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39/84 महादेव : श्री अक्रूरेश्वर महादेव मंदिर

आयुरारोग्यमैश्वर्यं कामपत्र हि वञ्छिनम।
गोसहस्रफलं चात्र स्पृष्ट्वा प्राप्स्यति मानव:।।

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लेखक – रमेश दीक्षित

(अर्थात- मानव इस लिंग का मात्र स्पर्श करके आयु, आरोग्य, ऐश्वर्य अभिलषित वस्तु तथा सहस्र गोदानफल लाभ करेगा।)

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यह मंदिर श्री राम जनार्दन मंदिर के पास से श्री चित्रगुप्त धाम की ओर जाने वाले मार्ग के बाएं कोने पर स्थित है। प्राचीन प्रस्तर की चौखट से निर्मित 4 फीट ऊंचे पूर्वाभिमुख प्रवेश द्वारा के भीतर स्टील द्वार भी है। करीब ढाई फीट चौड़ी जलाधारी के मध्य 1 फीट ऊंचे शिवलिंग को नागाकृतिं आवेष्ठित किये हुए हैं। सामने एक ताक में गणेश व पार्वती की प्रतिमाएं स्थापित हैं। जलाधारी के पास 3 फीट ऊंचा पीतल के त्रिशुल पर डमरू भी है तथा समीप ही संगमरमर के एक नंदी स्थापित है, जबकि बाहर आसन पर श्याम वर्ण प्राचीन मूर्तरूप में एक और नंदी विराजित हैं।

लिंग माहात्म्य की कथा-

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महादेव ने अक्रूरेश्वर लिंग की कथा पार्वती की को सुनाते हुए बताया कि पूर्व कल्प में तुमने त्रैलोक्य का सृजन किया था, तब दुर्बुद्धि भंृगिरीट को छोड़कर सभी ने तुम्हें प्रणाम किया था। जब तुमने कारण जानना चाहा तो उसे क्रोधित होकर कहा कि मैं तुम्हारा नहीं शंकर का पुत्र हूं। उसने अपने देह से मातृ अंश का भी त्याग कर दिया। तुमने उसे मृत्युलोक में पतित कर दिया। पुष्कर में तप करना भी निष्फता रहा।

जब उसने भक्तिभाव से तुम्हारी शरण ली तो तुमने उसे रम्य महाकालवन भेजा तथा कहा कि तुम्हारी क्रूरता वहां समाप्त हो जाएगी व तुम अक्रूर बन जाओगे। देवी पार्वती का वचन सुनकर भृंगिरीट महाकालवन गये व दुष्कर तपस्या की। तब देवी एक लिंग से प्रकट हुई।

उस समय देवी की देह भृंगि के आधे अंग से तथा उसकी देह देवी के आधे अंग से भूषिता था। तब भृंगि का अज्ञान मिट गया तथा शंकर व पार्वती एक ही सनातन देह लगे। इस लिंग के माहात्म्य से भृंगि की क्रूर बुद्धि समाप्त हो गई। इसलिए इसी अक्रूरेश्वर लिंग के रूप में लोक प्रसिद्ध हुई।

फलश्रुति-

देवी ने भंृगिरीट से कहा जो मनुष्य इस अक्रूरेश्वर लिंग के दर्शन करेगा, वह पापमुक्त हो जाएगा। उसे अक्षम स्वर्ग मिलेगा। इसके दर्शन करने मात्र से मनुष्यों में सुबुद्धि को जन्म होता है।

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