रथयात्रा से पहले 15 दिन तक बीमार कैसे हो जाते हैं भगवान जगन्नाथ? जानिए

उड़ीसा के पुरी में स्थित भगवान जगन्नाथ का मंदिर हिंदुओं के चार प्रमुख धामों में से एक है। यहां हर वर्ष आषाढ़ मास में भव्य रथयात्रा का आयोजन होता है, जिसमें भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा विशाल रथों पर सवार होकर नगर भ्रमण पर निकलते हैं। इस वर्ष रथयात्रा 27 जून को निकाली जाएगी। लेकिन रथयात्रा से जुड़ी एक और अत्यंत रोचक और श्रद्धापूर्ण परंपरा है, जिसे ‘अनवसरा’ या ‘अनासरा’ कहा जाता है।

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इस परंपरा के अनुसार, भगवान जगन्नाथ रथयात्रा से 15 दिन पहले बीमार हो जाते हैं और इस अवधि में उन्हें आराम दिया जाता है। यह परंपरा न केवल भगवान की मानव सरीखी भावनाओं को दर्शाती है, बल्कि भक्तों के साथ उनके विशेष जुड़ाव को भी प्रकट करती है।

भगवान के बीमार होने की तिथि हर साल ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन भगवान जगन्नाथ को 108 पवित्र कलशों के जल से स्नान कराया जाता है। इस भव्य स्नान को ‘स्नान यात्रा’ कहा जाता है। मान्यता है कि इस विशेष स्नान के बाद भगवान ‘बीमार’ हो जाते हैं। इसके बाद भगवान की प्रतिमा को मुख्य मंदिर से हटाकर एक विशेष कक्ष ‘अनवसरा गृह’ में रखा जाता है, जहां उन्हें आराम दिया जाता है और विशेष सेवा-उपचार किए जाते हैं।

आयुर्वेदिक उपचार और विशेष भोग इस दौरान भगवान को आम भक्तों के दर्शन से वंचित कर दिया जाता है। केवल सेवक, वैद्य (आयुर्वेदाचार्य) और कुछ विशेष पुजारी ही भगवान की सेवा कर सकते हैं। भगवान को इस दौरान जड़ी-बूटियों से बने आयुर्वेदिक काढ़े और औषधियों से युक्त भोग चढ़ाया जाता है। इन्हें ‘दशनामी भोग’ कहा जाता है, जो शरीर को रोगमुक्त करने वाले होते हैं।

ऐसा माना जाता है कि इस अवधि में भगवान का स्वरूप एक रोगी की तरह होता है। इस परंपरा के पीछे की कथा एक प्रचलित कथा के अनुसार, पुरी में माधवदास नाम के एक परम भक्त रहते थे। वे एक बार गंभीर रूप से बीमार हो गए। उनका चलना-फिरना भी मुश्किल हो गया था। तब स्वयं भगवान जगन्नाथ सेवक बनकर उनके साथ 15 दिन तक रहे और उनकी सेवा की।

” जब माधवदास ने उन्हें पहचान लिया, तो भगवान ने कहा कि यह रोग तुम्हारे पूर्व जन्म के कर्मों का फल है, जिसे तुम्हें भोगना ही पड़ेगा। यदि मैं इसे अभी नहीं भोगने देता, तो तुम्हें अगले जन्म में यह सहना पड़ता। इसलिए मैंने यह बीमारी स्वयं ले ली है। इसके बाद माधवदास भगवान की 15 दिनों तक सेवा करते रहे।

आषाढ़ मास में होती है भगवान की वापसी भगवान की यह ‘बीमारी’ आषाढ़ कृष्ण प्रतिपदा से शुरू होकर आषाढ़ शुक्ल प्रतिपदा तक रहती है। इस पूरे 15 दिवसीय काल को ‘अनवसरा काल’ कहा जाता है। इसके पश्चात भगवान को पुनः स्वस्थ मानकर भक्तों को उनका दर्शन कराया जाता है, जिसे ‘नवयौवन दर्शन’ कहते हैं। फिर रथयात्रा का शुभारंभ होता है। इस परंपरा के माध्यम से यह संदेश मिलता है कि भगवान अपने भक्तों के हर कष्ट को अपने ऊपर ले सकते हैं और सेवा-संपर्क में ही सच्चा भक्ति-भाव छिपा होता है। यह भक्त और भगवान के आत्मिक संबंध की एक अनुपम मिसाल है।

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