Advertisement

42/84 महादेव : श्री गंगेश्वर महादेव मंदिर

सर्वसिद्धिकरं पुण्यं सर्वपातकनाशनम्।
तमाराधय यत्नेन सते दास्यति वाञ्छितम्।।

लेखक – रमेश दीक्षित

(अर्थात्- यह लिंग सर्वसिद्धिदायक, पवित्र, सर्वपातकहारी है। तुम भक्तिपूर्वक आराधना करो, वहां तुमको लिंग द्वारा इच्छित वरलाभ होगा।)
लगभग ३६ वर्गफीट के गर्भगृह वाले गंगेश्वर महादेव मंदिर अन्य ८४ महादेव मंदिरों की तुलना क्या, वहीं उत्तर की ओर नदी के मंगलनाथ घाट पर ही स्थित श्री उत्तरेश्वर महादेव मंदिर (क्र. ४४) की तुलना में छोटा ही नहीं केवल छत्रीनुमा लगता है।
गर्भगृह में प्राचीन प्रस्तर की करीब ३० इंच चौड़ी श्याम वणर्् जलाधारी के मध्य शिवलिंग प्रतिष्ठित है। पूर्वाभिमुखी प्रवेश द्वार पर चैनल गेट है तथा गर्भगृह के वायण्य कोण में गणेश एवं पार्वती की पुरानी सी दिखर्इा दे रही मूर्तियां पास-पास रखी हैं। मंदिर के बाहर दक्षिणामुखी नंदी की प्रतिमा है।

लिंग माहात्म्य की कथा-

महादेव ने देवी पार्वती को सुनाई कथा कि गंगा नारायण के चरणों से प्रवाहित होकर चंद्रमंडल में प्रविष्ट होते हुए मेरूपर्वत पर गिरकर आगे मंदराचल पर्वत पर विभक्त होकर चैत्ररथ बन जाती है। अरुणोद में अलकनंदा कहीं जाकर गंधमादन पर्वत, मानस सरोवर त्रिशिखर होकर महाचल हिमालय पहुंचती है। सैकड़ों कल्प पर्यंत तप करने के बाद मैंने उसे जटा से मुक्त कर दिया। फिर वह महाकाल वन को प्लावित कर समुद्र की प्रेयसी बन गई। एक बार गंगा ने पितामह के समक्ष उपस्थित होकर उनका दर्शन किया।
वायु संचार से गंगा का कांति वाला परिधान उड़ गया, सभी देवता अधोमुख हो गए किंत राजर्षि महाभिष गंगा को उसी अवस्था में देखते रहे। पितामह द्वारा राजर्षि तथा समुद्र द्वारा गंगा अभिशप्त हुए। तब गंगा को पितामह ने महाकाल वन भेजा तथा लिंग विशेष की आराधना करने को कहा। गंगा न यहां आकर प्रियसखी शिप्रा से भेंट की तथा लिंग पूजन किया। तभी से यह लिंग गंगेश्वर कहलाया।

फलश्रुति-

जो व्यक्ति शिप्रा में स्नानोपरांत गंगेश्वर लिंग का दर्शन करताहै, उसे १ हजार गोदान, सर्वतीर्थ स्नान, सर्वधर्म, सर्वयज्ञ, सर्वदान तथा सर्वयोग का लाभ मिलता है।

Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!

Advertisement

Advertisement

Related Articles