हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार देवताओं को प्रसन्न करने से पहले मनुष्य को अपने पितरों यानि पूर्वजों को प्रसन्न करना चाहिए.
श्राद्ध करना हिंदू धर्म में बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है. मान्यतानुसार अगर किसी मृत व्यक्ति का विधिपूर्वक श्राद्ध नहीं हो पाता है तो उसकी आत्मा को शांति नहीं मिलती है जिसके कारण वह बंधनों से मुक्त नहीं हो पाता है और इसी लोक में भटकता रहता है. इसलिए पितरों की मुक्ति के लिए श्राद्धपक्ष का बेहद महत्व है.
इस बार श्राद्ध पक्ष 2 सितंबर से शुरू हो रहा है. लेकिन पितृ पक्ष का पहला श्राद्ध अगस्त मुनि का होता है जो भाद्र पक्ष पूर्णिमा को लगता है. इस बार भाद्र पक्ष पूर्णिमा 1 अगस्त को था इसलिए अगस्त मुनि के नाम से इसी दिन पूजन हुआ. प्रतिपदा का पहला पितृ श्राद्ध 1 सितंबर को होगा. इस साल पितृपक्ष का समापन 17 सितंबर को होगा. अंतिम श्राद्ध यानी अमवस्या श्राद्ध 17 सितंबर को किया जाएगा.
हिन्दू ज्योतिष के अनुसार भी पितृ दोष को सबसे जटिल कुंडली दोषों में से एक माना जाता है। ब्रह्म वैवर्त पुराण के अनुसार देवताओं को प्रसन्न करने से पहले मनुष्य को अपने पितरों यानि पूर्वजों को प्रसन्न करना चाहिए. माना जाता है जिनके पूर्वज प्रसन्न होते हैं उनके जीवन में किसी प्रकार के कष्ट नहीं होते हैं।
पितरों की शांति के लिए हर वर्ष भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से आश्विन कृष्ण अमावस्या तक के काल को पितृ पक्ष श्राद्ध होते हैं। मान्यता है कि इस समय पूर्वज पृथ्वी पर होते हैं, इसलिए पितृपक्ष में उनका श्राद्ध करने से वे अपना आशीर्वाद प्रदान करते हैं.
ऐसे करें श्राद्ध कर्म
-पितरों का श्राद्ध कर्म जिस दिन करना हो उस दिन सुबह उठकर साफ सुथरे वस्त्र पहनें
-श्राद्ध कर्म करते समय बिना सिले वस्त्र पहनें.
-अपने पूर्वजों की पसंद का भोजन बनाएं और उन्हें अर्पित करें.
-श्राद्ध में तिल, चावल और जौं को जरूर शामिल करें.
-अपने पितरों को पहले तिल अर्पण करें उसके बाद भोजन की पिंडी बनाकर चढ़ाएं.
-पितृपक्ष में कोऔं को पितरो का रुप माना जाता है इसलिए कोऔं को भोजन अवश्य डालें. गरीब और जरुरतमंद को दान करें. भांजे-भांजी को भोजन करवाएं.