अनंत चतुर्दशी का पर्व भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है. इसे ‘अनंत चौदस’ भी कहते हैं. मान्यता है कि अनंत चतुर्दशी का व्रत रखकर विधि विधान से भगवान श्रीहरि की पूजा करने से 14 वर्षों तक अनंत फल की प्राप्ति होती है. कहा जाता है कि महाभारत काल में पांडव ने अनंत चतुर्दशी के दिन व्रत रखा था, जिसके प्रताप से उन्होंने अपना खोया हुआ राजपाठ प्राप्त किया था. बता दें कि गणेश चतुर्थी के 10वें दिन यानि अनंत चतुर्दशी के दिन ही गणपति जी का विसर्जन होता है.
अनंत चतुर्दशी 2024 पूजा का शुभ मुहूर्त
17 सितंबर को अनंत चतुर्दशी की पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 6 बजकर 7 मिनट से 11 बजकर 44 मिनट तक है। उस दिन गणेश पूजा के लिए आपको 5 घंटे 37 मिनट की शुभ समय प्राप्त होगा। उस दिन भगवान विष्णु के अनंत स्वरूप की पूजा भी होती है।
क्या है अनंत चतुर्दशी का महत्व और क्यों मनाया जाता है यह पर्व?
अनंत चतुर्दशी के दिन विघ्नहर्ता के अलावा भगावन विष्णु के अनंत स्वरूप की पूजा की जाती है। इस मौके पर लोग दाएं हाथ में 14 गांठ वाला अनंत धागा या रक्षा सूत्र बांधते हैं। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक इस दिन बांधा गया यह अनंत धागा व्यक्ति को सुरक्षित रहता है, उसे किसी चीज का भय नहीं रहता है। श्रीहरि की कृपा से उसे जीवन के अंत में मोक्ष की प्राप्ति होती है। उसे वैकुंठ में स्थान प्राप्त होता है।
अनंत चतुर्दशी पूजा विधि
1. अनंत चतुर्दशी के मौके पर सुबह उठकर स्नान करें और साफ वस्त्र धारण करें.
2. अब पूजा स्थल को साफ करें.
3. इसके बाद गंगाजल का छिड़काव करें.
4. अब पूजा स्थल पर भगवान विष्णु की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें.
5. इसके बाद भगवान विष्णु जी को अक्षत, फूल, इत्र, चंदन, धूप, दीप, नैवेद्य आदि चीजें अर्पित करें.
6. अब भगवान विष्णु की आरती करें.
7. इसके बाद भगवान विष्णु जी की मंत्रो का जाप जरूर करें.
8. अंत में भगवान विष्णु को अनंत सूत्र अर्पित करें.
अनंत चतुर्दशी व्रत कथा
1. पुराणों में वर्णित कथा के अनुसार, प्राचीन काल में सुमंत नाम का एक ब्राह्मण अपनी बेटियों दीक्षा और सुशीला के साथ रहता था. सुशीला के विवाह योग्य होने पर उसकी मां का निधन हो गया. ब्राह्मण सुमंत ने अपनी पुत्री सुशीला का विवाह कौंडिन्य ऋषि से कर दिया. कौंडिन्य ऋषि सुशीला को लेकर अपने आश्रम जा रहे थे, लेकिन रात हो जाने के चलते वो रास्ते में ही रुक गए.
2. उस जगह कुछ महिलाएं अनंत चतुर्दशी व्रत की पूजा कर रही थीं. सुशीला ने व्रत की महिमा का ज्ञान प्राप्त किया और 14 गांठों वाला अनंत धागा धारण कर लिया. ऋषि कौंडिन्य को यह अच्छा नहीं लगा और उन्होंने धागे को तोड़कर आग में डाल दिया.
3. अनंत सूत्र के इस अपमान के कारण कौंडिन्य ऋषि की सारी संपत्ति नष्ट हो गई और वो दुखी रहने लगे. उन्हें लगा कि ऐसा अनंत सूत्र के अपमान के कारण ही हुआ है और वो उस अनंत सूत्र के लिए वन में भटकने लगे. एक दिन वे भूख-प्यास से जमीन पर गिर पड़े, तब भगवान अनंत प्रकट हुए.
4. प्रभु ने कहा कि कौंडिन्य तुमने अपनी भूल का पश्चाताप कर लिया है. अब घर जाकर अनंत चतुर्दशी का व्रत करो और 14 साल तक इस व्रत को करना. कौंडिन्य ऋषि ने वैसा ही किया. व्रत के प्रभाव से कौंडिन्य ऋषि का जीवन सुखमय हो गया और उनकी संपत्ति भी वापस आ गई.