धर्म ग्रंथों के अनुसार, हर साल भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को ऋषि पंचमी का व्रत किया जाता है। इस बार ये तिथि 8 सितंबर, रविवार को किया जाएगा। ये व्रत महिला प्रधान हैं। ये व्रत सिर्फ वहीं महिलाएं करती हैं जो रजस्वला होती हैं यानी जिनके पीरियड आते हैं। इस व्रत में सप्तऋषियों की पूजा करने की परंपरा है। आगे जानिए ऋषि पंचमी व्रत की पूजा विधि, मुहूर्त, कथा व अन्य खास बातें…
ऋषि पंचमी पूजा शुभ मुहूर्त
पंचांग के अनुसार, भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि 07 सितंबर, शनिवार की शाम 05:37 से 08 सितंबर, रविवार की रात 07:58 तक रहेगी। चूंकि पंचमी तिथि का सूर्योदय 8 सितंबर को उदय होगा, इसलिए इसी दिन ये व्रत किया जाएगा। रविवार को बुधादित्य नाम का राजयोग रहेगा। इस दिन पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 11:03 से 01:34 तक रहेगा। यानी पूजा के लिए कुल अवधि 02 घंटे 30 मिनिट की रहेगी।
ऋषि पंचमी पूजा विधि
सुबह घर की सफाई करने के बाद सप्त ऋषियों के साथ देवी अरुंधति की मूर्ति स्थापित करें।
पूजा शुरू करने से पहले पूरे घर में गंगा जल छिड़कें।
फिर अगरबत्ती या धूप जला लें।
फिर सप्त ऋषियों की तस्वीर के सामने जल से भरा हुआ कलश रख दें।
फिर सप्त ऋषियों को धूप-दीप दिखाएं और पीले रंग के फल-फूल के साथ-साथ पीली मिठाइयां भी चढ़ाएं।
फिर सप्त ऋषियों से अपनी गलतियों को क्षमा करने के लिए प्रार्थना करें।
उसके बाद ऋषि पंचमी की कथा का श्रवण करें । .
इसके बाद सप्त ऋषियों की आरती करें और सभी लोगों को प्रसाद बांटें।
जब पूजा समाप्त हो जाए तो घर के बड़ों के पैर छूएं और उनका आशीर्वाद लें।
ऋषि पंचमी 2024 पूजा मंत्र
कश्यपोत्रिर्भरद्वाजो विश्वामित्रोथ गौतमः जमदग्निर्वसिष्ठश्च सप्तैते ऋषयः स्मृताः दहंतु पापं सर्व गृह्नन्त्वर्ध्यं नमो नमः॥
ऋषि पंचमी का महत्व
मान्यता है कि ऋषि पंचमी के दिन व्रत रखने से सप्तऋषियों के आशीर्वाद से घर-परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है. इस दिन पूरे देश में श्रद्धालु बड़ी श्रद्धा और भक्ति के साथ सप्त ऋषियों की अराधना करते हैं और अपने जीवन को धर्ममय बनाने की कामना करते हैं. ऋषि पंचमी के इस पवित्र अवसर पर सभी भक्तजन अपने मन को पवित्र और सच्चे आस्था से ऋषियों की पूजा करते हैं और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करते हैं.
ऋषि पंचमी के दिन सप्त ऋषियों के स्वर्ण की प्रतिमा बनाकर किसी योग्य ब्राह्मण को दान करने से अनंत पुण्य फल की प्राप्ति होती है. सप्तऋषियों के आशीर्वाद से लोगों को किसी प्रकार की समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ता है और जीवन में खुशियां बनी रहती हैं.
