जिसे छुआ वो कुंदन हो गए, कई शिष्य पहुंंचे सत्ता-संगठन के शिखर पर

शालिगराम तोमर स्मृति समारोह पर विशेष
Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!
शाजापुर जिले के पोलाय कला ग्राम में जन्मे स्व. शालिग्राम तोमर, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अनेक वर्षों तक प्रचारक रहे एवं उसके बाद उन्होंने लंबे समय तक अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के संगठनकर्ता के रूप में जिम्मेदारी का निर्वहन किया। इस दौरान उन्होंने देश भर में राजनीतिक, प्रशासनिक, उद्यमी, सामाजिक क्षेत्र में भी अनेक कार्यकर्ता खड़े किए।
संघ के वरिष्ठ प्रचारक, सरल व सौम्य व्यवहार के धनी, समयपालन व अनुशासनप्रिय श्री शालिगराम तोमर का जन्म मध्य प्रदेश के शाजापुर जिले के ग्राम पोलायकलां में चार जुलाई 1941 को एक सामान्य किसान परिवार में हुआ था। इनके पिता उमराव सिंह तथा माता श्रीमती नाथीबाई थी। शालिगराम की प्राथमिक शिक्षा अपने गांव में हुई। गांव में शाखा लगने पर अपने बड़े भाई श्री रामप्रसाद तोमर के साथ वे भी शाखा में जाने लगे। धीरे-धीरे संघ के विचार और शाखा के कार्यक्रमों के प्रति उनका अनुराग बढ़ता चला गया। कुछ समय बाद उन्हें ही शाखा का मुख्यशिक्षक बना दिया गया। इस काल में शाखा में भरपूर संख्यात्मक एवं गुणात्मक वृद्धि हुई। अत: तहसील और जिले के अनेक वरिष्ठ कार्यकर्ता उनकी शाखा पर आये।
तत्कालीन व्यवस्था के अनुसार अल्पावस्था में ही उनका विवाह हो गया। उनकी पत्नी का नाम शांता देवी है। कुछ समय बाद उनके घर में एक पुत्री ने जन्म लिया, जिसका नाम मानकुंवर रखा गया। अब वे अपनी आगामी शिक्षा पूर्ण करने के लिए जिला केन्द्र शाजापुर आ गये। यहां पढ़ाई के साथ ही संघ कार्य की गति भी बढऩे लगी। 1965 में हायर सैकेंडरी कर उन्होंने स्वयं को संघ कार्य के लिए समर्पित कर दिया।
प्रारम्भ में वे राजगढ़ में विस्तारक बनाये गये। क्रमश: उन्होंने संघ के तीनों वर्ष के प्रशिक्षण तथा बीए, मनोविज्ञान में एमए तथा कानून की परीक्षा भी उत्तीर्ण की। गृहस्थ होते हुए भी उनके जीवन में प्राथमिकता सदा संघ कार्य को रही । 1967 में उन्हें उज्जैन का नगर प्रचारक बनाया गया। क्रमश: वे जिला और फिर उज्जैन के विभाग प्रचारक बने।
आपातकाल में पुलिस उन्हें तलाश ही करती रही। इनके नाम वारंट थे, पर वे भूमिगत रहकर कार्यकर्ताओं को संगठित कर संघ पर प्रतिबन्ध और इंदिरा गांधी की तानाशाही के विरुद्ध आंदोलन को तेज करते रहे। जो कार्यकर्ता जेल में थे, उनके परिवारों से जीवंत सम्पर्क कर उनका उत्साह बनाये रखने में शालिगराम जी की प्रमुख भूमिका रही । 1978 में उन्हें ‘अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के काम में लगाया गया। क्रमश: उनका कार्यक्षेत्र बढ़ता गया और उन्होंने महाकौशल, मध्यप्रदेश, उड़ीसा तथा उत्तर प्रदेश में विद्यार्थी परिषद के कार्य को मजबूत किया। उस दौरान बने कई कार्यकर्ताओं ने भविष्य में राजनीतिक व सामाजिक क्षेत्र में प्रतिष्ठा प्राप्त की। शालिगराम जी ने संगठन के काम को स्थायित्व देने के लिए उज्जैन में संघ तथा फिर विद्यार्थी परिषद के कार्यालय बनवाये।
भोपाल में भी उन्होंने शासन से भूमि आवंटित कराई और उस पर परिषद कार्यालय बनवाया । 1992 में वे ब्रेन ट्यूमर के शिकार हो गये । शल्य चिकित्सा से कुछ लाभ तो हुआ पर उसके दुष्प्रभाव से उनके शरीर के निचले भाग पर लकवा मार गया। अत: वे अपने गांव पोलायकलां ही आ गये। यहां उन्होंने मानव सेवा विकास न्यास, आदर्श श्रीकृष्ण गोशाला, निवेदिता महिला मंडल आदि का गठन किया। इनके द्वारा नेत्र शिविर, अनाज भंडारण आदि करते हुए वे सेवा एवं ग्राम्य विकास के क्षेत्र में सक्रिय हो गये। उन्होंने विद्यालय खोलने के लिए ग्राम सभा की आठ बीघा भूमि प्रदेश शासन को भी उपलब्ध कराई।
आगे चलकर तीन बार 1996, 2001, 2010 में उनकी शल्यक्रिया और हुई पर वे पूरी तरह स्वस्थ नहीं हो पाये। 26 नवम्बर, 2010 को उज्जैन के संजीवनी चिकित्सालय में उनका देहांत हुआ। उस समय म.प्र. के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने शालिगराम को विद्यार्थी परिषद के कार्य में अपना प्रेरणास्रोत बताया।
सान्निध्य पाकर कई बन गए दिग्गज नेता
मध्यप्रदेश शासन के कई विधायक एवं मंत्री राजनीति के परिद्रश्य पर उनके द्वारा प्रतिष्ठित युवा सत्ता और संगठन का सफल नेतृत्व कर रहे है। शालिगराम तोमर वह पासर थे, जिसे छुआ वो कुंदन हो गए। थावरचंद गहलोत, मोहन यादव, कैलाश विजयवर्गीय,विष्णु दत्त शर्मा, कमल पटेल,पारस जैन,अर्चना चिटनिस, शिवनारायण जागीरदार, इन्दर सिंह परमार के साथ अनेक नेता और कार्यकार्ताओं को शालिगराम तोमर का सानिध्य और मार्गदर्शन मिला है।
शालिगराम तोमर का जीवन में एक ही लक्ष्य रहा….
