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आखिर नेताजी को सबकुछ ठीक क्यों लगने लगा?

भाजपा की पहली सूची जारी होने के बाद मुखर हुए विरोध के स्वर अब थम चुके हैं। विरोध कर रहे नेता भी समझ गए हैं कि पार्टी की सेहत पर उनके विरोध का कोई असर पडऩे वाला नहीं है।

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यही वजह है कि मन की बात सार्वजनिक मंच पर कहने वाले करने का मन बना चुके भाजपा के एक वरिष्ठ नेता को अंतिम समय में मीडिया से चर्चा का मन बदलना पड़ा। ग्रामीण क्षेत्र से आने वाले यह वहीं नेताजी हैं, जिन्होंने पिछले दिनों कहा था कि भाजपा बदल गई है। कार्यकर्ताओं की अब कोई नहीं सुनता। चर्चा इस बात को लेकर है कि अचानक ऐसा क्या हुआ कि कमजोरी गिनाने वाले नेताजी ने अपनी वाणी को विराम दे दिया। जो भी हो, लेकिन इतना तो है कि नेताजी की वजह से पार्टी के भूले-बिसरे नेता एक होने लगे हैं।

जिसे देखो वह चुनाव-विशेषज्ञ

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इन दिनों संस्कारधानी के गली-चौराहोंं में चुनावी चकल्लस का दौर जारी है। विशेषकर चाय-पान के टपरे इसके केंद्र बने हुए हैं। जिसे देखो वह चुनाव-विशेषज्ञ बनकर राजनीतिक विश्लेषण में जुटा हुआ है। हर किसी का अपना गणित है, अपने तर्क हैं। हर किसी का अपना गणित है, अपने तर्क हैं। समीकरण का ऊंट किस करवट बैठेगा, इसे लेकर भविष्य-कथन की तर्ज पर दावे-प्रतिदावे किए जा रहे हैं।

कौन सी विधानसभा सीट किस राजनीतिक दल के खाते में जा सकती है और किस सीट पर परिणाम चौंकाने वाला हो सकता है, इन सभी बिंदुओं को लेकर बहस-मुबाहिसा करने वालों के बीच नौंक-झौंक देखने-सुनने को मिल रही हैं। भयंकर वाद-विवाद-संवाद का वातावरण निर्मित हो गया है।

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दिलचस्प बात तो यह कि फिलहाल मुकाबले का कोण तक तय नहीं हुआ है, मुख्य प्रतिद्वंदी तक फाइनल नहीं हुए हैं और स्वयंभू-सोफोलाजिस्ट निर्णायक स्तर की टिप्पणियों में मशगूल हो गए हैं। यह बातें सुनकर राजनीतिक कार्यकर्ताओं के चेहरों पर कभी खुशी-कभी गम के बादल मंडराते देखे जा सकते हैं।

उधर टिकट न मिले तो ‘आप’ इधर आज जाना

आमतौर पर प्रदेश में चुनावी रण दो दलीय ही होता है और अन्य पार्टियां अप्रभावी ही दिखती हैं। इस बार आम आदमी पार्टी (आप) की आहट भी है। पार्टी के पास न तो कोई बड़ा चेहरा है और न ही बड़ा जनाधार नजर आता है। इसलिए दूसरी पार्टी के नेताओं पर नजर जमाए बैठे हैं, खासकर वे जो अपनों से मुंह फुलाए बैठे हैं। आप उधर टिकट न मिले तो इधर आ जाना की रणनीति पर काम कर रही।

शहर में कांग्रेस के पूर्व विधायक के घर भी नेता पहुंचे, हालांकि वे फिलहाल तो पाला बदलने के मूड में नहीं दिखे। चर्चा है दोनों दलों के कुछ और नेताओं से भी संपर्क किया गया है। अब देखना है कि दोनों दलों में टिकट तय होने के बाद किसे ‘आप’ अपना बना लेती है और कौन पार्टी का निर्णय सिर माथे पर रखकर चुनाव में जुटता है।

पिता-पुत्र कार में मिटिंग

कुछ महीने पहले शहर के एक ‘विशिष्ठ’ परिवार में दरार की बात सार्वजनिक हुई थी। उसके बाद सब कुछ शांत रहा तो अनुमान लगाया गया कि दरार को पाट लिया हैं। पर पिछले दिनों शहर के कई लोगों के नजर मे आया कि विशिष्ठ परिवार के मुखिया और एक युवराज अलग-अलग कार में आते हैं। दोनों कार पास-पास ठहरती हैं। युवराज अपनी कार से निकलकर पिता की कार में जाते हैं। पिता-पुत्र की कार में मिटिंग होती हैं। कार में चंद मिनट की मिटिंग के बाद दोनों कार में गंतव्य की ओर चल देते हैं। चर्चा हैं कि कार मिटिंग का दौर लम्बे समय से चल रहा हैं।

थाना परिसर में विवाद..

सार्वजनिक स्थानों पर विवाद,लडाई,झगड़ों में पुलिस की भूमिका कार्रवाई करने की होती है। झगड़ा,विवाद करने वालों को थाने में बैठा लेती है लेकिन थाने के अंदर झगड़ा हो जाए तो पुलिस क्या करें? हाल के दिनों में दो ऐसे मामले सामने आए कि विवाद करने वालों को पुलिस थाने लेकर आ गई।

अभी कागजी कार्रवाई की प्रक्रिया चल ही रही थी कि दोनों पक्ष थाने में ही झगड़ पड़े। पुलिस के सामने ही हाथापाई कर डाली। इसके बाद भी एक मामले में तो पुलिस ने कुछ नहीं किया। उल्टे दोनों को छोड़ दिया। चर्चा है कि उपर से फोन आने के बाद दोनों पक्ष पर कोई कार्रवाई नहीं की।

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