नवरात्री में दुर्गा सप्तशती पाठ के दौरान न करें ये गलतियां

दुर्गा सप्तशती का पाठ एक शक्तिशाली और पुण्यदायी साधना माना गया है और दुर्गा सप्तशती को ‘शक्तिपाठ’ का सर्वोच्च रूप कहा गया है। इस ग्रंथ के पाठ से साधक के जीवन से सभी प्रकार के संकट, भय और बाधाएं अपने-आप ही दूर हो जाती हैं। इसके पाठ से न केवल परिवार में सुख-शांति और समृद्धि आती है, बल्कि नकारात्मक ऊर्जा और दुर्भाग्य का नाश होकर, जीवन में शुभता और सौभाग्य का वास होता है। नवरात्रि में बहुत से साधक और भक्त देवी मां की उपासना 9 दिनों तक दुर्गा सप्तशती ग्रंथ के पाठ से करते हैं। आइए जानते हैं, दुर्गा सप्तशती पाठ के दौरान कौन-सी गलतियां करने से बचना आवश्यक है?
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दुर्गा सप्तशती का पाठ को करते समय इसे कभी भी अधूरा नहीं छोड़ना चाहिए। ज्योतिषाचार्य हर्षवर्धन शांडिल्य बताते हैं कि इस ग्रंथ के पाठ का क्रम सही होना चाहिए।
दुर्गा सप्तशती का पाठ शुरू करने से पहले किताब को लाल कपड़े पर रखें और उस पर अक्षत (चावल) और फूल चढ़ाएं। इस बात का ध्यान रखें कि पाठ करते समय किताब को हाथ में लेकर कभी न पढ़ें।
पाठ शुरू करने से पहले शिखा अवश्य बांध लेनी चाहिए। इसके बाद पूरब दिशा की ओर मुख करके आसन पर बैठकर 4 बार आचमन करना चाहिए।
इसके बाद देवी मां को रोली,कुमकुम,लाल पुष्प,अक्षत और जल अर्पित करके श्रद्धापूर्वक पूजा का संकल्प लेना चाहिए।
पाठ करते समय केवल कुशा या ऊन से बने आसन पर ही बैठें। ध्यान रखें, पाठ के दौरान हाथों से पैरों का स्पर्श न करें।
दुर्गा सप्तशती का पाठ आरंभ करने से पहले ग्रंथ का श्रद्धापूर्वक प्रणाम कर ध्यान करें और फिर पाठ आरंभ करें।
हर दिन सबसे पहले अर्गला स्तोत्रम्, कीलक और कवच का पाठ करना चाहिए और फिर मुख्य पाठ की शुरुआत करनी चाहिए।
दुर्गा सप्तशती के पाठ में प्रत्येक शब्द का उच्चारण शुद्ध, स्पष्ट और सही प्रकार से होना आवश्यक है। किसी भी शब्द को न उल्टा-पुल्टा बोलें और न ही कोई हेरफेर करें।
पाठ के दौरान जब माता किसी राक्षस का वध करती हैं, तो उस जगह पाठ को बीच में न रोकें। प्रसंग पूरा पाठ होने के बाद ही पाठ रोकें।
दुर्गा सप्तशती का पाठ करते समय बीच में कभी भी रुकना नहीं चाहिए। एक बार पाठ शुरू करें तो बिना रुके पूरा करना चाहिए।
दुर्गा सप्तशती का पाठ के दौरान यदि शौच-नित्य क्रिया आदि लग जाए, तो फिर से नहाकर और शुद्ध वस्त्र धारण पाठ आरंभ करना चाहिए।
दुर्गा सप्तशती के पाठ की गति न तो बहुत तेज हो और न ही बहुत धीमी। हमेशा मध्यम गति में ही पाठ करना चाहिए।
पाठ समाप्त होने के बाद ग्रंथ को प्रणाम कर सही तरीके से बंद कर उचित स्थान पर रखना चाहिए।