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72/84 महादेव:श्री चंद्रादित्येश्वर महादेव मंदिर

ये पश्यिन्ति नरा भक्त्या चन्द्रादित्येश्वरं शिवम्।
ते यान्ति सूर्यलोकं तु चन्द्रलोकं तथैव च।।

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(अर्थात्- जो भक्ति भाव के साथ चन्द्रादित्येश्वर शिव का दर्शन करते हैं, वे चन्द्र-सूर्याभ विमान पर बैठकर सूर्यलोक तथा चन्द्रलोक में निवास करते हैं।)यह मंदिर श्री महाकाल मंदिर परिसर में कोटितीर्थ के पूर्व में स्थित ऊँचे सभामण्डप में अवंतिका देवी व श्री राम जानकी मंदिर के आगे एक छोटे से कक्ष में स्थित है, जहाँ श्रीमद्आद्यशंकराचार्य की प्रतिमा बाहर से ही दिख पड़ती है। सभामंडप से 3-4 चढ़ाव चढऩे पर चन्द्रादित्येश्वर लिंग के दर्शन होते हैं।

करीब 65 वर्गफीट आकार के गर्भगृह में पीतल की जलाधारी के मध्य करीब 9 इंच ऊंचाई लिये हुए नागाकृति से आवेष्ठित शिवलिंग स्थापित है। उत्तरमुखी जल निकासी के पास ही वाहन नंदी विराजित हैं। दीवार पर शिव-पार्वती, विष्णु आदि देवताओं की मूर्तियां स्थित हैं। यह मंदिर महाकाल मंदिर के अत्यधिक परिवर्तित कलेवर से परे उसकी प्राचीनता का मुखर साक्ष्य है।

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लिंग के माहात्म्य की कथा- पूर्वकाल में शम्बरासुर से पराजित देवता अपने प्राण बचाने हेतु पलायन कर गये थे, तब सूर्य ने अपने सारथि से रथ वहां ले जाने को कहा जहां युद्ध नहीं हो रहा हो, क्योंकि उन्हें चन्द्र, वरुण, यम, कुबेर कहीं दिखे नहीं। तब राहु गृहीत चन्द्र ने सूर्य से कहा कि शम्बर के आने के पहले वे शीघ्र भाग चलें। तदनन्तर सूर्य व चन्द्र रथारुढ़ होकर जगन्नाथ के पास गये, उनका दर्शन व स्तुति की।

तब विष्णु ने उनके आगमन का कारण पूछा। दोनों ने शंबरासुर द्वारा देवगणों के भयभीत होकर परास्त व पलायन होने का वृतांत सुनाया। उधर शत्रुजित् महा तेजस्वी शम्बर स्वर्णमय आसन पर विराजित हो गया तथा स्वयं इन्द्र बन गया।

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भगवान् विष्णु ने कहा उसे ब्रह्मा का वरदान प्राप्त है अत: तुम महाकालवन जाओ, वहॉं कामप्रद शिव लिंग रूप में विराजित है। शिव की ही ज्वालामाल से ही शम्बर की मृत्यु होगी।

तब सूर्य व चन्द्र ने महाकालवन आकर महाकाल का दर्शन, मांगल्य पुष्पार्चन व स्तवन किया। तभी लिंग से वाणी सुनाई दी कि शम्बर निहत हो गया। तब सभी देवगण स्वस्थान पहुंच गये। तदनन्तर देवगण महाकालवन आये तथा लिंग का नाम चन्द्रादित्येश्वर लोक प्रसिद्ध हुआ।

फलश्रुति- जो भक्तिभाव के साथ चन्द्रादित्येश्वर शिव के दर्शन करता है, वह चन्द्र-सूर्याभ विमान पर बैठकर उनके लोकों में निवास करता है। इस लिंग के दर्शनमात्र से मनुष्य कृतकृत्य हो जाता है।

लेखक – रमेश दीक्षित

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