सूर्यदव को प्रसन्न करने के लिए सूर्याष्टक पाठ किया जाता है। सूर्याष्टक पाठ से व्यक्ति का कॅरियर में तेज रफ्तार से बढ़ता है। रविवार के दिन सूर्याष्टक पाठ करने से सूर्यदेव की विशेष कृपा प्राप्त होती है। सूर्याष्टक पाठ की शुरुआत आदि देव नमस्तुभ्यं प्रसीद मम भास्कर से होती है।
ज्योतिष शास्त्र में सूर्य को ग्रहों का राजा माना जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार अगर सूर्यदेव को आत्मा का प्रतीक माना जाता है। इसके अलावा सूर्यदेव भाग्य, मान-सम्मान, अधिकारीवर्ग, नेतृत्व क्षमता, पिता, शक्ति और ऊर्जा के कारक माने जाते हैं। सूर्यदेव की कृपा से व्यक्ति को भाग्य का साथ हर कदम पर मिलता है। सूर्यदेव की कृपा से व्यक्ति न केवल कॅरियर में सफलता पाता है बल्कि उसका मान-सम्मान भी बढ़ता जाता है। इसका अर्थ यह है कि व्यक्ति को प्रबल भाग्य के लिए सूर्यदेव की कृपा प्राप्त करना बहुत जरूरी है। आपको अगर मेहनत करने के बाद भी सफलता नहीं मिल पा रही है, तो तुरंत फल पाने के लिए आपको सूर्याष्टक का पाठ जरूर करना चाहिए।
आदि देव नमस्तुभ्यं प्रसीद मम भास्कर।
दिवाकर नमस्तुभ्यं प्रभाकर नमोऽस्तुते ।।
सप्ताश्वरथ मारुढ़ं प्रचण्डं कश्यपात्पजम्।
श्वेत पद्मधरं तं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ।।
लोहितं रथमारुढं सर्वलोक पितामहम्।
महापाप हरं देवं तं सूर्य प्रणमाम्यहम्
त्रैगुण्यं च महाशूरं ब्रह्मा विष्णु महेश्वरं।
महापापं हरं देवं तं सूर्य प्रणमाम्यहम् ।।
वृहितं तेज: पुञ्जच वायुराकाश मेव च।
प्रभुसर्वलोकानां तं सूर्य प्रणमाम्यहम्।
बन्धूक पुष्प संकाशं हार कुंडल भूषितम्।
एक चक्र धरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ।
तं सूर्य जगत् कर्तारं महातेज: प्रदीपनम्।
महापाप हरं देवं तं सूर्य प्रणमाम्यहम् ।
तं सूर्य जगतां नाथं ज्ञान विज्ञान मोक्षदम्।
महापापं हरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम्
सूर्याष्टकं पठेन्नित्यं गृहपीड़ा प्रणाशनम।
अपुत्रो लभते पुत्रं दरिद्रो धनवान भवेत।
अभिषं मधु पानं च य: करोत्तिवेदिने।
सप्तजन्म भवेद्रोगी जन्म-जन्म दरिद्रता
स्त्री तेल मधुमां-सा नित्य स्त्यजेन्तु रवेद्रिने।
न व्याधि: शोक दारिद्रयं सूर्यलोकं सगच्छति