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82/84 महादेव:श्री कायावरोहणेश्वर महादेव मंदिर

शाठ्ये नपूजितो देव कायावरोहणेश्वर:।

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ददातिराज्यं भोगांश्च स्वर्गलोकंसनातनम।

(अर्थात- जो कोई शठतापूर्वक भी इस देवस्वरूप लिंग की पूजा करता है, उसे ये देवता भोग प्रदान करते हैं। मृत्यु के पश्चात् सनातन स्वर्गलोक में उसे स्थान मिलता है। )

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यह दिव्य मंदिर उज्जैन-इंदौर हाईवे पर नगर से 13 किमी पर स्थित महावीर तपोभूमि जैन मंदिर मार्ग के पास दायें मुड़़कर 4 किमी आगे ग्राम करोहन के लिए बायें मुड़कर 2 किमी की दूरी पर मुख्य मार्ग के दायीं ओर लंबी सड़क सुरम्य प्राकृतिक परिवेश में स्थित है। मंदिर परिसर के दो गेट हैं- 1 पूर्वोश्रर दिशा में व 2 पूर्व दिशा में। मूल मंदिर भवन के पहले 8 काले प्रस्तर स्तंभों पर विस्तार देकर सभामंडप बना है।

ऐसे ही प्राचीन श्यामवर्ण स्तंभों पर 7 फीट ऊंचे पूर्वाभिमुख प्रवेश द्वार के भीतर स्टील का द्वार है जिसके अंदर प्रवेश पर हमारे बायें से 2.6 फीट ऊंची गणेशजी की सिंदूरी कलेवर लिये तथा पार्वती की 15 इंच ऊंची संगमरमर की मूर्ति है तथा दायें एक और मूर्ति पार्वती की है, कार्तिकेय की मूर्ति नहीं है।

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करीब 150 वर्गफीट के गर्भगृह में करीब 6 फीट चौड़ी और 8 फीट लंबी पीतल की जलाधारी पर एक नाग, 2 शंख, सूर्य व चंद्र उत्कीर्णित हैं, जबकि एक और नाग जिसके 5 फण हैं तथा जिस पर ऊं अंकित है 10 इंच ऊंचे काले पाषाण के शिवलिंग पर छाया किये हुए हैं।

जलाधारी उत्तरमुखी है जिसके चारों ओर ऊं नम: शिवाय अंकित पीतल का वृत बना हुआ है। समीप ही 5 फीट ऊंचा त्रिशूल गड़ा है जिस पर डमरू, ऊं तथा नाग की आकृतियां हैं। जलहरी पीतल की है तथा फर्श संगमरमर का है, जबकि सब ओर की दीवारें प्राचीनता की साक्षी होकर मूल काले प्रस्तरों की बनी हैं।

बाहर 9 इंच ऊंचे आसन पर ढाई फीट लम्बी, सवा फीट चौड़ी व 2 फीट ऊंचे भूरे व लाल रंग के पाषाण के वृहदाकार नंदी विराजित है। मंदिर भवन के दायीं ओर गंगा मैया और सत्यवादी तेजाजी महाराज के दो मंदिर बने हैं, जबकि बायीं ओर दो बड़े सभागृह (1) 500 वर्गफीट व (2) 1200 वर्गफीट आकार के पंचक्रोशी यात्रियों के ठहरने हेतु बने हुए हंै। मंदिर भव्य व दर्शनीय है।

लिंग के माहात्म्य की कथा- महादेव ने देवी पार्वती को कथा सुनायी कि वैवस्वत मनु के अधिकार काल में ब्रह्मा द्वारा उत्पन्न दक्ष की पत्नी से प्रसूत ५० कन्याओं में से चन्द्रमा को प्रदश्र सश्राईस में से रोहिणी उसे अत्यंत प्रिय थीं, शेष छब्बीस नहीं। दक्ष ने इसी बात को लेकर चंद्रमा को शाप दे दिया, बदले में चंद्र ने भी दक्ष को प्राचेतस होने का शाप दे दिया। दक्ष ने अश्वमेध यज्ञ किया किंतु हम दोनों (महादेव व पार्वती) को आमंत्रित नहीं किया।

तब हे देवी! तुमने सभी देवताओं को देहरहित करने का कहा। क्रोध में तुम्हारे नासाग्र से भद्रकाली तथा माया नाम से तपोमयी देवी प्रकट हुई, इधर मैंने वीरभद्र को उत्पन्न किया। मैंने वीरभद्र को आदेश दिया कि वह इन दोनों देवियों के साथ जाकर इंद्र, यम, वरुण, वायु, कुबेर आदि को पकड़ लिया तथा दक्ष को पाशबद्ध कर लिया गया तथा सभी देवताओं ने ब्रह्मा की शरण ली।

भद्रकाली तथा वीरभद्र ने यज्ञ ध्वस्त कर देवताओं को विदेह कर दिया। तदनंतर ब्रह्मा मंदर पर्वत पर मेरे पास आये तथा सारा वृतांत सुनाकर मुझसे पूछा तुषित हुए देवगण का कायावरोहण कैसे होगा। तब मैंने उन्हें महाकाल वन भेजकर वहां से दक्षिण दिशा में स्थित एक उत्तम लिंग के दर्शन करने का कहा जो सर्वसंपत्ति प्रदायक, दिव्य एवं सिद्धगण के लिए कामप्रद है। इस लिंग की कृपा से देवगण सदेह हो गये व तुषितगण अर्थात् उपदेवता पूर्ववत् हो गये। तभी से यह लिंग कायावरोहरणेश्वर के नाम से प्रसिद्ध है।

फलश्रुति- जो मनुष्य इस लिंग के दर्शन करता है, यम उसके लिए पिता की तरह होते हैं। वह कोटि जन्मार्जित पापों से मुक्त हो जाता है तथा कोटि कल्पों तक उसका पुनर्जन्म नहीं होता है। यदि कोई शठतापूर्वक भी इस देवस्वरूप लिंग की पूजा करता है, उसे ये देवता भोग प्रदान करते हंै।

लेखक – रमेश दीक्षित

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