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कब है दशहरा? 1 या 2 अक्टूबर? नोट करें शुभ मुहूर्त

सनातन धर्म का प्रमुख एवं प्रसिद्ध त्यौहार है दशहरा जो बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में जाना जाता है। शारदीय नवरात्रि और दुर्गा पूजा के अंतिम दिन को दशहरा के रूप में मनाने का रिवाज़ है। इस पर्व को अत्यंत उत्साह, आस्था एवं धूमधाम से देशभर में मनाया जाता है। दशहरा को विजयदशमी के नाम से भी जाना जाता है।

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दशहरा 2025 की तिथि एवं मुहूर्त
हिन्दू कैलेंडर के अनुसार, दशहरा को प्रतिवर्ष अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को अपराह्न काल में मनाया जाता है। इस पर्व को बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना गया है। यह प्रमुखता से सितंबर या अक्टूबर के महीने में आता है जिसकी रौनक उत्तरी और पश्चिमी भारत में देखने को मिलती है।

दशहरा 2025 इस वर्ष 2 अक्टूबर, गुरुवार को मनाया जाएगा, जानिए इस खास दिन से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें और विजय मुहूर्त व रावण दहन।

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रावण दहन का शुभ मुहूर्त 2025

हिंदू पंचांग के मुताबिक, विजयादशमी (दशहरा) के दिन रावण दहन प्रदोष काल में किया जाता है। प्रदोष काल सूर्यास्त के बाद शुरू होता है। इस बार दशहरा पर सूर्यास्त का समय शाम 6:05 बजे रहेगा, इसलिए रावण दहन भी इसी समय के बाद किया जाएगा।

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दशहरा को अबूझ मुहूर्त भी कहा जाता है। इसका मतलब है कि इस दिन किसी भी शुभ काम के लिए अलग से मुहूर्त देखने की जरूरत नहीं होती।

दशहरा की पूजा विधि
दशहरा की पूजा सदैव अभिजीत, विजयी या अपराह्न काल में की जाती है।

अपने घर के ईशान कोण में शुभ स्थान पर दशहरा पूजन करें।

पूजा स्थल को गंगा जल से पवित्र करके चंदन का लेप करें और आठ कमल की पंखुडियों से अष्टदल चक्र निर्मित करें।

इसके पश्चात संकल्प मंत्र का जप करें तथा देवी अपराजिता से परिवार की सुख-समृद्धि के लिए प्रार्थना करें।

अब अष्टदल चक्र के मध्य में ‘अपराजिताय नमः’ मंत्र द्वारा देवी की प्रतिमा स्थापित करके आह्वान करें।

इसके बाद मां जया को दाईं एवं विजया को बाईं तरफ स्थापित करें और उनके मंत्र “क्रियाशक्त्यै नमः” व “उमायै नमः” से देवी का आह्वान करें।

अब तीनों देवियों की शोडषोपचार पूजा विधिपूर्वक करें।

शोडषोपचार पूजन के उपरांत भगवान श्रीराम और हनुमान जी का भी पूजन करें।

सबसे अंत में माता की आरती करें और भोग का प्रसाद सब में वितरित करें।

दशहरा पर संपन्न होने वाली पूजा
शस्त्र पूजा: दशहरा के दिन दुर्गा पूजा, श्रीराम पूजा के साथ और शस्त्र पूजा करने की परंपरा है। प्राचीनकाल में विजयदशमी पर शस्त्रों की पूजा की जाती थी। राजाओं के शासन में ऐसा होता था। अब रियासतें नहीं है, लेकिन शस्त्र पूजन को करने की परंपरा अभी भी जारी है।

शामी पूजा: इस दिन शामी पूजा करने का भी विधान है जिसके अंतर्गत मुख्य रूप से शामी वृक्ष की पूजा की जाती है। इस पूजा को मुख्य रूप से उत्तर-पूर्व भारत में किया जाता है। यह पूजा परंपरागत रूप से योद्धाओं या क्षत्रिय द्वारा की जाती थी।

