सफलता और सरकार का पता नहीं…, योजना बनने लगी और सपने देखने लगे

चुनाव के परिणाम आने में वक्त है। इंतजार की घडिय़ां क्या होती है यह इस समय सियासत में अहम किरदार निभाने वालों के हाल देखकर समझा जा सकता है। 17 नवंबर को मतदान के पहले तक घड़ी भर की फर्सत नहीं है बोलने वाले राजनेता और उनके समर्थक अब करें तो क्या करें की स्थिति में हैं।
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बैठे-बैठे क्या करें करना है कुछ काम शुरू करो सपने देखना लेकर सत्ता का नाम। हालत यह है कि परिणाम अपने पक्ष में आने का अनुमान लगाकर जश्न की तैयारी में जुट गए हैं। सफलता को इवेंट बनाने पर काम किया जा रहा है। इसमें विजय यात्रा के स्वरूप पर मंथन के साथ-साथ मंच के स्थान, स्वागत करने वालों के नाम की सूची बन रही है। इस पर भी विचार चल रहा है कि मिठाई कहां-कहां पर…किसकी तरफ से वितरित होगी।
लोग कुर्सी पर रूमाल रखने आ गए
वह सियासत ही क्या जो उम्मीद खो दे और वो नेता ही क्या जो हर मौके पर अपने लिए अवसर न तलाशे। चुनाव के बाद जहां राजनीति और राजनेता दोनों परिणाम का इंतजार कर रहे हैं, वहीं टिकट की दौड़ में रहे दावेदार सरकार बनने की संभावना के साथ ही पार्टी के वरिष्ठ नेताओं से यह गुहार लगा रहे हैं कि सरकार बनते ही जल्दी से जल्दी निगम मंडल में हमारा इंतजाम करवा देना। अभी सरकार बनी नहीं है और लोग कुर्सी पर रूमाल रखने आ गए, थोड़ा तो सब्र कीजिए।
कौन बनेगा मंत्री…!
सरकार किसकी बनने वाली है इस अनुमान के साथ जिले से मंत्री कौन बनेगा इसकी चर्चा भी होने लगी है। चुनावी चकल्लस चल रही है। हर कोई अपने हिसाब से सरकार बना और गिरा रहा है। प्रत्याशियों का राजनीतिक भाग्य की ईवीएम स्ट्रांग रूम में कैद है तो चुनाव चर्चा जोरों पर है। हर किसी के अपने दावे हैं। जीत-हार, सरकार बनने-बिगडऩे की खास चर्चा के बीच जिले से कौन मंत्री बनने वाला है। इस पर तर्क के साथ नाग गिनाए जा रहे हंै। कोई भाजपा की सरकार बनने का दावा करता है तो कोई कांग्रेस की।
आधी पार्टी खाली हो जाएगी
सत्ताधारी दल के एक पावरफुल नेता ने चुनाव को लेकर पार्टी के वरिष्ठ नेता शिकवे-शिकायत करने के साथ उनकी खिलाफत करने वालों पर एक्शन लेने की मांग कर दी। जिस पर वरिष्ठ नेता ने जवाब दिया कि ऐसे तो आधी पार्टी खाली हो जाएगी। कई लोगों को बाहर करना पड़ेगा। वरिष्ठ नेता ने कहा कि टिकट के लिए एक सीट पर 8 से 10 लोग दावेदारी करते हैं। टिकट जिसको मिल जाता है, वो दूसरे दावेदारों पर शक करता रहता है। भले ही दूसरे दावेदार पार्टी का काम ईमानदारी से कर रहे हों, तो ऐसे में हर किसी की शिकायत पर एक्शन लेना जरूरी नहीं, बल्कि जिनके खिलाफ पुख्ता सबूत हों, उन्हीं पर अनुशासन समिति को एक्शन लेने दो।