महाशिवरात्रि के अवसर पर भगवान शिव को प्रसन्न करने और अपनी मनोकामानाओं की पूर्ति के लिए रुद्राभिषेक भी कराया जाता है। रुद्राभिषेक से भगवान शिव काफी प्रसन्न होते हैं। आइए जानते हैं कि रुद्राभिषेक क्या होता है और इसके क्या महत्त्व हैं…
रुद्राभिषेक का अर्थ
रुद्राभिषेक दो शब्दों रुद्र और अभिषेक से मिलकर बना है। रुद्र शिव जी का ही एक रूप है। वहीं अभिषेक का अर्थ होता है स्नान कराना। इस तरह रुद्राभिषेक का अर्थ हुआ भगवान शिव के रुद्र रूप का अभिषेक करना।
रुद्राभिषेक का महत्व
रुद्राभिषेक करने से भगवान शिव हर मनोकामना पूरी करते हैं। साथ ही इससे ग्रह जनित दोष, रोग, कष्ट और पाप से मुक्ति मिलती है। शिवपुराण में भी रुद्राभिषेक की महिमा का वर्णन किया गया है। यदि कोई मनोकामना हो तो सच्चे मन से रुद्राभिषेक करके देखें, निश्चित रूप से लाभ की प्राप्ति होगी।
कब करें रुद्राभिषेक?
रुद्राभिषेक के प्रकार
- ग्रह दोष दूर करने के लिए गंगाजल से रुद्राभिषेक करना चाहिए
- घी की धारा से अभिषेक से वंश का विस्तार होता है।
- उत्तम सेहत के लिए भांग से रुद्राभिषेक।
- धन संपत्ति की प्राप्ति के लिए गन्ने के रस से रुद्राभिषेक
- घर में सुख एवं शांति के लिए दूध से रुद्राभिषेक।
- घर से कलह कलेश दूर करने के लिए दही से रुद्राभिषेक।
- शिक्षा में सफलता के लिए शहद से रुद्राभिषेक।
- दुश्मनों को परास्त करने के लिए भस्म से रुद्राभिषेक।
सिर्फ बेलपत्र और एक लोटा जल से भी प्रसन्न हो जाते हैं भोलेनाथ
शिव जी का स्वरूप बड़ा ही सरल माना जाता है। वे आसानी से प्रसन्न हो जाने वाले देवता हैं। यदि कोई भक्त श्रद्धा पूर्वक उन्हें केवल बेलपत्र और एक लोटा जल भी अर्पित कर दे तो वे प्रसन्न हो जाते हैं। यही कारण है कि भक्तगण जल और बेलपत्र से शिवलिंग की पूजा करते हैं और शिवजी का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। भोलेनाथ को ये दोनों चीजें क्यों पसंद हैं इसका उत्तर पुराणों में इस प्रकार दिया गया है। आइए जानते हैं इसके बारे में…
इसलिए प्रिय है जल और बेलपत्र:
शिव महापुराण के अनुसार समुद्र मंथन के समय जब कालकूट नाम का विष निकला तो इसके प्रभाव से सभी देवता व जीव-जंतु व्याकुल होने लगे, सारी सृष्टि में हाहाकार मच गया। इसके बाद संपूर्ण सृष्टि की रक्षा के लिए देवताओं और असुरों ने भगवान शिव से प्रार्थना की। तब भोलेनाथ ने इस विष को अपनी हथेली पर रखकर पी लिया। विष के प्रभाव से स्वयं को बचाने के लिए उन्होंने इसे अपने कंठ में ही धारण कर लिया, जिस कारण शिवजी का कंठ नीला पड़ गया और इसलिए महादेवजी को नीलकंठ कहा जाने लगा। वहीं विष की तीव्र ज्वाला से भोलेनाथ का मस्तिष्क गरम हो गया। ऐसे समय में देवताओं ने शिवजी के मस्तिष्क की गरमी को शांत करने के लिए उन पर जल उड़ेलना शुरू कर दिया और ठंडी तासीर होने की वजह से बेलपत्र भी उनके मस्तिष्क पर चढ़ाए जाने लगे। तब से ही शिवजी की पूजा जल और बेलपत्र से शुरू हो गई। इसलिए शिव जी बेलपत्र और जल से पूजा करने वाले भक्त पर अपनी कृपा बरसाते हैं।
बेलपत्र से भील को मिली मुक्ति:
एक और मान्यता के अनुसार, शिवरात्रि की रात्रि में एक भील शाम हो जाने की वजह से घर नहीं जा सका। उस रात उसे बेल के वृक्ष पर रात बितानी पड़ी। नींद की वजह से वो वृक्ष से गिर न जाए इसलिए रात भर बेल के पत्तों को तोड़कर नीचे फेंकता रहा। संयोगवश बेल के वृक्ष के नीचे शिवलिंग था। बेल के पत्ते शिवलिंग पर गिरने से शिवजी प्रसन्न हो गए और भील के सामने प्रकट होकर परिवार सहित भील को मुक्ति का वरदान दिया। बेलपत्र की महिमा से भील को शिवलोक प्राप्त हुआ। इसलिए शिव जी की पूजा में बेलपत्र का इस्तेमाल किया जाता है।