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40/84 महादेव : श्री कुण्डेश्वर महादेव मंदिर

दशानामश्वमेधानामग्निष्टोमशतस्यच।
स्पर्शनात्फलमाप्नोति कुण्डेश्वरस्यसर्वदा।।

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लेखक – रमेश दीक्षित

(अर्थात- कुण्डेश्वर लिंग का स्पर्श करने वाला सौ अग्निष्टोम तथा देश अश्वमेध फल की प्राप्ति करेगा।

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यह मंदिर महर्षि सांदीपनि आश्रम में उसके प्रवेश द्वार के ठीक सम्मुख स्थित है। 8 कलांकित काले प्रस्तर के स्तंभों पर इसका पूर्वाभिमुख प्रवेश द्वार है तथा भीतरी द्वार लोहे का है। लगभग ढाई फीट चौड़ी चौड़ी पीतल की जलाधारी के मध्य दिव्य शिवलिंग स्थित है। जिस पर नागदेवता आवेष्ठित है। मंदिर में प्रवेश करते ही दायें कुबेर बैठे हैं तथा उसकी क्रम में चौकी पर संगमरमर से सुनिर्मित सुदामा, कृष्ण व बलराम की शिष्य रूप सुंदर मूर्तियां स्थापित हैं, जबकि तीनों के ही नहीं विश्व प्रसिद्ध परेम गुरु, सांदीपनि की मूर्ति मध्य से गायब है। 31 वर्ष पूर्व प्रकाशित ”कल्याण” के शिक्षांक के पृष्ठ 274 पर प्रकाशित चित्र से भी गुरुमूत्तिअघ्रूय है।

पं. शैलेन्द्र व्यास ने बताया कि बद्रीनाथ में देवमूर्ति नर-नारायण, तिरुपति में लक्ष्मी-नारायण तथा उज्जैन के कुण्डेश्वर में हरिहर रूप में प्रतिष्ठित है। गर्भगृह में श्री बालाजी, विष्णु वामन व देवनारायण की मूर्तियों के साथ ही सम्मुख दीवार पर गणेश तथा बाएं पार्वती की प्रतिमाएं स्थापित हैं।

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गर्भगृह की छत श्रीयंत्र आकृति में है। आधी निचली दीवार पर टाइल्स जड़े हैं, जबकि ऊपरी दीवार पर प्राचीन पत्थर लगे हैं। यहां पर गर्भगृह के सम्मुख नन्दी वाहन की काले प्रस्तर की श्याम वर्ण खड़ी हुई मूर्ति है जबकि अन्य मंदिरों में नन्दी की बैठी हुई मूर्ति दृष्टण्य है। प्रवेश द्वार की दाईं ओर तांत्रिक शिवमूर्ति है, जबकि बाईं ओर भगवान उमा महेश्वर स्वरूप में विराजित हैं।

लिंग के माहात्म्य की कथा-

महादेव पार्वती को कथा सुनाकर कहते हैं कि एक बार तुमने स्नेह-पुत्र वीरक को देखना चाहा तब मैंने तुम्हें कहा था कि वह उत्तम महाकालवन में जल के मध्य स्थित होकर तपस्यारत है। तब हम दोनो वृषारुढ़ होकर चल पड़े। बीच में पार्वती के रक्षण हेतु गणध्याक्ष कुण्ड को रक्षण व सेवार्थ नियुक्त कर वे पर्वत पर चल चढ़े।

जब शंकर लौटकर आये तो मैंने गिरिदुर्ग में मुझे छोड़कर उनके जाने पर क्षोभ व्यक्त किया। तब देवी पार्वती ने कुण्ड को महाकालवन में भेजा जहां भैरव के समक्ष एक कामप्रद लिंग है। जिसके दर्शन करने पर कुण्ड गाणपत्य पद प्राप्त करेगा। तब कुण्ड महाकालवन गया तथा शश्वत लिंग का दर्शन व पूजन किया जो आगे चलकर कुण्डेश्वर नाम से विख्यात हुआ।

फलश्रुति-

महादेव कहते हैं कि जो मनुष्य भक्तिभाव से अनादिलिंग कुण्डेश्वर के दर्शन करेगा, उसे सहस्त्र अश्वमेध फल की प्राप्ति होगी। उसे दानफल तथा सर्वतीर्थ फल की प्राप्ति होगी। इनके दर्शन मात्र से सद्गति का लाभ होगा।

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