सर्वपितृ अमावस्या : जानिए पुत्र न हो तो कौन कर सकता है तर्पण

By AV NEWS

इस दिन पितरों के निमित्त दिया दान, ध्यान, आह्वान, प्रणाम पितृदोष की शांति का निमित्त बनता है।

Sarvapitri Amavasya  : श्राद्ध पक्ष चल रहे हैं और अब सभी को सर्वपितृ अमावस्या का इंतजार है। उस दिन ज्ञात-अज्ञात पिरतों का श्राद्ध किया जाता है। इस बार सर्वपितृ अमावस्या 17 सितंबर, गुरुवार को है। इसे आश्विन अमावस्या, बड़मावस और दर्श अमावस्या भी कहा जाता है। आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को सर्वपितृ अमावस्या कहा जाता है। श्राद्ध पक्ष में एक सवाल जरूर उठता है कि यदि किसी परिवार में पुत्र नहीं है तो श्राद्ध और तर्पण कौन कर सकते है। शास्त्रों में इसका समाधान भी दिया गया है।

शास्त्रों में लिखा गया है कि सबसे पहले तो पुत्र-पितृ और पात्र प्रमुख है। अर्थात् वह पुत्र पात्रता को प्राप्त होता है जो पितरों को तर्पण के द्वारा संतुष्ट करता है। उस पुत्र को पैतृक दोष रह ही नहीं सकता। मनुस्मृति और ब्रह्मवैवर्तपुराण जैसे प्रमुख शास्त्रों में यही बताया गया है कि पुत्र के अभाव में पौत्र और उसके अभाव में प्रपौत्र अधिकारी है।

पुत्र के अभाव में पत्नी भी श्राद्ध कर सकती है। इसी प्रकार पत्नी का श्राद्ध पति भी कर सकता है। यदि पिता के अनेक पुत्र हों तो ज्येष्ठ पुत्र को श्राद्ध करना चाहिए। यदि भाई अलग-अलग रहते हों तो वे सभी कर सकते हैं। किंतु संयुक्त रूप से एक ही श्राद्ध करना अच्छा है।

पुत्र परंपरा के अभाव में भाई तथा उसके पुत्र को भी अधिकार है। धेवता (नाती), भतीजा, भांजा और शिष्यगण को भी पिंडदान का अधिकारी माना गया है। यदि कोई विहित अधिकारी न हो तो कन्या का पुत्र या परिवार का कोई उत्तराधिकारी श्राद्ध कर सकता है। पितरों के प्रति आदरपूर्वक श्राद्ध करने के लिए सात्विकता ग्रहण करना, अहंकार का त्याग करना इन दो बातों को प्रमुख माना गया है।

बड़ी अमावस्या का बड़ा लाभ

पितरों के निमित्त अमावस्या तिथि में श्राद्ध व दान का विशेष महत्व है। यह चाहे श्राद्धपक्ष की अमावस्या हो या फिर हर मास में आने वाली, पितरों के तर्पण के लिए प्रमुख मानी जाती है। सूर्य की सहस्त्र किरणों में से ‘अमा’ नामक किरण प्रमुख है, जिसके तेज से सूर्य समस्त लोकों को प्रकाशित करता है। चंद्र का ठहराव होता है उस दिन और इसी कारण धार्मिक कार्यों में अमावस्या को विशेष महत्व दिया जाता है।

लेकिन सर्वपितृ अमावस्या का तो अपना ही महत्व है। इसे सबसे बड़ी अमावस्या माना गया है और इसके लाभ भी बहुत से है। पितृदोष से पीड़ित जातकों के लिए यह दिन वरदान समान है। इस दिन पितरों के निमित्त दिया दान, ध्यान, आह्वान, प्रणाम पितृदोष की शांति का निमित्त बनता है।

पितरों की आत्मा की शांति के लिए हर अमावस्या पर दान-पुण्य करने का विधान है। पितृगण अमावस्या के दिन वायु रूप में सूर्यास्त तक घर के द्वार पर उपस्थित रहते हैं और अपने स्वजनों से तर्पण की अभिलाषा करते हैं। पितृ पूजा करने से मनुष्य आयु ,पुत्र, यश कीर्ति, पुष्टि, बल, सुख व धन धान्य प्राप्त करते हैं।

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