ख्यात पुराविद् पद्मश्री केके मोहम्मद ने कहा- पिछले 10 साल में भारत में आर्कियोलॉजी डिकलाइन नहीं डाउनफाल हुई
अक्षरविश्व न्यूज उज्जैन. ख्यात पुराविद पद्मश्री केके मोहम्मद का कहना है कि ताजमहल और कुतुबमीनार में मंदिर तलाशने की बातें आर्कियोलॉजी के हिसाब से बेबुनियाद है, क्योंकि इन संरचनाओं का ११वीं सदी से कोई ताल्लुक नहीं है। पिछले 10 वर्षों में आर्कियोलॉजी डिकलाइन से ज्यादा डाउनफाल हुई है। मोहम्मद उज्जैन में विक्रम महोत्सव के तहत आयोजित अंतरराष्ट्रीय इतिहास समागम में शामिल होने आए थे।
इस दौरान उन्होंने मीडिया से खुलकर चर्चा की। उनसे यह पूछा गया था कि ताजमहल और कुतुबमीनार क्या मंदिर हैं। इस पर उन्होंने कहा ताजमहल और कुतुबमीनार का इश्यू बेबुनियाद है। एक्सट्रीम हिंदू कम्युनिटी इसे ११वीं सदी का शिव मंदिर बताती है, लेकिन ११वीं सदी में भारत में कभी भी आर्च नहीं था।
आर्च भारत में 13वीं सदी में आया। ताजमहल में डोम है। डोम दो तरह के होते हैं। सिंगल और डबल। सिंगल डोम 1192 से 1526 के बीच प्रचलन में था। यह दौर सल्तनत काल का था। डबल डोम मुगल काल में थे। यह दौर 1526 से आगे का है। ताजमहल में डबल डोम है। फिर मिनरेट हैं। अकबर के मकबरे में पहली बार मिनररेट आया है। इसमें इनलेवर है जो जहांगीर के समय का है। ऐसे में दोनों संरचनाओं को 11वीं सदी का नहीं माना जा सकता है।
मथुरा-वाराणसी का मुद्दा मुस्लिम कम्युनिटी छोड़े
मोहम्मद ने कहा कि बाबरी मस्जिद का हल बेहतर तरीके से हो गया। इसी तरह वाराणसी और मथुरा का मुद्दा भी मुस्लिम कम्युनिटी को छोड़ देना चाहिए। हिंदू कम्युनिटी को भी उदारता दिखानी चाहिए और अन्य जगहों की लिस्ट नहीं लानी चाहिए नहीं तो भारत में भी सीरिया और अफगानिस्तान जैसी स्थिति हो जाएगी।
कल्चर को अहमियत नहीं
कल्चर को बचाने की नीति से मोहम्मद खुश नहीं है। उनका कहना है कि लोगों को बहुत उम्मीद थी लेकिन यह पूरी नहीं हुई है। पिछले 10 साल में आर्कियोलॉजी डिकलाइन नहीं डाउनफाल हुई है। १० साल पहले तक एएसआई ने 80 मंदिरों को संरक्षित किया था। फिलहाल पिछले 10 साल में एक भी मंदिर संरक्षित नहीं हुआ। बुद्दा का अधिकतर समय भारत में बीता लेकिन बुद्दा की मार्केटिंग श्रीलंका, कंबोडिया जैसे देश कर रहे हैं। भारत को अपने पुरातत्व की मार्केटिंग करने की जरूरत है, ताकि बड़ी संख्या में पर्यटक यहां आ सकें ।
रामसेतु नैचुरल है
रामसेतु के बारे में मोहम्मद ने कहा कि वह नैचुरल है। इसको त्रेतायुगीन साबित करने के लिए नासा का नाम लेना ठीक नहीं है, क्योंकि पूरी दुनिया पहले गोल थी फिर बाद में बदलाव आया। साउथ-ईस्ट एशिया में नैचुरल फार्मेशन था। उस जमाने में इतना बड़ा स्ट्रक्चर बनाना मुश्किल था। यह कहना भी ठीक नहीं है कि उस जमाने में हमारे पास विमान था और हम सर्जरी करते थे। यह सब बातें साइंस की दृष्टि से ठीक नहीं है। हमें साइंटिफिक दृष्टि से सोचना होगा।
विक्रमादित्य पर अलग-अलग चर्चा
विक्रमादित्य को लेकर मोहम्मद ने कहा कि उनको लेकर अलग-अलग अवधारणाएं हैं। उन्हें मगध का भी माना जाता है और उज्जैन का भी। इस पर डिस्कशन चल रहा है। उनके बारे में बहुत सारी किवदंतियां हैं। अभी भी बहुत शोध करने की जरूरत है। उज्जैन में भी काफी शोध करने की आवश्यकता है।
सनातन सबके लिए उदार
मोहम्मद ने श्रीकृष्ण पाथेय पर बात की। उनका कहना है कि आर्कियोलाजी सतयुग, द्वापर और कलयुग को नहीं मानती। वह तो पद्धति पर चलती है। हम साइंटिफिक है उसे ही मानना चाहिए। हर रिलीजन में मायथालॉजी है। लेकिन अब समय आ गया है कि हम मायथालॉजी को साइंस की दृष्टि से देखें। अन्य धर्म के अनुयायी अपने धर्म को श्रेष्ठ मानते है, और दूसरे धर्म वालों को भी अपने धर्म में शामिल करना चाहते हैं। सनातन में ऐसा नहीं है वह उदार है। यहां किसी भी मत को आप मान सकते हैं। शिव को, श्रीकृष्ण को मानिए और ना हो तो किसी को भी न मानिए। हिंदू जैसा ग्रेट रिलीजन नहीं हो सकता है। १ हजार साल बाद यदि इंसान को किसी धर्म की जरूरत होगी तो वह सनातन होगा।