और घर वापसी रह गई….

वर्षों तक कांग्रेस की झण्डाबरदर रही महिला नेता बड़े ही जोर-शोर से इस सोच के साथ पार्टी छोड़कर गई थी कि जिस वर्ग से आती है उसका फायदा मिलेगा। दलबदल के कुछ दिनों तक तो बहुत महत्व मिलता रहा। विधानसभा चुनाव के आते ही तवज्जो मिलना बंद हो गई।
परेशान होकर घर वापसी का निर्णय लिया और अपनी भावना से पूर्व की पार्टी के नेताओं को अवगत करा दिया। आश्वासन भी मिल गया, सबकुछ ठीक चल रहा था, केवल मुहूर्त की प्रतीक्षा थी। इस बीच कांग्रेस में महिला के कट्टर प्रतिद्वंदी रहे नेता को इस बात की खबर लग गई।
बस फिर क्या था नेता जी एक्टिव हो गए। महिला नेता की घर वापसी को रोकने के लिए पूरी ताकत लगाने के साथ चेतावनी दी… चुनाव में इसका बड़ा नुकसान हो सकता है। चेतावनी काम कर गई और महिला नेता की घर वापसी टल गई। इसके अलावा दोनों ही दलों के कई और नेता थे जो अपने-अपने घरों में वापसी करना चाहते थे। किन्तु आपत्तियों के चलते अंतिम निर्णय टल गया।
स्वजनों और परिचितों के भरोसे प्रत्याशी
विधानसभा चुनाव के दौरान दोनों ही प्रमुख राजनीतिक दल ऐसे कार्यकर्ताओं की कमी से जूझ रहे हैं, जो पहले चुनाव लडऩे में प्रत्याशी के दाएं-बाएं हाथ रहे हैं। जो लोग पिछले कई चुनावों का अनुभव रखते हैं, वे अब किसी न किसी पद पर पहुंच गए हैं। वर्तमान में जो कार्यकर्ता हैं, वे काम करने के बजाय नेताओं के आगे-पीछे घूमने में ज्यादा विश्वास करते हैं। ऐसे में इस बार प्रत्याशियों को अपने महत्वपूर्ण कामों के लिए अपने स्वजनों और खास परिचितों का सहारा लेना पड़ रहा है।
प्रत्याशियों से जुड़ी संस्थाओं और समाजों के लोग भी प्रचार और चुनावी कार्यों में बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं। कई व्यापारिक संगठन भी इस बार खुलकर प्रत्याशियों का समर्थन कर रहे हैं। इन सबके बाद भी भाजपा और कांग्रेस के अधिकांश उम्मीदवारों ने चुनाव अभियान की मुख्य कमान अपने स्वजनों को ही सौंप रखी है।