नवरात्रि का पांचवां दिन मां स्कंदमाता को समर्पित होता है। 21 अक्तूबर को शारदीय नवरात्रि का 5वां दिन है। इस दिन देवी दुर्गा के स्कंदमाता की पूजा-आराधना होती है। भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र भगवान कार्तिकेय का एक अन्य नाम स्कन्द है। पौराणिक कथा के अनुसार तारकासुर का नामक राक्षस था। जिसकी मृत्यु केवल शिव पुत्र से ही संभव थी। तब मां पार्वती ने अपने पुत्र भगवान स्कन्द (कार्तिकेय का दूसरा नाम) को युद्ध के लिए प्रशिक्षित करने हेतु स्कन्द माता का रूप लिया और उन्होंने भगवान स्कन्द को युद्ध के लिए प्रशिक्षित किया था। स्कंदमाता से युद्ध प्रशिक्षिण लेने के पश्चात् भगवान स्कन्द ने तारकासुर का वध किया।
माता का स्वरूप
दुर्गा जी के इस पांचवें स्वरूप को स्कंदमाता कहा जाता है। भगवान स्कन्द बाल रूप में माता स्कन्द की गोद में विराजित हैं। माता के इस दिन साधक का मन विशुद्ध चक्र में अवस्थित होता है। स्कंद मातृ स्वरूपिणी देवी की चार भुजाएं हैं, ये दाहिनी ऊपरी भुजा में भगवान स्कंद को गोद में पकड़े हैं और दाहिनी निचली भुजा जो ऊपर को उठी है, उसमें कमल पुष्प पकड़ा हुआ है। मां का वर्ण पूर्णत: शुभ्र है और कमल के पुष्प पर विराजित रहती हैं। इन्हें विद्यावाहिनी दुर्गा देवी भी कहा जाता है।
शास्त्रों में स्कंद को कुमार कार्तिकेय भी कहा गया है। एक बार इन्द्र ने कार्तिकेय का उपहास उड़ाना शुरू किया और बताया कि आप भगवान शिव और माता पार्वती की संतान नहीं हैं। इससे कुमार कार्तिकेय बहुत दुःखी हुए। माता ने कार्तिकेय का दुख समझ लिया और सिंह पर सवार होकर प्रकट हो गई। मां ने अपनी गोद में कार्तिकेय को उठाकर दुलार किया।
संतान सुख और निरोगी होने की कामना
मां स्कंदमाता की साधना से न सिर्फ संतान सुख बल्कि रोग मुक्ति का आशीर्वाद प्राप्त किया जा सकता है। ऐसे में संतान सुख की इच्छा के साथ जो व्यक्ति मां स्कंदमाता की आराधना करना चाहता हैं उन्हें नवरात्रि की पांचवी तिथि को लाल वस्त्र में सुहाग चिन्ह सिंदूर, लाल चूड़ी, महावर, लाल बिन्दी तथा सेब और लाल फूल एवं चावल बांधकर मां की गोद भरनी चाहिए।
नवरात्रि में पांचवें दिन इस मंत्र जाप करना चाहिए।
सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रित करद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कंद माता यशस्विनी॥