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44/84 महादेव : श्री उत्तरेश्वर महादेव मंदिर

ये मां सम्पूजयिष्यन्ति मत्तत्या परमयायुता:।
ते यास्यन्ति पुरं शैवं यावत्कल्पाष्टकायुतम।।

(अर्थात- जो भक्ति युक्त होकर यहां मेरी पूजा करते हैं, वे आठ आयुत कल्पपर्यन्त शिवलोक में निवास करेंगे।)
श्री गंगेश्वर मंदिर के पास मंगलनाथ मंदिर के प्रवेश द्वार के पहले ही बाईं ओर यह भव्य मंदिर शिप्रा नदी के तट पर स्थित है। भूमि से करीब ७ फीट ऊंचे धरातल पर ५ फीट ऊंचे स्टील के व भीतर लोहे के द्वार से प्रवेश करने पर करीब ढाई फीट चौड़ी पीतल की चौकोर, जलाधारी के मध्य ७ इंच ऊंचा उत्तरेश्वर लिंग प्रतिष्ठित है।
गर्भगृह में प्रवेश पर बांए गणेश, मध्य पार्वती व दाएं कार्तिक स्वामी की मूर्तियां हैं जबकि पार्वती की मूर्ति के दोनों ओर इंद्र की अप्सराओं की प्राचीन मूर्तियां दीवारों पर स्थापित हैं। शिप्रा तट पर अवस्थान होने से मंदिर नयनरम्य एवं चित्ताकर्षक है।

लिंग माहात्म्य की कथा-

एक बार इन्द्र के मेघों ने वर्षा द्वारा महितल को जल प्लावित कर दिया। ब्राह्मणों के स्वाहा-स्वाधारहि होने से देवगण अतृप्त रह गए। उनके कहरने पर ब्रह्मा ने इंद्र को बुलाया। इन्द्र ने तत्काल मेघों का कार्य विभाजन कर दिया। गज को दस हजार, गवम को छ: हजार, शरभ को एक हजार तथा उत्तर नाम बादल को एक करोड़ बादलों का अधिपति बनाकर दिशाएं बांट दी।
साथ ही आद्रा से स्वाति नक्षत्रों के बीच के दस नक्षत्रों में ही वर्षा करना आदेशित किया। क्रूर ग्रह इस व्यवस्था से त्राहि-त्राहि करने लगे। तब सभी देवों की प्रार्थना पर महादेव ने उत्तर मेघ को महाकालवन में एक लिंग का पूजन करने को कहा तथा जब उस लिंग से तीव्र धुआं उठा तो सब क्रूर ग्रह भयभीत होकर भागने लगे। इसी बीच लिंग से एक जलाधारी ने प्रकट होकर समूची पृथ्वी को तृप्त कर दिया। उत्तर मेघ द्वारा पूजित यह लिंग उत्तरेश्वर नाम से प्रसिद्ध हुआ।

फलश्रुति-

इस लिंग के दर्शन मात्र से वांछित फल लाभ होता है। जो प्रसंगत: भी दर्शन करेगा उसे यह उत्तरेश्वर लिंग और उत्तर कुरुदेश में ऐश्वर्य प्रदान करेगा। इसके स्मरण मात्र से व्यक्ति दाह तथा पलयरहित उत्तम लोको को प्राप्त करेगा।

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