अपराजिता पूजा: दशहरा पर अपराजिता पूजा भी करने की परंपरा है और इस दिन देवी अपराजिता से प्रार्थना की जाती हैं। ऐसा मान्यता है कि भगवान श्रीराम ने रावण को युद्ध में परास्त करने के लिए पहले विजय की देवी, देवी अपराजिता का आशीर्वाद प्राप्त किया था। यह पूजा अपराहन मुहूर्त के समय की जाती है, साथ ही आप चौघड़िये पर अपराहन मुहूर्त भी देख सकते हैं।

दशहरा का महत्व
विजयदशमी या दशहरा का त्यौहार हिन्दू धर्म में विशेष मान्यता रखता है जो असत्य पर सत्य की जीत का पर्व है। इस त्यौहार से जुड़ीं ऐसी अनेक धार्मिक मान्यताएं है जिसके बारे में हम आपको अवगत कराएंगे।

दशहरा से जुड़ीं ऐसी पौराणिक मान्यता है कि इस दिन मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम ने लंकापति रावण का वध किया था। वहीँ, देवी दुर्गा ने असुर महिषासुर का संहार किया था इसलिए इसे कई स्थानों पर विजयदशमी के रूप में मनाया जाता है।

दशहरा तिथि पर कई राज्यों में रावण की पूजा करने का भी विधान है। इस दिन देश में कई जगह मेले आयोजित किये जाते है।

दशहरे से 14 दिन पहले तक पूरे भारत में रामलीला का मंचन किया जाता है, जिसमें भगवान राम, श्री लक्ष्मण एवं सीता जी के जीवन की लीला दर्शायी जाती है। विभिन्न पात्रों के द्वारा मंच पर प्रदर्शित की जाती है। विजयदशमी तिथि पर भगवान राम द्वारा रावण का वध होता है, जिसके बाद रामलीला समाप्त हो जाती है।

दशहरा कथा
अयोध्या नरेश राजा दशरथ के पुत्र भगवान श्रीराम अपनी अर्धागिनी माता सीता और भाई लक्ष्मण के साथ 14 वर्ष के वनवास पर गए थे। वन में दुष्ट रावण ने माता सीता का अपहरण कर लिया और उन्हें लंका ले गया। अपनी पत्नी सीता को दुष्ट रावण से मुक्त कराने के लिए दस दिनों के भयंकर युद्ध के बाद भगवान राम ने रावण का वध किया था। उस समय से ही प्रतिवर्ष दस सिरों वाले रावण के पुतले को दशहरा के दिन जलाया जाता है जो मनुष्य को अपने भीतर से क्रोध, लालच, भ्रम, नशा, ईर्ष्या, स्वार्थ, अन्याय, अमानवीयता एवं अहंकार को नष्ट करने का संदेश देता है।

महाभारत में वर्णित पौराणिक कथा के अनुसार, जब पांडव दुर्योधन से जुए में अपना सब कुछ हार गए थे। उस समय एक शर्त के अनुसार पांडवों को 12 वर्षों तक निर्वासित रहना पड़ा था, ओर एक साल के लिए उन्हें अज्ञातवास पर भी रहना पड़ा था। अज्ञातवास के समय उन्हें सबसे छिपकर रहना था और यदि कोई उन्हें पहचान लेता तो उन्हें दोबारा 12 वर्षों का निर्वासन झेलना पड़ता। इसी वजह से अर्जुन ने उस एक वर्ष के लिए अपनी गांडीव धनुष को शमी नामक पेड़ पर छुपा दिया था और राजा विराट के महल में एक ब्रिहन्नला का छद्म रूप धारण करके कार्य करने लग गए थे। एक बार जब विराट नरेश के पुत्र ने अर्जुन से अपनी गायों की रक्षा के लिए सहायता मांगी तब अर्जुन ने शमी वृक्ष से अपने धनुष को वापिस निकालकर दुश्मनों को पराजित किया था।

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