कब है करवा चौथ? जानें पूजा विधि और महत्व

By AV NEWS

परिवार की सुख-समृद्धि, संतान के उत्तम स्वास्थ्य और पति की लंबी आयु की कामना से महिलाएं 13 अक्टूबर 2022 गुरुवार को करवा चतुर्थी या करवा चौथ का व्रत रखेंगी।

करवा चतुर्थी की रात्रि में वृषभ राशि का चंद्रमा अपने सबसे प्रिय नक्षत्र रोहिणी में रहेगा। इससे पति-पत्नी में आपसी प्रेम में वृद्धि होगी। चंद्रोदय रात्रि में 8 बजकर 28 मिनट पर होगा। यह समय उज्जैन के सूर्योदय के अनुसार है। अन्य जगहों के लिए स्थानीय सूर्योदय के अनुसार चंद्रोदय के समय में कुछ मिनटों का अंतर आ सकता है।

करवा चतुर्थी 13 अक्टूबर 2022 को चतुर्थी तिथि रात्रि में 3.10 बजे तक रहेगी। कृतिका नक्षत्र सायं 6.42 तक और उसके बाद रोहिणी नक्षत्र प्रारंभ हो जाएगा। सिद्धि योग दोपहर 1.53 तक पश्चात व्यतिपात योग रहेगा। चंद्रमा वृषभ राशि में और सूर्य कन्या राशि में रहेगा।

क्या है परंपरा
करवा चतुर्थी को करक चतुर्थी भी कहा जाता है। इस दिन सुहागिन महिलाएं हाथों में मेहंदी रचाकर, सोलह श्रृंगार करके पति की लंबी आयु के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। दोपहर में गणेशजी की पूजा करती हैं। सायंकाल में गणेशजी और करवा माता की पूजा करके चंद्रोदय होने पर चंद्रमा को अ‌र्घ्य देकर पूजा करती हैं और पति के हाथ से पानी पीकर व्रत खोलती हैं।

करवा चौथ का महत्व 
इस बार पति-पत्नी के प्यार,विश्वास और समर्पण का त्योहार करवा चौथ 13 अक्तूबर को है। हिंदू पंचांग के अनुसार हर वर्ष करवा चौथा का पर्व कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। करवा चौथ पर सुहागिन महिलाएं दिनभर व्रत रखते हुए और सोलह श्रृंगार करके अपने पति के प्रति समर्पित होकर उनके लिए उत्तम स्वास्थ्य,दीर्घायु और जन्म-जन्मांतर तक हर बार पति रूप में प्राप्त करने के लिए मंगल कामना करती हैं। करवाचौथ का अर्थ है,’करवा’ यानि कि मिट्टी का बर्तन व ‘चौथ’ यानि प्रथम पूज्य गणेशजी की प्रिय तिथि चतुर्थी।इस दिन मिटटी के करवा में जल भरकर पूजा में रखना बेहद शुभ माना गया है और इसी से रात्रि में चंद्रमा को अर्घ्य दिया जाता है।

करवा चतुर्थी पूजन विधि
करवा चतुर्थी पर एक चौकी पर जल से भरा कलश एवं एक मिट्टी के करवे में गेहूं भरकर रखा जाता है। दीवार पर चंद्रमा, गणेश, शिव, कार्तिकेय के चित्र बनाकर पूजा की जाती है। दिनभर निर्जला रहती हैं और रात में चंद्र को अ‌र्घ्य देकर पूजा करती हैं।

निर्जला व्रत रखकर चंद्रमा से करें उपासना
करवा चौथ के दिन महिलाएं सोलह श्रृंगार करके निर्जला व्रत रखती हैं और चौथ माता यानी माता पार्वती की उपासना करती हैं और उनसे अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती है। इसके बाद शाम के समय दिन ढलने से पहले महिलाएं अपनी सास या नन्द को उपहार के रुप में कपड़े और श्रृंगार का सामान भेट करती हैं। दिनभर निर्जला व्रत रखकर रात के समय महिलाएं चंद्रमा का अर्घ्य देने के बाद ही अपना व्रत खोलती हैं।

व्रत कथा
एक समय इंद्रप्रस्थ नामक स्थान पर वेद शर्मा नामक ब्राह्मण अपनी पत्नी लीलावती के साथ निवास करता था। उसके सात पुत्र और वीरावती नाम की एक पुत्री थी। युवा होने पर वीरावती का विवाह कर दिया गया। जब कार्तिक कृष्ण चतुर्थी आई तो वीरावती ने अपनी भाभियों के साथ करवा चौथ का व्रत रखा, लेकिन भूख प्यास सह नहीं पाने के कारण चंद्रोदय से पूर्व ही वह मूर्छित हो गई। बहन की यह हालत भाइयों से देखी नहीं गई तो भाइयों ने एक पेड़ के पीछे से जलती मशाल की रोशनी दिखाई और बहन को चेतनावस्था में ले आए। वीरावती ने भाइयों की बात मानकर विधिपूर्वक अ‌र्घ्य दिया और भोजन कर लिया। ऐसा करने से कुछ समय बाद ही उसके पति की मृत्यु हो गई। उसी रात इंद्राणी पृथ्वी पर आई। वीरावती ने उससे इस घटना का कारण पूछा तो इंद्राणी ने कहा कितुमने भ्रम में फंसकर चंद्रोदय होने से पहले ही भोजन कर लिया। इसलिए तुम्हारा यह हाल हुआ है। पति को पुनर्जीवित करने के लिए तुम विधिपूर्वक करवा चतुर्थी व्रत का संकल्प करो और अगली करवा चतुर्थी आने पर व्रत पूर्ण करो। इंद्राणी का सुझाव मानकर वीरावती से संकल्प लिया तो उसका पति जीवित हो गया। फिर अगला करवा चतुर्थी आने पर वीरावती से विधि विधान से व्रत पूर्ण किया।

Share This Article