ऋषि पंचमी व्रत कथा
एक बार एक राज्य में उत्तक नाम का ब्राह्मण अपनी पत्नी के साथ रहता था। इनके परिवार में एक बेटा और एक बेटी थी। ब्राह्मण ने अपनी बेटी का विवाह एक अच्छे और प्रतिष्ठित ब्राह्मण परिवार में किया। लेकिन जैसे – जैसे समय बीतता गया, लड़की के पति की अकाल मृत्यु हो जाती है और वह विधवा हो गई, और इस कारण अपके पिता के घर लौट गई। ठीक बीच में लड़की के पूरे शरीर पर कीड़े लग गए। उसके संक्रमित शरीर को देखने के बाद, वे दु:ख से व्यथित हो गए और अपनी बेटी को उत्तक ऋषि के पास यह जानने के लिए लेकर गए कि उनकी बेटी को क्या हुआ है।
उत्तक ऋषि ने उन्हें बताया कि कैसे उसने फिर से एक मनुष्य के रूप में पुनर्जन्म कैसे लिया। उन्होंने कन्या को पिछले जीवन के बारे में सब कुछ बताया। ऋषि ने अपने माता – पिता को लड़की के पहले जन्म के विवरण के बारे में बताया। और कहा कि कन्या पिछले जन्म में मनुष्य थी। उन्होंने आगे कहा रजस्वला – महावारी होने के बाद भी उसने घर के बर्तन आदि को छुआ था जिसके कारण उसे इन सभी पीड़ाओं का सामना करना पड़ रहा है। अनजाने में किए गए इस पाप के कारण उसके पूरे शरीर पर कीड़े पड़ गए।
प्राचीन ग्रंथों के अनुसार एक लड़की या महिला अपने मासिक धर्म (रजस्वला या महावारी) पर पूजा का हिस्सा नहीं बन सकती। लेकिन उसने इस पर ध्यान नहीं दिया और उसे किसी भी तरह इसकी सजा भुगतनी पड़ी।
ऋषि पंचमी पर क्या न करें
इस दिन मांसाहार और मदिरा का सेवन वर्जित माना जाता है।
तम्बाकू का सेवन भी इस दिन नहीं करना चाहिए।
इस दिन अशुद्ध या बासी भोजन का सेवन नहीं करना चाहिए।
झूठ बोलना या किसी का अपमान करना भी वर्जित है।
इस दिन क्रोध करना या किसी से झगड़ा करना भी नहीं चाहिए।
इस दिन मनोरंजन से बचना चाहिए और धार्मिक कार्यों में अधिक समय देना चाहिए।
किसी भी प्रकार का अनैतिक कार्य करना वर्जित है।
इस दिन अनावश्यक बातें करना और व्यर्थ का समय बर्बाद करना भी नहीं चाहिए।
ऋषि पंचमी से जुड़े 7 रोचक तथ्य
पौराणिक मान्यता के अनुसार ऋषि पंचमी पर सप्तऋषियों की पूजा आराधना के साथ-साथ माता अरुंधती की भी उपासना की जाती है।
अशुद्धियों व दोषों के निवारण के लिए ऋषि पंचमी का व्रत विशेष महत्वपूर्ण माना जाता है। हालांकि पुरुषों के लिए इस व्रत का पालन करने का विधान नहीं है। लेकिन किसी भी वर्ग या आयु की स्त्रियां ये व्रत रख सकती हैं।
धार्मिक मान्यता के अनुसार इस व्रत में अपामार्ग नामक पौधे का विशेष महत्व होता है। कहा जाता है कि बिना इसके तने से दातून किए ऋषि पंचमी का व्रत फलित नहीं होता है।
ऋषि पंचमी पर गंगा नदी में स्नान करने का भी विशेष महत्व है। यदि इस दिन गंगा स्नान संभव न हो तो नहाने के जल में गंगाजल मिलाकर स्नान करें।
ऋषि पंचमी व्रत धन-समृद्धि की कामना, सुयोग्य वर पाने या मनोकामना पूर्ति के उद्देश्य से नहीं किया जाता है, बल्कि ये व्रत रजोधर्म का पालन करने दौरान हुई किसी भी भूल के दोष निवारण की कामना से किया जाता है।
ऋषि पंचमी व्रत के बारे में एक और रोचक बात ये है कि अन्य व्रत-त्यौहारों की तरह इस व्रत में किसी देवी-देवता की उपासना नहीं की जाती, बल्कि इस दिन सप्तर्षियों की पूजा करने का विधान है।
इस दिन उपवास में दही और साठी का चावल खाने का विधान है। ऋषि पंचमी के व्रत में नमक का प्रयोग वर्जित होता है। साथ ही इस व्रत में हल से जोते हुए खेत से उगने वाली वस्तुओं का भी सेवन नहीं किया जाता है।