अब कह रहे 20 प्रतिशत दो, फिर देखते हैं आगे का
अक्षरविश्व न्यूज. उज्जैन:फ्रीगंज में गुरुनानक मार्केट के सामने स्थित नगर निगम के नवनिर्मित कॉम्पलेक्स के पुराने दुकानदार इन दिनों परेशान हैं। वे निगमायुक्त तक अपनी बात रख आए हैं, लेकिन कोई उनका समाधान नहीं कर रहा है। केवल यह कहा जा रहा है कि कॉम्पलेक्स की लागत 70 लाख रुपए बढ़ गई है, ऐसे में अब करीब 3 लाख रुपए प्रति दुकदानदार अधिक देना होंगे, उसके बाद देखते हैं आगे क्या करना है? याने उसके बाद भी उनकी दुकानों का नामांतरण हो पाएगा, इसे लेकर दुकानदारों में संशय है।
उक्त कॉम्पलेक्स में भू-तल पर पहले 12 दुकानें होती थी, जिनकी साइज भी अच्छी थी। इस कॉम्पलेक्स के प्रथम तल पर एक जमाने में जनसंपर्क विभाग का कार्यालय होता था, जो भरतपुरी में शिफ्ट होने के बाद खाली ही पड़ा था। सालों तक यह कॉम्पलेक्स केवल भू-तल की दुकानों से ही हरा-भरा रहा। इसके बाद पिछले निगम बोर्ड ने इस कॉम्पलेक्स को तोड़कर नया भवन बनाने का प्रस्ताव रखा। दुकानदारों के अनुसार उन्हें कहा गया कि तुम्हारी दुकानें भी टूटेंगी, बदले में नए कॉम्पलेक्स में प्रत्येक दुकानदार को एक दुकान देंगे लेकिन लागत मूल्य भी लगेगा, जो कि करीब 16 लाख रुपये प्रति दुकानदार बताया गया।
दुकानदार अपना नाम प्रकाशित न करने का आग्रह करते हुए कहते हैं-आप नाम प्रकाशित करोगे तो हमें और परेशान किया जाएगा। पहले ही यहां से धंधा हटाने के बाद आर्थिक मार झेल रहे हैं। फिर वे बताते हैं- हमसे किस्तों में राशि नगर निगम लेता रहा। सभी दुकानदारों से करीब 16 लाख रुपए नगर निगम ने ले लिए। जो पत्र तत्कालीन समय में दुकानदारों को दिया गया, उसमें उल्लेख किया गया था कि आखिरी किस्त जमा कराने के बाद दुकान की लीज डीड बनाई जाएगी और पजेशन दे दिया जाएगा। याने नामांतरण हो जाएगा।
दुकानदारों के अनुसार आखिरी किस्त जमा करा दी। नया निगम बोर्ड बैठा है। किस्त जमा कराने के बाद विधानसभा चुनाव के ठीक पूर्व उक्त कॉम्पलेक्स का लोकार्पण भी कर दिया गया। दुकान/ऑफिस की निविदा भी निकाल दी गई। पहले भू-तल पर 12 दुकानें थी, अब 16 दुकानें निकाली गई। पूर्व की अपेक्षा साइज भी छोटी कर दी गई। इसके बाद भी दुकानदारों को आशा थी कि लोकार्पण हो गया है, दुकान मिल ही जाएगी। लेकिन जब वे निगम गए तो वहां नया फरमान मिला-कहा गया कि दुकान सहित कॉम्पलेक्स की लागत करीब 70 लाख रुपए बढ़ गई है। अत: अतिरिक्त राशि दुकानदारों को भी देना होगी। अंदाज से बताया गया-करीब 3 से साढ़े 3 लाख रुपए ओर लग सकते हैं?
एक दुकानदार ने इस प्रतिनिधि से कहा कि हम निगमायुक्त रोशनकुमार सिंह से मिले। उन्हें बताया कि दुकान को तोडऩे से पूर्व हमें पत्र इस प्रकार मिला। फिर हमसे किस्त जमा करवाई जाती रही। आखिरी किस्त भी जमा करवा ली गई। लोकार्पण भी हो गया।
अब कहा जा रहा है कि दुकान नहीं मिलेगी क्योंकि कास्ट बढ़ गई है? प्रश्न किया कि यदि कास्ट बढ़ गई है तो फिर हमारी आखिरी किस्त के समय क्यों नहीं बताया गया? निविदाएं कैसे निकाली गई? जिन्होंने नई दुकान ली है पूर्व में निविदा के भाव से, उनसे कैसे वसूली कर पाओगे? कास्ट बढ़ गई थी तो लोकार्पण कैसे कर दिया? कर दिया तो अब नामांतरण करके पजेशन क्यों नहीं दे रहा हो? पजेशन के अभाव में इतने लंबे समय से सभी का रोजगार/व्यवसाय चौपट हो गया है? यह दीपावली भी निकल गई।
अब हम कहां जाएं? दुकानदारों का आरोप रहा कि निगमायुक्त पूरे समय बात सुनते रहे, हां में हां मिलाते रहे। उन्होंने कहा कि बात तो सही कह रहे हो, लेकन फिर ये कहा कि चुनाव बाद देखते हैं, अभी तो सभी बिजी है। अब हम मिलने गए तो बताया गया कि वे अवकाश पर हैं। ऐसे में हमारी नगर निगम में कोई सुनवाई नहीं हो रही है।
यह दावा है सूत्रों का
निगम के सूत्र बताते हैं कि कास्ट बढऩे को लेकर जब फाइल चली तो एक अधिकारी ने उस पर सख्ती से नोट लगाया कि कास्ट कैसे बढ़ सकती है। ठेकेदार ने निविदा अनुसार काम किया और भवन बनकर तैयार हो गया। उसकी कोई डिमांड नहीं आई। ऐसे में यह राशि किस मद में ओवर कास्ट मानकर वसूली जाएगी और किस मद में इसे डाला जाएगा? सूत्र बताते हैं कि इस नोट के लगने के बाद सभी ने अपने हाथ पिछे खींच लिए हैं। अब निगमायुक्त ही अवकाश से लौटकर इस पर अंतिम फैसला लेंगे। वहीं कांग्रेस के कतिपय पार्षदों का कहना है कि 3 दिसंबर को हमारी सरकार आ रही है, पूरे मामले की जांच करवाएंगे।
इनका कहना है
इस संबंध में नगर निगम आयुक्त रोशनकुमार सिंह से बात की गई तो उन्होंने कहा कि वे अवकाश पर हैं। लौटने पर मामला देखेंगे।