पंचतत्व में विलीन हुए BJP के वरिष्ठ नेता विष्णु प्रसाद शुक्ला

इंदौर के भाजपा नेता और कांग्रेस के विधायक संजय शुक्ला के पिता विष्णु प्रसाद शुक्ला का गुरुवार दोपहर में निधन हो गया। आज उनका अंतिम संस्कार किया गया। इसमें शहर और प्रदेश के सभी बड़े नेता पहुंच रहे हैं। शव यात्रा बाणगंगा स्थित उनके निवास से निकली। अंतिम संस्कार के बाद शहरवासियों ने बड़े भैया को श्रद्धांजलि दी।

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 भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय, विधायक रमेश मेंदोला, आकाश विजयवर्गीय, वरिष्ठ नेता सुरेश पचौरी, कृष्ण मुरारी मोघे, महापौर पुष्यमित्र भार्गव, विधायक महेंद्र हार्डिया, विधायक विशाल पटेल, पूर्व विधायक सुदर्शन गुप्ता, वरिष्ठ कांग्रेस नेता कृपाशंकर शुक्ला, शहर काजी इशरत अली सहित कई बड़े नेता पहुंच चुके हैं।

विष्णु प्रसाद शुक्ला का पूरा परिवार भाजपा से जुड़ा है। फिर उनका एक बेटा संजय कांग्रेस से विधायक है। हाल ही में संजय शुक्ला ने इंदौर में कांग्रेस महापौर प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ा और भाजपा के पुष्यमित्र भार्गव से हारे। बड़े भैया का दूसरा बेटा राजेंद्र शुक्ला भाजपा से पार्षद रहे हैं।

विधानसभा चुनाव लड़ा, पर हार का सामना करना पड़ा। दरअसल, संजय शुक्ला ही परिवार में पहले और इकलौते नेता हैं, जो विधानसभा चुनाव जीते हैं। बड़े भैया खुद दो बार चुनावों में शिकस्त खा चुके हैं। संजय शुक्ला के चचेरे भाई गोलू शुक्ला भाजपा युवा मोर्चा के अध्यक्ष रहे हैं। भांजा विकास अवस्थी चुनाव संचालन समिति का सदस्य था।

विष्णु प्रसाद शुक्ला ने एक इंटरव्यू में बताया था कि वे हम्माली करते थे। रनगाड़े भी चला चुके हैं। पूरा दिन मेहनत करने के बाद भी 10 रुपये ही बचा करते थे। कुछ समय के लिए मिल की नौकरी भी की। मजदूरों का दर्द समझा और उनके बीच बड़े भाई के रूप में जगह बनाई और इस तरह बड़े भैया के तौर पर ही पहचान हासिल की। भाजपा के वरिष्ठ नेता प्यारेलाल खंडेलवाल के आग्रह पर भाजपा से जुड़े। मसाबंदी में गिरफ्तार होकर 19 महीने जेल में भी रहे। सांवेर जनपद अध्यक्ष बने। दो बार विधानसभा चुनाव लड़ा, पर हार गए।

बड़े भैया के करीबी दोस्त खुरासान पठान ने एक इंटरव्यू में कहा था कि बड़े भैया के दरवाजे से कभी कोई खाली हाथ नहीं लौटा। वे सदैव मदद को तैयार रहे। कई बार विवाद भी हुए। एक बार अटल बिहारी वाजपेयी के परिवार पर संकट आ गया था, तब विष्णुप्रसाद शुक्ला ने खुद पूरे परिवार की मदद की। अलग-अलग ब्राह्मण जातियों को साथ में खड़ा किया और परशुराम जयंती मनाना शुरू किया। यहीं से उनकी समाज में यात्रा शुरू हुई और वे सर्वब्राह्मण संगठन के अखिल भारतीय अध्यक्ष भी रहे।

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