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55/84 महादेव :श्री सिंहेश्वर महादेव मंदिर

स्पर्शनादस्य लिङ्गस्यपुनात्यासप्रमंकुलम्।।३०।।
मनसा चिन्तितान्कामांस्तांश्च प्राप्नोति पुष्कलान्।
तदैव पुरुषों मुक्तो जन्मदु:खजरादिभि:।।३१।।

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(अर्थात्- इस लिंग का स्पर्श करने से सात कुल पर्यंत पवित्र हो जाएगा तथा अभिलषित का लाभ होगा। इसका दर्शन करते ही व्यक्ति जन्म-दु:ख-जरा आदिसे छुटकारा प्राप्त करेगा।)

यह मंदिर गढ़कालिका के पहले स्थित स्थिरमन (थलयन) गणेश मंदिर के उत्तर में बड़े क्षेत्र में स्थित है। मूल मंदिर सड़क मार्ग मुख्य गेट के करीब ५० फीट अंदर है। सात सीढिय़ा चढ़कर एक प्लेटफार्म पर ५ फीट ऊंचे पूर्वाभिमुखी प्रवेश द्वार से उतरने पर करीब ६५ वर्गफीट गर्भगृह है।

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इसमें करीब साढ़े तीन फीट चौड़ी स्याह काले प्रस्तर की जलाधारी के बीच ढाई फीट व्यास का पूर्ण गोलाकार आधार लिए करीब एक फीट ऊंचा दिव्य लिंग स्वयं की प्राचीनता का साक्ष्य है। लिंग को पांच फण वाला तांबे का नाग आवेष्टित किए हुए है, समीप त्रिशूल गड़ा है तथा सामने की दीवार पर गणेश व दायें दोनों ही सिंदूरचर्चित पार्वती की मूर्तियां स्थापित हैं। बाहर आसन पर श्यामवर्ण नंदी की प्राचीन प्रतिमा है।

लिंग माहात्म्य की कथा- महाभयनाशक सिंहेश्वर लिंग की कथा कहती है कि संघ:कल्प में पार्वती के तप के प्रभाव से त्रिभुवन तपने लगा, तब ब्रह्मा ने देवी से तप का प्रयोजन पूछा। तुमन वह मुझे (महादेव) को पति के रूप में पाना बताया। ब्रह्मा ने कुछ समय पश्चात तुम्हारी इच्छासिद्धि का वर दिया तो तुम क्रुद्ध हो गई तथा तुम्हारे मुख से एक सिंंह प्रकट हुआ। वह तुम्हें खाने को अद्यत हुआ किंतु तुम्हारे तेज से दग्ध होने लगा तब उसकी पुकार पर उसके दु:ख निवारण हेतु तुमने उसे महाकाल वन भेजकर भगवान के सिंहनाद से अविभूत लिंग का दर्शन कर दिव्य देह पाने का वर दिया था।

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उस लिंग के दर्शन से उसके समस्त पाप नष्ट हो गए। तब देवी तुमने भी सिंह का रूप धारण कर महाकाल वन जाकर सिंह को लिंग के प्रभाव से दिव्य देहधारी देखकर संतोष लाभ किया। इसी कारण उस लिंग का नामकरण तुमने (पार्वती ने) सिंहेश्वर दिया जो प्रसिद्ध हो गया। सिंह रूप में उत्पन्न वाहन अब तुम्हारा वाहन होगा।

फलश्रुति- जो व्यक्ति समाहित होकर इस लिंग का दर्शन करेगा उसे स्वर्ग में अक्षय निवास की प्राप्ति होगी। इसका गुण कीर्तन करने वाले को पाप मुक्ति मिलेगी तथा उसे सर्प, व्याघ्र, चोर तथा साहसिक प्रभृति से त्राण मिलेगा।

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