क्षेत्रीय दलों के माध्यम से विपक्षी गठबंधन को कमजोर करने की रणनीति, कांग्रेस भी गठबंधन की राजनीति पर दे रही जोर
नईदिल्ली (एजेंसी) बीते लोकसभा चुनाव में केंद्र में ताकत घटने के बाद भाजपा की रणनीति में बदलाव आ रहा है। पार्टी अब विरोधी दलों से निपटने के लिए गठबंधन की राजनीति को ज्यादा तरजीह दे रही है। इसमें एनडीए के विस्तार के साथ उसे मजबूत करना सबसे अहम है। खासकर उन राज्यों में जहां भाजपा के मुकाबले विपक्षी गठबंधन मजबूत है।
तमिलनाडु विधानसभा चुनाव अभी साल भर दूर है, लेकिन समय की नजाकत को समझते हुए भाजपा ने अन्नाद्रमुक के साथ एक बार फिर गठबंधन कर लिया है। दूसरी तरफ कांग्रेस भी गठबंधन की राजनीति पर जोर दे रही है और इंडिया गठबंधन के तमाम अंतर्विरोधों के बावजूद इस रास्ते पर चलकर भाजपा को चुनौती दे रही है। हालांकि इसमें सफलता उसे नहीं मिल रही है।
सीमित हो गई थी हिस्सेदारी
भाजपा ने 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में बड़ी जीत के बाद खुद का विस्तार तेजी से किया था। भाजपा को देश के विभिन्न हिस्सों से व्यापक समर्थन मिल रहा था, इसलिए गठबंधन के दलों पर उसकी निर्भरता कम हो रही थी। एनडीए बरकरार था, लेकिन उसमें सहयोगी दलों की उपस्थित बहुत ज्यादा अहमियत नहीं रखती थी। केंद्र सरकार में भी सहयोगी दलों की हिस्सेदारी सीमित थी।
मजबूत गठबंधन जरूरी
भाजपा ने बिहार, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, यूपी, झारखंड और पूर्वोत्तर में अपने गठबंधन को मजबूत बनाए रखा है। हाल में संसद में वक्फ अधिनियम पर उसने इसकी मजबूती साबित की। 2029 तक केंद्रीय स्तर पर भाजपा को गठबंधन की राजनीति के सहारे ही आगे बढऩा है, इसलिए मजबूती गठबंधन जरूरी है।
तमिलनाडु: प्रदेशध्यक्ष बदला
सूत्रों के अनुसार भाजपा को कुछ राज्यों के सामाजिक और राजनीतिक समीकरणों में खुद को ताकत बनाने में अभी समय लगना है। इसलिए पार्टी वहां गठबंधन के विस्तार पर चल रही है। यही वजह है कि विपक्षी गठबंधन के मजबूत राज्य तमिलनाडु में भाजपा ने अन्नाद्रमुक के साथ गठबंधन किया है। अन्नाद्रमुक के विरोध को देखते हुए अपना प्रदेश अध्यक्ष भी बदला।