाल में दैत्यराज पुलोमा ने एक बार दैत्यों को त्रस्त करने का सोचा। वह सागर की ओर गया जहां उसे मधुसूदन शयनात दिखे। उसने दैत्यों से कहा कि मैं इसका वध करूंगा। वह पहले नारायण के नाभि-कमल पर स्थित ब्रह्मा का वध करने दौड़ा। तब नारायण ने ब्रह्म से कहा इसका वध करने का यत्न कीजिये।

हरि ने विधाता को महाकालवन पहुंचकर एक शिव-शक्ति समन्वित लिंग के दर्शन करने तथा वहां से कुण्डेश्वर के कर स्पर्श वाला जल मंगवाया जिससे यह दैत्य मरेगा।

ब्रह्मा ने लिंग का दर्शन कर उसकी स्तुति की। तब उस लिंग रूपी महेश्वर ने ब्रह्मा से पूछा मैं आपका क्या उपकार करूँ । विधाता से दैत्य के अत्याचार सुनकर लिंग ने शस्त्र से उत्पन्न जल प्रदान किया जिससे उन्होंने दैत्याधिपति पुलोमा का वध कर दिया। तदनन्दर श्रीकृष्ण अवंतिका आये तथा उस लिंग का ब्रह्मेश्वर नामकरण कर दिया।

फलश्रुति- जो इस ब्रह्मेश्वर लिंग के दर्शन करता है वह ब्रह्मलोक प्राप्ति के पश्चात कृष्णलोक में जावेगा। इस लिंग का दर्शन करने वाला कृतकृत्य होकर मरकर मोक्ष रूप पद प्राप्त करेगा।

लेखक – रमेश दीक्षित

Related Articles