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17/84 महादेव : श्री अप्सरेश्वर महादेव मंदिर

लेखक – रमेश दीक्षित

यह मंदिर पटनी बाजार के मध्य से गोपाल मंदिर से आने पर दाईं ओर एक मार्ग के ठीक सामने स्थित है, मार्ग पर बड़ा बोर्ड भी लगा है। अपने भवन की आकृति व रूप-रंग में यह अन्य मंदिरों से भिन्न है क्योंकि इसकी समस्त दीवारों पर सुंदर सेरेमिक टाइल्स की पच्चीकारी व मीनाकारी की गई है तथा शिखर छोड़कर सम्पूर्ण मंदिर सतरंगी सजावट दर्शाता है।

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मंदिर भवन का मध्य भाग खुला-खुला है, शिखर भी बहुरंगी है। इसकी नव निर्माण स्व. गायत्री देवी की स्मृति में सुपुत्र हेमन्त व शुभम व्यास द्वारा कराया गया है। इसके तीन बाहरी द्वार हैं। पूर्व द्वार बंद है, उत्तर व दक्षिण के खुले हैं। 30 वर्गफीट आकार में गर्भगृह में क्रमश: पार्वती, गणेशजी, हनुमानजी व कार्तिकेय की मूर्तियां हैं।

मध्य में सिद्धि विनायक की रिद्धि-सिद्धि सहित 4 फीट ऊंची सिंदूर चर्चित मूर्ति है। जिस पर कांच जड़ा है। शिवलिंग 6 इंच ऊंचा भूरे पत्थर का है जो पीतल की जलाधारी से आवृत्त है तथा 5 फनवाला नाग उस पर छाया किये हैं, जलाधारी पर सुंदर जालीदार बॉर्डर है। दाहिनी ओर ताक में गणेश, कार्तिकेय की युग्म संगमरमर प्रतिमाएं। सम्पूर्ण गर्भगृह में टाइल्स जड़े हैं।

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शिवलिंग की कथा-

इंद्र के शाप से नृत्यरत अन्यमनस्क अप्सरा रंभा भूतल पर पतित हो गई। स्पंदनहीन वह रुदन करने लगी। वह ऐसी लगी जैसे मेघाच्छन्न आकाश के कारण पद्मिनी सुषुप्ता हो गई हो। जब देवर्षि नारद वहां पहुंचे तो रंभा के रोने का कारण पूछा तथा वृतांत सुनकर सब अप्सराओं को उन्होंने महाकाल वन भेजा जहां वे पृच्छादेवी के पूर्व भाग में इच्छित लिंग की आराधना करने लगी। तब रुद्र ने प्रसन्न होकर उसे पुन: स्वर्गलोक में सौभाग्य प्राप्ति का वर प्रदान किया।

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फलश्रुति-

अप्सरेश्वर शिवलिंग के दर्शन से मनुष्य को अभीष्ट लाभ प्राप्त होंगे व मनोरथ सफल होंगे। इस लिंग के स्पर्श मात्र से राज्य, स्वर्ग व मोक्ष की प्राप्ति होती है।

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