कब है करवा चौथ व्रत? जानें शुभ मुहूर्त और महत्व……

भारत में विशेष रूप से सुहागिन महिलाओं द्वारा मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण त्योहार है। यह पर्व दंपत्ति जीवन में सुख-समृद्धि, पति की लंबी उम्र और परिवार में खुशहाली की कामना के लिए मनाया जाता है। इस दिन महिलाएं पूरे दिन व्रत रखती हैं और रात में चांद के दर्शन के बाद ही व्रत का पारण करती हैं। करवा चौथ का व्रत सिर्फ शारीरिक रूप से ही नहीं बल्कि भावनात्मक और आध्यात्मिक रूप से भी महत्वपूर्ण माना जाता है।
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हर साल करवा चौथ कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन महिलाएं सूर्योदय से व्रत शुरू करती हैं और चांद निकलने के समय तक कोई भी भोजन नहीं करती हैं। व्रत के दौरान महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और दंपत्ति जीवन की खुशहाली के लिए प्रार्थना करती हैं। इस पर्व को लेकर पूरे भारत में अलग-अलग रीति-रिवाज हैं, लेकिन इसका मूल उद्देश्य पति-पत्नी के बीच प्रेम और समर्पण को बढ़ावा देना है।
करवा चौथ का शुभ मुहूर्त और समय
पंचांग के अनुसार, इस साल करवा चौथ 10 अक्टूबर को मनाया जाएगा। कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि 09 अक्टूबर की देर रात 10 बजकर 54 मिनट से शुरू होगी और 10 अक्टूबर की शाम 07 बजकर 38 मिनट तक चलेगी। पूजा करने का शुभ मुहूर्त सुबह 05 बजकर 16 मिनट से शाम 06 बजकर 29 मिनट तक रहेगा। वहीं, चांद का दीदार यानी चंद्रोदय का समय शाम 07 बजकर 42 मिनट है। इस समय पर महिलाएं सबसे पहले चंद्रमा को देखकर पूजा करती हैं और फिर व्रत का पारण करती हैं।
करवा चौथ व्रत का महत्व-
करवा चौथ का व्रत धार्मिक और पारिवारिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र, स्वास्थ्य और खुशहाली के लिए विशेष रूप से प्रार्थना करती हैं। व्रत के दौरान महिलाएं दिनभर उपवास रखती हैं और शाम को चंद्रमा को देखकर ही पानी या भोजन ग्रहण करती हैं। व्रत रखने वाली महिलाएं सज-धजकर, पारंपरिक साड़ी और भारी आभूषण पहनती हैं।चूड़ियां, हाथों में मेहंदी और माथे पर बिंदी होती है। यह पर्व महिलाओं के लिए एक तरह से अपने पति के प्रति प्रेम और समर्पण प्रकट करने का अवसर भी होता है।
करवा चौथ पूजा के लिए आवश्यक सामग्री-
फूल, कच्चा दूध, शक्कर, घी, अगरबत्ती, दही, मिठाई, गंगाजल, अक्षत (चावल), सिंदूर, मेहंदी, चूड़ियां, बिछुए, महावर (सात रंगों वाला धागा), कंघा, बिंदी, चुनरी, पीली मिट्टी, चलनी, जल से भरा लोटा, दीपक, पूजन थाली। सुबह-सुबह महिलाएं व्रत की तैयारी करती हैं। इसके बाद दिनभर कोई भोजन नहीं करती। शाम को चांद निकलने के समय, महिलाएं चंद्रमा को देखकर पूजा करती हैं। पूजा के बाद जल ग्रहण कर व्रत का पारण करती हैं। करवा चौथ केवल एक व्रत नहीं है, बल्कि यह पति-पत्नी के रिश्ते में विश्वास, प्रेम और समर्पण को मजबूत करने का पर्व भी है। यह पर्व महिलाओं के उत्साह और निष्ठा का प्रतीक माना जाता है।
निर्जला व्रत रखकर चंद्रमा से करें उपासना
करवा चौथ के दिन महिलाएं सोलह श्रृंगार करके निर्जला व्रत रखती हैं और चौथ माता यानी माता पार्वती की उपासना करती हैं और उनसे अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती है। इसके बाद शाम के समय दिन ढलने से पहले महिलाएं अपनी सास या नन्द को उपहार के रुप में कपड़े और श्रृंगार का सामान भेट करती हैं। दिनभर निर्जला व्रत रखकर रात के समय महिलाएं चंद्रमा का अर्घ्य देने के बाद ही अपना व्रत खोलती हैं।
व्रत कथा
एक समय इंद्रप्रस्थ नामक स्थान पर वेद शर्मा नामक ब्राह्मण अपनी पत्नी लीलावती के साथ निवास करता था। उसके सात पुत्र और वीरावती नाम की एक पुत्री थी। युवा होने पर वीरावती का विवाह कर दिया गया। जब कार्तिक कृष्ण चतुर्थी आई तो वीरावती ने अपनी भाभियों के साथ करवा चौथ का व्रत रखा, लेकिन भूख प्यास सह नहीं पाने के कारण चंद्रोदय से पूर्व ही वह मूर्छित हो गई। बहन की यह हालत भाइयों से देखी नहीं गई तो भाइयों ने एक पेड़ के पीछे से जलती मशाल की रोशनी दिखाई और बहन को चेतनावस्था में ले आए। वीरावती ने भाइयों की बात मानकर विधिपूर्वक अर्घ्य दिया और भोजन कर लिया। ऐसा करने से कुछ समय बाद ही उसके पति की मृत्यु हो गई। उसी रात इंद्राणी पृथ्वी पर आई। वीरावती ने उससे इस घटना का कारण पूछा तो इंद्राणी ने कहा कितुमने भ्रम में फंसकर चंद्रोदय होने से पहले ही भोजन कर लिया। इसलिए तुम्हारा यह हाल हुआ है। पति को पुनर्जीवित करने के लिए तुम विधिपूर्वक करवा चतुर्थी व्रत का संकल्प करो और अगली करवा चतुर्थी आने पर व्रत पूर्ण करो। इंद्राणी का सुझाव मानकर वीरावती से संकल्प लिया तो उसका पति जीवित हो गया। फिर अगला करवा चतुर्थी आने पर वीरावती से विधि विधान से व्रत पूर्ण किया।