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कार्तिक पूर्णिमा से पहले शिप्रा का आंचल मैला

15 नवंबर को कार्तिक पूर्णिमा, स्नान और दीपदान की परंपरा

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पानी से आ रही बदबू, तैर रहा कचरा

अक्षरविश्व न्यूज उज्जैन। मोक्षदायिनी शिप्रा के शुद्धिकरण के लिए चाहे कितनी ही बड़ी-बड़ी बातें की जाएं लेकिन हकीकत तो यही है कि आज भी मां शिप्रा में गंदे नालों का मिलना बदस्तूर जारी है। इंदौर से आने वाली कान्ह नदी का पानी और शहर से निकलने वाले नाले शिप्रा के आंचल को मैला कर रहे हंै। ऐसे में बाहर से आने वाले श्रद्धालु हकीकत पता नहीं होने के कारण गंदे पानी में ही आस्था की डुबकी लगा रहे हैं लेकिन स्थानीय लोग स्नान तो दूर आचमन से भी बच रहे हैं। मोक्षदायिनी कहलाने वाली मां शिप्रा स्वयं के मोक्ष का इंतजार कर रही है।

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अभी कार्तिक मास चल रहा है। सनातन धर्म में इसे बेहद पवित्र महीना माना गया है। इस मास में किया स्नान, दान व तुलसी पूजा कभी ना खत्म होने वाला पुण्य देते हैं। जीवन में सुख-समृद्धि, ऐश्वर्य, आरोग्य, विजय और मानसिक शांति की प्राप्ति होती है। साथ ही व्यक्ति मृत्यु के बाद जन्म-मरण के बंधन से मुक्त होकर मोक्ष हासिल करता है। इसी के तहत पवित्र नदियों में स्नान की परंपरा है। कार्तिक मास में बड़ी संख्या में लोग स्नान के लिए आते हैं, बावजूद इसके नदी का पानी गंदा है। इतना ही नहीं रामघाट पर जगह-जगह कचरा पड़ा है। नदी के पानी में पूजन सामग्री तैर रही है।

15 को कैसे होगा दीपदान

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15 नवंबर को कार्तिक पूर्णिमा है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान कर दीपदान किया जाता है। शिप्रा में बड़ी संख्या में महिलाएं दीपदान के लिए पहुंचती हैं लेकिन इस बार अब तक स्नान के लिए ना तो पानी बदला गया है और ना ही पूरी तरह से कचरा हट सका है। ऐसे में कार्तिक पूर्णिमा पर स्नान कैसे होगा, यह जिम्मेदारों को सोचना चाहिए।

भूखी माता पर नदी में तैर रहे मूर्तियों के अवशेष

भूखी माता क्षेत्र में नदी में नवरात्रि के पश्चात माता की मूर्तियों का विसर्जन किया गया था। इसके अवशेष अब तक नदी में ही पड़े हैं। पानी कम होने से इन्हें स्पष्ट देखा जा सकता है। इसके अलावा मलबा और गंदगी भी पड़ी है। ऐसे में यहां दर्शन के लिए आने वाले श्रद्धालु शिप्रा की दुर्दशा से आहत हैं।

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