पार्लरों की भी सघन जांच जरूरी है निगम के लिए
अक्षरविश्व न्यूज उज्जैन। दूध के मामले में सांची का बाजार एकतरफा रहा है। अब उसे अपना अस्तित्व बनाए रखने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। गुजरात के दूध ने दस्तक दे दी है। आने वाले समय में यह प्रतिस्पर्धा अभी और भी बढ़ेगी। यही वजह है कि सांची ने अपने पार्लर अप-टू-डेट करवा लिए हैं। जरूरत इस बात की है कि इन पार्लरों को संचालित कौन कर रहा है। सघन जांच जरूरी है।
सांची का दूध तीन प्रकार का आता है। गोल्ड की कीमत 65 रुपए लीटर है। कई स्थानों पर इसके 66 रुपए लिए जा रहे हैं। अधिकारियों को यकीन न हो तो बाजार में दौरा करे और पता लगाए कि 66 रुपए कौन वसूल रहा है। सांची द्वारा पार्लर संचालकों को प्रति लीटर दो रुपए पचास पैसे कमीशन के रूप में दिए जाते हैं। कतिपय दूध विक्रेताओं का तर्क है कि फ्रिजर में रखने से बिजली का बिल देना पड़ता है, इसलिए एक रुपय ज्यादा लेते हैं।
पार्लर मालिक है या नहीं, जांच करें : पता चला है कि पार्लर लेने वालों ने अपनी जुगाड़ से पार्लर ले तो लिए लेकिन पैसा कमाने के लिए नया खेेल शुरू किया। नगर निगम ने पार्लर चलाने के लिए सालाना दर पर जमीन दे दी। उस जमीन पर पार्लर शुरू हो गया। कुछ दिन बाद वही पार्लर किसी और को किराए पर दे दिया गया। यानी आम के आम गुठलियों के भी दाम।
निगमायुक्त ने भी दिए थे पार्लर : नगर निगम के पूर्व आयुक्त क्षितिज सिंघल के सामने दो युवकों के प्रकरण पहुंचे थे। वह सांची पार्लर संचालित करना चाहते थे। आयुक्त को पार्लरों की विशेष जानकारी नहीं थी। उन्होंने मातहतों से चर्चा की। मातहतों ने ज्ञान बांटा, बोले सर, दो को देंगे तो अन्य नाराज हो जाएंगे। इस तरह वह आवेदन फाइलों में बंद हो गया। कुछ दिन बाद आयुक्त ने तीन दर्जन पार्लरों का टेंडर निकाला। कई लोग आए और पार्लर स्थापित हो गए। इनमें से कितने पार्लर मालिक चला रहे हैं और कितने उनके किराएदार चला रहे हैं, इसका खुलासा नगर निगम को करना चाहिए।
नगर निगम ने पोल खोली सांची की
सांची प्रबंधन की लापरवाही का एक उदाहरण देखिए। कोठी पर एक पार्लर संचालक को नगर निगम की ओर से समझाइश दी गई कि यह बोर्ड थोड़ा ठीक कर ले। नहीं किया। एक बार फिर नसीहत दी गई कि बोर्ड ठीक कर ले या हटा ले। नहीं हटा। अंतत: नगर निगम के अधिकारी ने खिन्न होकर कहा, आप एग्रीमेंट दिखाइए।
पार्लर वाले ने भूल से वह एग्रीमेंट दिखा दिया जो मालिक के हिसाब से नहीं दिखाना था। एग्रीमेंट खुद का दिखा दिया। पार्लर पर बैठा व्यक्ति संचालक नहीं था। उसने छह हजार रुपए महीने के हिसाब से पार्लर किराए पर लिया था। नगर निगम ने पार्लर हटा दिया। यह घटना यह साबित करती है कि सांची प्रबंधन पार्लर देने के बाद यह नहीं देखता कि पार्लर कौन चला रहा है, क्या बिक रहा है, किस भाव बिक रहा है।