शरद पूर्णिमा पर चंद्रमा की किरणों से होती है अमृतवर्षा

शरद पूर्णिमा… कल निकलेगा पूनम का चांद
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16 अक्टूबर को रात 8.40 बजे से प्रारंभ होगी शरद पूर्णिमा
अक्षरविश्व न्यूज उज्जैन। सनातन धर्म में शरद पूर्णिमा का विशेष महत्व है। इस बार १६ अक्टूबर को शरद पूर्णिमा मनाई जाएगी। इस दिन रात 8.40 बजे से शरद पूर्णिमा की शुरुआत होगी और 17 अक्टूबर को शाम 4.55 बजे तक रहेगी। इस दिन चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से पूर्ण होता है।
ज्योतिषाचार्य पं. अजय कृष्ण शंकर व्यास ने बताया कि शरद पूर्णिमा हर साल आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को मनाई जाती है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार पूरे सालभर में 12 पूर्णिमा तिथियां होती हैं जिसमें शरद पूर्णिमा को विशेष माना जाता है। शरद पूर्णिमा को कोजागरी पूर्णिमा और कौमुदी व्रत भी कहते हैं। शास्त्रों के अनुसार शरद पूर्णिमा के दिन मां लक्ष्मी भगवान विष्णु के साथ गरूड़ पर बैठकर पृथ्वी लोक में भ्रमण के लिए आती हैं और भक्तों पर अपनी कृपा बरसाती हैं।
सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है चंद्रमा
शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है। चांद से निकलने वाली किरणें इतनी शक्तिशाली मानी जाती हैं कि इनमें कई तरह के रोगों को नष्ट करने की क्षमता होती है। ऐसे में रात में खुले आसमान के नीचे चंद्रमा की किरणों में खीर रखी जाती है और अगले दिन सुबह उसे खाया जाता है। इस दिन चंद्रमा की किरणों से अमृत वर्षा होती है जिसे अमृतकाल भी कहा जाता है।
मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए
इस दिन धन की देवी मां लक्ष्मी, श्री हरि विष्णु पूजा की जाती है। इस दिन श्रीसूक्त, लक्ष्मी स्रोत का पाठ करके हवन करना चाहिए। इसके अलावा मां लक्ष्मी को खीर, सिंघाड़ा, दही, मखाना, बताशा और पान का भोग लगाना चाहिए। इस दिन व्रत रखने से धन संबंधी समस्याओं से मुक्ति मिलती है।
पृथ्वी के सबसे करीब होता है चंद्रमा
भौगोलिक स्थिति की बात करें तो रात में चंद्रमा किसी भी अन्य वस्तु की तुलना में बहुत बड़ा दिखाई देता है। ऐसा केवल इसलिए है क्योंकि यह पृथ्वी के सबसे निकट का खगोलीय पिंड है। वास्तव में चंद्रमा का व्यास 3,47४.८ किलोमीटर है जो पृथ्वी के आकार का लगभग एक चौथाई है। पृथ्वी से देखने पर चंद्रमा का वह भाग जो सीधे सूर्य के प्रकाश में होता है, उसे चंद्रकला कहते हैं। चंद्रमा के प्रकाश से रात में भी सारी चीजें स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। इस रोशनी से धरती पर शीतलता की अनुभूति होती है।
कान्हा ने रचाया था महारास
मान्यता है कि शरद पूर्णिमा के दिन भगवान श्रीकृष्ण ने गोपियों के साथ महारास रचाया था। इसी के चलते आज भी विभिन्न स्थानों पर विभिन्न धार्मिक आयोजन होते हैं और उसके माध्यम से भगवान की आराधना की जाती है। इस दिन का लोगों को भी बेसब्री से इंतजार रहता है।
किरणों से निकलती है सकारात्मक ऊर्जा
शरद पूर्णिमा पर चंद्रमा की किरणों से निकलने वाली सकारात्मक ऊर्जा से मानव शरीर और मस्तिष्क को फायदा होता है। शरद पूर्णिमा पर चंद्र ज्योत्सना से अन्न, जल, और वनस्पतियों को औषधीय गुण मिलते हैं। आयुर्वेदाचार्य इस दिन अपनी जड़ी-बूटियों को चंद्रमा की रोशनी में रखते हैं ताकि वे ज्यादा प्रभावशाली बन सकें।