व्याधयो नोपजायन्ते दारिद््रय न कदाचन्।
ऐष्वर्यंचातुलंतेषां जायते दर्शनात्सदा।।
(अर्थात्- करभेश्वर लिंग के दर्शन के फलस्वरूप मानव को व्याधि तथा दरिद्र पीड़ा नहीं होती, वह व्यक्ति अतुल ऐश्वर्य प्राप्त करता है।)यह महादेव मंदिर भैरवगढ़ में कालभैरव मंदिर द्वार के सामने दायी ओर से श्री विक्रान्त भैरव की ओर जाने वाले मार्ग पर दायीं ओर स्थित हैं। भूमि से 4-5 फीट ऊंचे प्लेटफार्म पर यह मंदिर चारों ओर खुला परकोटा लिये हुए रेलिंग्ज से सुरक्षित है। मध्य में तीन चढ़ाव चढ़कर टाइल्स का द्वार है जिस पर सरकने वाला लोहे का द्वार लगा है।
3 सीढिय़ां चढ़कर करीब 150 वर्गफीट के सुविस्तृत गर्भगृह में प्रवेश करने पर संपूर्ण गोल आकृति से भूषित पीतल की जलाधारी में नाग से आवेष्ठित करीब ढाई फीट परिधि का 1 फीट ऊंचा लिंग प्रतिष्ठित है जो काले पाषाण में दर्शनीय है। यहां जलाधारी पर शंख व सूर्य-चन्द्र के अलावा स्वस्तिक चिह्न, तुरही, बिल्वपत्र तथा ओम की आकृतियां उत्कीर्णित हैं।
उभरे हुए मार्बल के ताक में प्रवेश पर हमारे बाएं गणेश, सम्मुख पार्वती और दाएँ कार्तिकेय की मूर्तियां स्थापित हैं। बाहर सवा फीट ऊँचे आसन पर काले पाषाण के नंदी विराजित हैं। सभामण्डप खुला हुआ है। यह मंदिर 15 वर्षों से अधिक समय पूर्व ध्वस्त-सा हो गया था जिसका सिंहस्थ 2004 के पूर्व जीर्णोद्धार कर संपूर्ण भवन नवनिर्मित किया गया।
लिंग का माहात्म्य- महादेव ने देवी पार्वती को अयोध्या के राजा वीरकेतु की कथा सुनाते हुये बताया कि एक बार मृगया में उसने असंख्य हिंसक पशुओं का वध कर दिया। अंत में संधानित बाण से उसने एक करभ यानी ऊंट को विद्ध कर दिया। करभ अति वेगपूर्वक भागा, राजा ने भी उसका पीछा किया। अन्तत: वह करभ अदृश्य हो गया एक अरण्य में । राजा भी उसी अरण्य में एक तपस्वी के आश्रम जा पहुंचा। उस तपस्वी ने राजा से उसका परिचय व प्रयोजन जाना।
राजा से करभ का संपूर्ण वृतांत सुनकर ध्यान करके राजा तपस्वी ने कहा कि वह करभ महाकालवन चला गया है, वहां महादेव देवताओं के विनोद हेतु करभ रूप धारणकर लिंगरूप में अवस्थित हैं। एक बार हैहयकुल के राजा धर्मध्वज एक विप्र द्वारा शापित किये गये, वे ऊँट बनकर शाप मुक्त हुए तथा महाकालवन में इस लिंग के दर्शन से महेश्वर का परमपद पाया। तदन्तर राजा करभ देहधारी हो गया। विप्र ऋषभ का कथन सुनकर वीर केतु महाकालवन आया तथा लिंग दर्शन के उपरान्त अपनी राजधानी में निष्कंटक राज्य करने लगा।
फलश्रुति- करभेश्वर लिंग के दर्शन से सभी यज्ञों, सभी प्रकार के दान से प्राप्य पुण्य से भी अधिक पुण्य फल की प्राप्ति होती है। करभेश्वर के दर्शन करने से पशुयोनि में पीड़ा भोग रहे पितरों की मुक्ति हो जाती है। इसके दर्शन से मनुष्य की अभिलषित कामना की पूर्ति हो जाती है तथा अंत में वह परमगति पाता है।