उज्जैन: सोमवार रात्रि 12 बजे खुलेंगे वर्ष में एक बार नागचंद्रेश्वर के पट 

By AV NEWS

उज्जैन: सोमवार रात्रि 12 बजे खुलेंगे वर्ष में एक बार नागचंद्रेश्वर के पट

मंगलवार रात्रि 12 बजे तक चलेगा सतत दर्शन का सिलसिला

उज्जैन। महाकालेश्वर मन्दिर के तृतीय तल पर स्थित नागचंद्रेश्वर मन्दिर के पट वर्ष में एक बार चौबीस घंटे के लिये सिर्फ नागपंचमी के दिन खुलते हैं। 01 अगस्त, सोमवार को रात्रि 12 बजे पट खुलेंगे। श्री पंचायती महानिर्वाणी अखाड़ा के महंत द्वारा पूजन पश्चात रात्रि करीब 2 बजे आम भक्तों के लिये मन्दिर के पट दर्शन हेतु खुल जाएंगे। इस बार विशेष रूप से बनाए गए अस्थायी ब्रीज के माध्यम से श्रद्धालु दर्शन करेंगे।महाकालेश्वर मंदिर प्रबंध समिति के अध्यक्ष सह कलेक्टर आशीषसिंह ने बताया किभगवान नागचंद्रेश्वर के दर्शन का सिलसिला सतत मंगलवार रात्रि 12 बजे तक चलेगा। पूजा पश्चात एक वर्ष के लिए पुन: पट बंद कर दिए जाएंगे। इस दौरान एक लाख से अधिक भक्त भगवान नागचंद्रेश्वर के दर्शन करेंगे।

त्रिकाल पूजा होती है भगवान नागचन्द्रेश्वर कीमंदिर प्रबंध समिति के प्रशासक गणेश धाकड़ ने बताया कि नागपंचमी पर्व पर भगवान श्री नागचन्द्रेश्वर की त्रिकाल पूजा होगी, जोकि पट खुलने के पश्चात श्री पंचायती महा निर्वाणी अखाड़ा के महंत विनित गिरी महाराज द्वारा की जाएगी। मंगलवार दोपहर 12 बजे से शासकीय पूजन होगा। महाकालेश्वर मंदिर प्रबंध समिति द्वारा भी मंगलवार को महाकालेश्वर भगवान की सायं आरती के पश्चात मंदिर के पुजारी एवं पुरोहितों द्वारा पूजन-आरती किया जाएगा।

मंदिर का ऐतिहासिक महत्व
हिंदू धर्म में सदियों से नाग की पूजा करने की परंपरा रही है। हिंदू परंपरा में नाग को भगवान का आभूषण भी माना गया है। भारत में नागों के अनेक मंदिर स्थित हैं। इन्हीं में से एक मंदिर नागचंद्रेश्वर का है,जो महाकालेश्वर मंदिर के शीर्ष शिखर पर स्थित है। मंदिर में 11 वीं शताब्दी की एक अद्भुत प्रतिमा है। प्रतिमा में फन फैलाए नाग के आसन पर शिव-पार्वती,परिवार बैठे हैं। माना जाता है कि पूरी दुनिया में यह एकमात्र ऐसा मंदिर है, जिसमें भगवान विष्णु की जगह भगवान भोलेनाथ सर्प शय्या पर विराजमान हैं। मंदिर में स्थापित प्राचीन मूर्ति में शिवजी,माँ पार्वती,गणेश जी के साथ सप्तमुखी सर्प शय्या पर विराजित हैं। साथ में दोनो के वाहन नंदी एवं सिंह भी विराजित है। कहते हैं यह प्रतिमा नेपाल से यहां लाई गई थी। उज्जैन के अलावा दुनिया में कहीं भी ऐसी प्रतिमा नहीं है

क्या है पौराणिक मान्यता
सर्प राज तक्षक ने शिवशंकर को मनाने के लिए घोर तपस्या की थी। तपस्या से भोलेनाथ प्रसन्न हुए और उन्होंने सर्पों के राजा तक्षक नाग को अमरत्व का वरदान दिया। मान्यता है कि उसके बाद से तक्षक राजा ने प्रभु के सान्निध्य में ही वास करना शुरू कर दिया। लेकिन महाकाल वन में वास करने से पूर्व उनकी यही मंशा थी कि उनके एकांत में विघ्न ना हो। अत: वर्षों से यही प्रथा है कि मात्र नागपंचमी के दिन ही वे दर्शन को उपलब्ध होते हैं। शेष समय उनके सम्मान में परंपरा के अनुसार मंदिर बंद रहता है।

इस मंदिर में दर्शन करने के बाद व्यक्ति किसी भी तरह के सर्पदोष से मुक्त हो जाता ह। इसलिए नागपंचमी के दिन खुलने वाले इस मंदिर के बाहर भक्तों की लंबी कतार लगी रहती है। यह मंदिर काफी प्राचीन है।

माना जाता है कि परमार राजा भोज ने 1050 ईस्वी के लगभग इस मंदिर का निर्माण करवाया था। इसके बाद सिंधिया घराने के महाराज राणोजी सिंधिया ने 1732 में महाकाल मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था। नागचंद्रेश्वर मंदिर की पूजा और व्यवस्था श्री पंचायती महानिर्वाणी अखाड़े के संन्यासियों द्वारा की जाती है।

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