100 करोड़ की ग्रांड होटल अब पर्यटन विभाग बनाएगा हेरिटेज होटल
पहले जमीन बेचने का प्रस्ताव पहुंचा था भोपाल
महाराजवाड़ा भवन की हेरिटेज होटल को भी पर्यटन विभाग को देने की तैयारी
अक्षरविश्व न्यूज. उज्जैन:100 करोड़ की ग्रांड होटल जो नगर निगम के लिए कमाऊपुत बन सकती थी, उसे निगम प्रशासन ने बिना काम का कर दिया। अब इसके सहित हेरिटेज होटल का आकार ले रहा महाराजवाड़ा भवन भी मप्र पर्यटन विभाग (टूरिज्म डिपार्टमेंट) को हैंडओवर करने की तैयारी शुरू हो गई है। ग्रांड होटल की करीब 70 करोड़ रुपए की जमीन को बेचने की कोशिशें नाकामयाब होने के बाद अब यह नया यू टर्न आया है।
ग्रांड होटल यूं तो शहर की शान है और रियासतकाल की धरोहर है, लेकिन नगरनिगम की लापरवाही के कारण यह उसके लिए सफेद हाथी साबित हो रही है। निगम अधिकारियों की मानें तो इससे कमाई कम और मेंटेनेंस पर हर साल करीब 20 लाख रुपए का भार पड़ रहा है। यही कारण है कि तत्कालीन नगर निगम आयुक्त अंशुल गुप्ता के समय इसकी 10,328 वर्गमीटर जमीन बेचने की तैयारी की गई, लेकिन सरकार ने इस प्रस्ताव को लौटा दिया था। इसके पहले पुनर्घनत्वीकरण (री-डेंसिफिकेशन) योजना में विकसित करने की भी योजना बनी, लेकिन वह भी वक्त की आंधी में हवा हवाई हो गई।
शुक्रवार को एमपी टूरिज्म विभाग के एमडी डॉ. इलैया राजा टी ने निगम आयुक्त आशीष पाठक के साथ नगर निगम द्वारा संधारित एवं संचालित ग्राण्ड होटल का निरीक्षण किया। उन्होंने ग्राण्ड होटल के कमरे, मीटिंग हॉल, लान आदि का निरीक्षण किया और होटल को टूरिज्म विभाग को हैंडओवर कर हेरिटेज होटल के रूप में विकसित कर संचालित करने की संभावनाएं टटोली। जल्द ही इस मामले में भोपाल में कोई फैसला हो सकता है। डॉ. राजा ने महाकाल मंदिर के पास महाराजवाड़ा भवन की जगह बन रही हेरिटेज होटल को भी देखा। इसे भी पर्यटन विभाग को हैंडओवर करने की कवायद हो रही है। कुछ समय पहले सीएम डॉ. मोहन यादव महाकाल मंदिर के निर्माण कार्यों का निरीक्षण करने भी आए थे।
बन सकती थी आय का बड़ा स्रोत…
ग्रांड होटल निगम की आय का बड़ा स्रोत बन सकती थी, लेकिन नगर निगम प्रशासन ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया। यह होटल शहर के ऐसे स्थान पर है, जहां लोगों को आवागमन में कोई समस्या नहीं आती। शादियों और मांगलिक कार्यों के लिए यह सबसे अनुकूल जगह है। शहर से करीब 8 किमी दूर की निजी होटलें जमकर कमाई कर रहीं और निगम प्रशासन सिर्फ किराया बढ़ाकर बैठ गया। अगर शादियों के लिए इसमें अत्याधुनिक सुविधाएं और साज सज्जा वाले एयरकंडीशंड रूम उपलब्ध करा दिए जाते तो सालाना मोटी कमाई की जा सकती थी। पुराने जमाने के महल जैसी होने के कारण लोगों में आकर्षण भी ज्यादा होता। अफसरों की अनदेखी और जनप्रतिनिधियों की अरुचि के कारण यह होटल एसबीएम दफ्तर और बैठकों आदि के लिए ही काम आती है। पर्यटन विभाग जब इसे हेरिटेज होटल का रूप देकर कमाई करेगा, तब यह सिद्ध होगा कि निगम के हाथ से कमाऊपुत निकल गया।
80 साल पुराने क्वार्टर्स
होटल परिसर में 28 क्वार्टर हैं, जिनमें नगर निगम के अधिकारी और कर्मचारी रहते हैं। होटल के रखरखाव पर काफी पैसा खर्च होता है। क्वार्टर्स के रखरखाव पर भी निगम को खर्चा उठाना पड़ता है। दो साल पहले नगर निगम ने होटल की जमीन बेचने के लिए नगरीय प्रशासन एवं विकास विभाग से अनुमति मांगी थी, लेकिन विभाग ने यह फाइल यह कहकर लौटा दी थी कि महापौर परिषद के माध्यम से यह। प्रस्ताव भेजा जाए। परिसर में 10,328 वर्गमीटर जमीन है। कलेक्टर गाइडलाइन की दर 65,600 रुपये प्रति वर्गमीटर के हिसाब से जमीन की कीमत 67 करोड़ 78 लाख रुपये से ज्यादा है।
पूरी प्रॉपर्टी की कीमत 100 करोड़ से ज्यादा है।
ग्रांड होटल परिसर में मैरिज गार्डन, पीछे की ओर करीब 10 हजार वर्ग मीटर जमीन है।
इस पर महापौर, निगम अध्यक्ष व निगमायुक्त के बंगलों के साथ ही एक दर्जन से अधिक कर्मचारियों के शासकीय मकान भी है।
परिसर में 28 आवासीय क्वार्टर हैं।
जमीन की बेस प्राइज लगभग 70 करोड़ रुपए आंकी गई है।
निगम ग्रांड होटल को 20 साल के लीज पर देने का प्रयास भी कर चुका है।
इसलिए बनी सफेद हाथी…
नगर निगम ग्रांड होटल का संचालन और संधारण करता है। कर्मचारी, बिजली, मेंटेनेंस आदि पर निगम को प्रति वर्ष करीब 20 लाख रुपए खर्च करना पड़ते हैं। पहले होटल में शादियां होने से अच्छी कमाई भी हो जाती थी, लेकिन बाद में निगम ने इसका किराया बढ़ा दिया तो लोगों ने दूरी बना ली। कारण यह कि किराया अधिक देने के बाद भी सुविधाएं निजी होटल जैसी नहीं मिल पाती हैं। इस कारण सालभर के एक लाख रुपए भी मुश्किल से मिल पाते हैं।
अभी खर्च ज्यादा
ग्रांड होटल के रखरखाव पर सालाना 20 लाख रुपए का भार पड़ता है, जबकि इससे कमाई बहुत कम ही हो पाती है।-मुकेश टटवाल, महापौर