‘मांगू नहीं मर जाऊ अपने तन के काज, परमार्थ के कारने मोहे न आवे लाज ,तन समर्पित मन समर्पित और यह जीवन समर्पित, चाहता हूं देश की धरती बात और में क्या दूं…।’ शालिगराम तोमर के शिष्य,समर्थक भी यहीं प्रार्थना करते है…..’हम आपके मोक्ष की कामना नहीं करेंगे, पुनर्जन्म लो देशहित प्रार्थना यही करेंगे….।’
इनका होगा सम्मान
सूर्यकांत केलकर नौकरी त्याग भारत माता की सेवा में जुटे
सूर्यकांत पाण्डुरंग केलकर का जन्म उज्जैन में 8 अप्रैल 1945 को हुआ। इनके आपके पिताजी स्वर्गीय पांडुरंग केलकर जी उज्जैन के प्रसिद्ध चिकित्सक तथा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बहुत पुराने कार्यकर्ता रहे। इस संघमय वातावरण में सूर्यकांत जी की शिक्षा सिविल इंजीनियर और बाद में एमए एलएलबी की हुई। दो वर्ष 1964 से 65 में सरकारी नौकरी सिंचाई विभाग शाजापुर में आपने की लेकिन वे तो जैसे भारत माता की सेवा के लिए ही बने थे।
जल्दी ही आपने नौकरी से त्यागपत्र देकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के जिला प्रचारक के रूप में श्योपुर सबलगढ़ फिर विभाग प्रचारक के रूप में शिवपुरी में रहे। 1971 में अ. भा. विद्यार्थी परिषद के प्रांतीय संगठन मंत्री के रूप में अपने कार्यभार संभाला और 1975 में आपातकाल के बाद आप भूमिगत रहकर तत्कालीन सरकार के विरुद्ध संघर्षरत रहे लेकिन एक मुखबिर की सूचना पर जून 1976 में आप भोपाल में पुलिस द्वारा पकड़ लिए गए आपके साथ उसी दिन श्री शिवराज सिंह चौहान एवं राकेश कुमार जैन भी पकड़े गये। आपको व श्री शिवराज सिंह चौहान जी को मीसा के अन्तर्गत जेल भेज दिया गया।
तत्पश्चात आपातकाल समाप्ति तक आप जेल में ही रहे। तत्पश्चात आपने 1978 में विद्यार्थी परिषद के उडीसा फिर दिल्ली पंजाब आदि में आपने विद्यार्थी परिषद के कार्य का विस्तार किया विद्यार्थी परिषद के क्षेत्रीय संगठन के रूप में संगठन मंत्री के रूप में भी अपने मध्य क्षेत्र मध्य प्रदेश उड़ीसा छत्तीसगढ़ का कार्यभार संभाला। वर्ष 2000 में आपको सहकार भारती के राष्ट्रीय संगठन मंत्री के रूप में कार्य करने का अवसर मिला, जहां उन्होंने अगले 10 सालों तक देश भर में सहकार भारती को खड़ा करने में अपना महती योगदान दिया।
उसके बाद आपने देश में बांग्लादेशी घुसपैठियों की बढ़ती समस्या के कारण अन्य सभी कार्य छोड़कर इस समस्या के समाधान के लिए देशभर में सेमिनार, गोष्टी, धरना इत्यादि का आयोजन कर जन जागरण का कार्य प्रारम्भ किया। भारत रक्षा मंच के नाम से आप अभी भी पूरे देश भर में कार्यकर्ताओं को प्रेरणा देने और देश की सीमाओं पर बढ़ती जा रही आतंकवादी गतिविधियों और सीमावर्ती इलाकों की रक्षा के लिए कार्य कर रहे हैं।