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उज्जैन की चुनौती स्वच्छ हवा, कम नहीं हो पा रहा एक्यूआइ

उज्जैन। स्वच्छता सर्वेक्षण में नागरिकों की सहभागिता में अव्वल आने वाले उज्जैन के सामने हवा को स्वच्छ करना सबसे बड़ी चुनौती है। तमाम प्रयासों के बाद भी शहर का वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआइ) कम नहीं हो रहा है। कई बार कार्ययोजना बनाई जा चुकी है, लेकिन सफलता नहीं मिली है।

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शहर से डीजल चलित लोडिंग वाहनों में कमी, निर्माण कार्य की धूल रोकने जैसे निर्णय इसमें शामिल थे। विशेषज्ञों का कहना है कि शहर विस्तार को देखते हुए केवल रियल टाइम पाल्यूशन मॉनिटरिंग मशीन लगाने से कुछ नहीं होने वाला है। इन मशीनों से कुछ किलोमीटर के दायरे में ही प्रदूषण का स्तर मापा जा सकता है। रियल टाइम मानिटरिंग मशीन से अभी जो आंकड़े मिल रहे हैं वे अधूरे हैं। विशेषज्ञों ने बताया कि शहर में 15 साल से ज्यादा पुराने वाहनों पर कोई रोक नहीं है।

2 अक्टूबर के अंक में प्रकाशित खबर

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यह हैं प्रमुख चुनौतियां

प्लानिंग का अभाव – एक्यूआइ कम करने के लिए कोई विशेष प्लान नहीं है। वर्षाकाल में यह स्वत: कम हो जाता है और ठंड में बढ़ जाता है। गर्मी में एक्यूआइ बढऩे का दोष पराली जलाने और हवा के कम या तेज गति से चलने को दे दिया जाता है।

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डीजल वाहनों की संख्या – डीजल वाहनों पर रोक नहीं है। 15 साल पुराने वाहन भी आसानी से चल रहे हैं। वे काफी धुआं छोड़ते हैं, जिससे वायु प्रदूषण होता है। वाहनों का फिटनेस भी मैन्युअल हो रहा है।

पीयूसी की सख्ती नहीं – वाहन चलाने के लिए पाल्यूशन अंडर कंट्रोल (पीयूसी) प्रमाणपत्र कई राज्यों में अनिवार्य है, लेकिन इंदौर में ऐसी कोई अनिवार्यता नहीं है। यहां तो एआइसीटीएसएल की बसें भी धुआं उड़ाती चल रही है।

उद्योगों पर नियत्रंण नहीं – शहर के उद्योगों की मनमानी जारी है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारी लापरवाही कर रहे हैं। कई उद्योगों से वायु प्रदूषण हो रहा है, लेकिन बोर्ड कार्रवाई नहीं करता है।

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