निर्जला एकादशी व्रत कब रखा जाएगा? जानें महत्त्व व पूजा विधि

निर्जला एकादशी ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है। इस साल ये व्रत विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि इस बार ये दो दिनों तक मनाया जाएगा। एकादशी तिथि 6 जून 2025 को रात 2:15 बजे शुरू होगी और 7 जून 2025 को सुबह 4:47 बजे समाप्त होगी।उदया तिथि के आधार पर, व्रत 6 जून 2025 को मनाया जाएगा। वैष्णव सम्प्रदाय के लिए ये 7 जून को भी मनाया जाएगा।

Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!

निर्जला एकादशी क्या है?
निर्जला एकादशी हिंदू धर्म में सबसे कठिन और महत्वपूर्ण एकादशियों में से एक मानी जाती है। ‘निर्जला’ का अर्थ है ‘बिना जल के’, अर्थात इस व्रत में भक्त न तो भोजन करते हैं और न ही पानी ग्रहण करते हैं। ये व्रत भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी को समर्पित है। मान्यता है कि इस एकादशी का व्रत रखने से साल की सभी 24 एकादशियों का पुण्य प्राप्त हो जाता है। ये व्रत आत्म-अनुशासन, भक्ति और तप का प्रतीक है, जो भक्तों को मोक्ष, समृद्धि और पापों से मुक्ति दिलाता है।

निर्जला एकादशी का महत्व
निर्जला एकादशी का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व अत्यधिक है। ये व्रत न केवल भक्तों के शारीरिक और मानसिक शुद्धिकरण में मदद करता है, बल्कि ये भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने का भी सशक्त माध्यम है।

इस व्रत को रखने से सभी पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
ज्योतिष के अनुसार, ये व्रत जन्म कुंडली में ग्रहों के नकारात्मक प्रभाव को कम करता है और सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करता है।
इस दिन जल, भोजन और अन्य वस्तुओं का दान करना विशेष रूप से पुण्यदायी माना जाता है। विशेषकर जल का दान करने से पितृ दोष और चंद्र दोष के प्रभाव कम होते हैं।

निर्जला एकादशी की कथा
निर्जला एकादशी की कथा महाभारत के पांडव भाई भीम से जुड़ी है, इसलिए इसे भीमसेनी या पांडव एकादशी भी कहा जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार, भीम भोजन के अत्यधिक शौकीन थे और सभी एकादशियों का व्रत रखने में असमर्थ थे, जबकि उनके भाई और द्रौपदी नियमित रूप से एकादशी व्रत रखते थे।

निर्जला एकादशी को क्यों कहा जाता है भीमसेनी एकादशी? जानिए रोचक कथा 

भीम को चिंता थी कि वे भगवान विष्णु का अपमान कर रहे हैं। तब उन्होंने ऋषि वेदव्यास से मार्गदर्शन मांगा। वेदव्यास ने उन्हें सलाह दी कि वे ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी को निर्जला व्रत रखें, जिसका पुण्य सभी एकादशियों के बराबर है। भीम ने इस व्रत को पूर्ण भक्ति के साथ रखा और भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त की। तभी से ये व्रत भीमसेनी एकादशी के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

निर्जला एकादशी की पूजा विधि

व्रत से एक दिन पहले हल्का भोजन करें और खूब पानी पिएं। जलयुक्त फल जैसे तरबूज और खीरा खाएं ताकि शरीर में जल की कमी न हो।

व्रत के दिन ब्रह्म मुहूर्त (प्रातः 4-5 बजे) में स्नान करें।

भगवान विष्णु के समक्ष व्रत का संकल्प लें। संकल्प में कहें कि आप ये व्रत भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की कृपा के लिए रख रहे हैं।

एक स्वच्छ स्थान पर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।

पूजा के लिए चंदन, तुलसी पत्र, फूल, धूप, दीप, नैवेद्य (फल या मिठाई), और पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, शक्कर का मिश्रण) तैयार करें।

पूजा प्रक्रिया:
भगवान विष्णु को पंचामृत और तुलसी पत्र अर्पित करें।
विष्णु सहस्रनाम या भगवद गीता का पाठ करें।
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः मंत्र का जाप करें।
माता लक्ष्मी की पूजा करें और उन्हें कमल का फूल अर्पित करें।
निर्जला एकादशी की कथा पढ़ें या सुनें।
पूजा के बाद गरीबों और जरूरतमंदों को जल, भोजन, वस्त्र या धन का दान करें।
अगले दिन द्वादशी तिथि पर पारणा समय में व्रत तोड़ें। सबसे पहले जल और फिर हल्का भोजन ग्रहण करें।
व्रत के नियम और सावधानियां

क्या करें:
पूर्ण उपवास रखें, जिसमें भोजन और जल दोनों का त्याग करें।
भगवान विष्णु की भक्ति में समय बिताएं, मंदिर जाएं और धार्मिक प्रवचन सुनें।
दान करें, विशेषकर जल और शरबत का दान गर्मी के मौसम में अत्यंत पुण्यदायी है।
सात्विक जीवनशैली अपनाएं और क्रोध, झूठ और नकारात्मक विचारों से दूर रहें।

क्या न करें:
अनाज, चावल या दाल का सेवन न करें।
तामसिक भोजन (प्याज, लहसुन, मांस आदि) से दूर रहें।
दूसरों का अपमान या नकारात्मक व्यवहार न करें।
व्रत के दौरान शारीरिक श्रम से बचें।

Related Articles