हर हर्बल लिखा कास्मेटिक आयुर्वेदिक नहीं हो सकता…..!

मुंबई के डॉ. शुक्ला ने कहा- सबसे पहले उत्पाद पर छपे लायसेंस को देखें, ए व्हाय लिखा हो तो ही वह हर्बल माना जाएगा

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अक्षरविश्व न्यूज. उज्जैन बाजार में आयुर्वेद के नाम पर अनेक कास्मेटिक आ गए हैं। अनेक उत्पादों पर हर्बल लिखा होता है। आयुर्वेद के जानकारों का कहना है कि हर किसी उत्पाद को आयुर्वेदिक मानने से पहले उसके लायसेंस को देख लें। उत्पाद के साथ प्रिंट की गई जानकारी में उसके लायसेंस के साथ लिखा होगा- ए व्हाय (AY)। अर्थात आयुर्वेदिक…यह एफडीए से एप्रूव्ड रहता है। खासकर कास्मेटिक को लेकर बहुत सावधानी रखें,वरना आपका चेहरा बिगड़ सकता है।

विश्व आयुर्वेद परिषद् के शिक्षक प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय प्रमुख डॉ. अनिल कुमार शुक्ला, मुंबई ने यह बात साझा की। वे उज्जैन के आयुर्वेद चिकित्सा महाविद्यालय में आयोजित आयुर्वेद कौशल एवं व्यक्तित्व विकास शिविर में शामिल होने आए हैं। इस शिविर में देशभर के आयुर्वेद विद्यार्थी शामिल हुए हैं। चर्चा में डॉ. शुक्ला ने बताया कि विश्व में आयुर्वेद औषधियों की जितनी मांग है,उतनी वनस्पति तो है नहीं। ऐसे में अनेक कम्पनियां संबंधित आयुर्वेदिक औषधि के जिन्स को कॉपी करके हुबहू वैसी ही रासायनिक संरचना तैयार करती हैं। ये संरचनाएं वैसा ही परिणाम देती है लेकिन पूर्ण प्राकृतिक जैसा नहीं। उदाहरण दिया कि यदि किसी साबुन में लिखा है कि वह हल्दी-चंदन से बना है तो इसका मतलब यह नहीं कि उसमें पूरी तरह से हल्दी ओर चंदन ही मिला हुआ है। यह होगा भी तो 20 प्रतिशत तक। शेष 80 प्रतिशत तो रासायनिक घोल होगा।

इसीलिए सरकार कम्पनियों को हर्बल उत्पाद का लायसेंस देती है तो उसकी प्रामाणिकता जांचने के बाद अनुमति देती है कि उत्पाद पर वे लिख लें-ए व्हाय। उन्होंने बताया कि जानकारी के अभाव में अनेक बार कतिपय कम्पनियों के नाम से जाली उत्पाद बाजार में आ जाते हैं और खासकर कास्मेटिक के मामले में महिलाएं, युवतियां अपने चेहरे का मूल अस्तित्व ही खो देती है। केमिकल रिएक्शन के बाद चेहरा एक बार बिगड़ जाता है तो फिर पुराना वैभव नहीं लौटता। उन्होने चर्चा में बताया कि आजकल आमतौर पर फैशियल करवाना रिवाज जैसा हो गया है। सेलून या पार्लर पर जाओ और फेशियल करवा लो। जो रेट लिस्ट पर लिखा है,उसे पढ़ लो। अपने पर्स का वजन और रेट लिस्ट पर लिखी भाषा का वजन तोलकर निर्णय ले लो। वास्तव में देखना यह है कि जो चेहरे पर लगाया जाएगा वह कितना रासायनिक है और कितना हर्बल…? पूछने पर संबंधित भी जवाब नहीं दे पाएगा क्योंकि वह भी सुनकर/विज्ञापन देखकर ही उत्पाद खरीदकर लाया है। ऐसे में सावधान रहना जरूरी है।

डॉ. शुक्ला के अनुसार वे कास्मेटिक की बात इसलिए कर रहे हैं क्योंकि हर कोई सुंदर से सुंदर दिखना चाहता है। चेहरे पर ग्लो आए, उसके लिए जतन किए जा रहा है। आयुर्वेद कहता है कि चेहरे पर मिट्टी का मिश्रण लगाओ। नेचुरल ग्लो आएगा। यदि कोई पार्लर/सेलूनवाला यह काम करेगा तो उसका धंधा बंद हो जाएगा। ऐसे में निर्णय तो पब्लिक को करना है। निर्णय से भी जरूरी है जानकारी निकालना,जोकि उत्पाद पर छपी रहती है। आपके पास गूगल है। आप उस पर उत्पाद की जानकारी निकाल लें,सारा दूध का दूध-पानी का पानी हो जाएगा। उनके अनुसार यह बात वे बतौर सावधानी कह रहे हैं,उन्हे किसी उत्पाद या विक्रेता/सेवा दाता से कोई शिकायत नहीं है। वहां आदमी अपनी मर्जी से जाता है,ऐसे में भविष्य के किसी रिएक्शन के लिए वही जिम्मेदार होता है। डॉ.शुक्ला के अनुसार भारत सरकार ने औषधि निर्माण अनुसंधान के तहत कुछ शर्ते/नियम लगा रखे हैं। द्रव्य के गुण के आधार पर ही उत्पाद की गुणवत्ता की बात की जा सकती है।

क्या कहता है आयुर्वेद

जब डॉ.शुक्ला से पूछा गया कि हर कोई किसी भी बीमारी के लिए आयुर्वेदिक उपचार लेने के लिए तत्पर दिखाई दे रहा है। ऐसे में आपका क्या कहना है? डॉ. शुक्ला ने बताया- आयुर्वेद कहता है कि आयुर्वेदिक दवाईयों का सेवन आहार के रूप में किया जाता है,लम्बे समय तक किसी बीमारी के निदान के लिए नहीं। ये औषधियां इम्युनिटी डेव्हलप करती है। शरीर के अंगों को काम करने के लिए तैयार करती है न कि बीमारी को नष्ट करने हेतु। यदि शरीर स्वस्थ है तो बीमारी से वह अपने आप लड़ लेगा। आयुर्वेदिक औषधि किसी एक जड़ी-बूटी से नहीं बनती है। ये दवाईयां मिश्रण होती है। आयुर्वेद में एक शब्द है- आहार,निद्रा एवं ब्रम्हचर्य। इसका पालन करने पर शरीर अपने आप स्वस्थ रहता है। किसी दवाई की जरूरत नहीं होती है। उन्होने दावा किया कि आधी बीमारियां तो कथित रूप से बहुराष्ट्रीय कम्पनियां बता रही है अपने उत्पादों को बेचने के लिए।

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