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7/84 महादेव : श्री त्रिविष्टपेश्वर महादेव मंदिर

लेखक – रमेश दीक्षित

महाकाल वन में स्थित महाकाल मंदिर की पुरातनता तथा उसकी अति प्राचीनता के आज भी दर्शन हो तो चलिए त्रिविष्टपेश्वर महादेव मंदिर में। यह मंदिर ओंकारेश्वर मंदिर के पीछे दाहिनी ओर एक छोटी सी गुफा में स्थित है। पीतल की उत्तरामुखी जलाधारी के मध्य ममें करीब आठ इंच ऊंचा शिवलिंग प्रतिष्ठित है जिसे पीतल के नाग आवेष्टित किए हैं।

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40 वर्गफीट आकार के गर्भगृह में शिवायुध डमरू व त्रिशूल के आलवा छोटे आलों में गणेश, पार्वती व कार्तिकेय की छोटी-छोटी किंतु पाषाणमयी अतिप्राचीन मूर्तियां सहस्राब्दियों से स्थापित लगती हैं। कार्तिकेय की अति प्राचीन मूर्ति सर्वथा दर्शनीय है। जलाधारी की जल निवासी के पास ही संगमरमर की नवनिर्मित नंदी की मूर्ति बाद में प्रतिष्ठित की गई है, पाषाण की बड़ी प्राचीन खंडित मूर्ति गुहा के चढ़ाव के दांई ओर रख दी गई है। प्रवेश द्वार पर शिव व हार्थी की मूर्ति है तथा संपूर्ण मंदिर कालांकित श्याम वर्ण स्तंभों के साक्ष्य में मंदिर के पुरा-वैभव की गाथा करता है।

शिवलिंग के दर्शन मात्र से स्वर्ग लाभ होता है। कथा कहती है वराहकल्प में नारद शतक्रतु (इंद्र) का दर्शन करने स्वर्ग पहुंचे। शतक्रतु के पूछने पर नारद ने उन्हें महाकाल वन की अद्वितीय महिमा सुनाई। यहां सहस्त्रों कोटि युक्ति-मुक्तिप्रद लिंग हैं एवं नौ करोड़ शक्तियां विराजमान हैं। उन्होंने कहा कि नैमिषतीर्थ, पुष्कर, प्रयाग, अमरेश्वर, सरस्वती, गयाकूप, कुरुक्षेत्र यहां तक कि वाराणसी से महाकाल वन दस गुना फलप्रद है।

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नारद से यह कथा सुनकर शतक्रतु इंद्र महाकाल वन पहुंचे। उन्होंने देखा कि यह तो स्वर्ग से भी मनोरम है। यह जानकार सभी देवतागण यही आ गए। स्वर्ग शून्य हो गया। त्रिविष्टप भी तत्क्षण यहीं आ पहुंचा। उसने रमणीय महाकाल वन के दर्शन किए तभी आकाशवाणी हुई कि वह यहां अपने नाम से शिवलिंग स्थापित करे। त्रिविष्ट ने त्रिविष्टपेश्वर शिवलिंग का पूजन-अर्चन किया। अष्टमी, चतुर्थी तथा संस्कृति पर इसके दर्शन का विशेष महत्व है।

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