निराशा को दूर कर आशा का मार्ग दिखाते थे गुरुजी

200 के लगभग पुस्तकों की रचना की, कई तीर्थों की पैदल यात्रा की

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धर्म विज्ञान शोध संस्थान के संस्थापक डॉ. जगदीशचंद्र जोशी ‘चैतन्य’ का श्रीजी शरण 8 अक्टूबर 2020 को 75 वर्ष की आयु में हो गया। उज्जैन जिले के पान बिहार में इनका जन्म हुआ। श्री जोशी ने लगभग 50 वर्ष पहले नागपंचमी के दिन धर्म विज्ञान शोध संस्थान की स्थापना की। देशभर में इनके लाखों अनुयायी हैं जो कि संस्थान से जुड़े हुए हैं। श्री जोशी के मार्गदर्शन में प्रतिवर्ष उज्जैन में श्री हनुमान दर्शन यात्रा निकलती रही है।

तीर्थों की पैदल यात्रा:श्री जोशी ने कई तीर्थों की अपने भक्तों के साथ यात्रा की। वैष्णो देवी, शिरडी के सांई बाबा, रामेश्वर, ओमकारेश्वर सहित कई तीर्थों पर वह पैदल यात्रा करते पहुंचे। उज्जैन से खाटू श्याम तक यात्रा निकालते थे। उज्जैन से खाटू श्याम तक ट्रेन से जाते थे और वहां पर पैदल भ्रमण करते थे।

200 पुस्तकें लिखी:जोशी ने द्वारका भवन नानाखेड़ा पर धर्म विज्ञान शोध संस्थान में प्रयोगशाला की स्थापना की। उन्होंने मंत्रों की आवृत्ति से उपचार के यंत्र तैयार किए। उन्होंने लगभग 200 पुस्तकें लिखी। जिनमें हिंदू धर्म के वैज्ञानिक तथ्य आत्मा कहां जाती है, पुनर्जन्म विज्ञान आनंद का विज्ञान आदि शामिल है।

भक्तों को देते थे मार्गदर्शन:उनके पास कोई भी व्यक्ति समस्या लेकर जाते थे तो वह उसे उचित मार्गदर्शन देते हैं और निराशा से आशा का मार्ग दिखाते थे। वह भक्तों से कहते थे कि चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है। आपकी समस्या के निराकरण के लिए मैं हूं।

राम नाम जप का लक्ष्य:धर्म विज्ञान शोध संस्थान से जुड़े अमित माथुर बताते हैं कि गुरुजी ने 1 लाख अरब राम नाम जप का लक्ष्य रखा था। अभी तक 4 अरब राम नाम जप पूरे हो चुके हैं। धर्म विज्ञान शोध संस्थान के माध्यम से गुरु जी ने अंध विश्वास को दूर करने के लिए निरंतर प्रयास किए।

विदेशों में भी भक्त:स्व. पं. वंशीधर जोशी के पुत्र डॉ. जगदीशचंद्र जोशी के देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी हजारों अनुयायी हैं जो समय-समय पर उनसे मार्गदर्शन लेते रहते थे। गुरु जी ने अपने जीवन में संस्थान के माध्यम से धर्म विज्ञान को लेकर जो कार्य किया है उसको शब्दों में बयां करना मुश्किल है। वह प्रयोगों के माध्यम से सभी को समझाते थे।

@ डॉ. ज. जोशी चैतन्य

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